क्या अल्लाह और पवित्र शास्त्र के परमेश्वर एक ही हैं?

द्वारा: Dr. John Ankerberg, Dr. John Weldon; ©2001

(आगे बताये रचना से लिया गया: The Facts on Islam, Harvest House Publishers, Eugene, OR, 1991)

अमेरिका पर हुए हाल ही के हमलों के सन्दर्भ में, कई सवाल उठे हें इस्लाम धर्म के विषय में. अल्लाह के विषय में अस्पष्टता हे. हमें कई ईमेल मिलें हें ये पूछते हुए के, “क्या अल्लाह और पवित्र शास्त्र का परमेश्वर एक हैं?”

इस्लाम सिखाता हे की असली परमेश्वर को अल्लाह के नाम से जाना जाता हे, और परमेश्वर के के दुसरे सारे विचार झूटे हें. कुरान अल्लाह के विषय में बताता हे की: “दूसरा कोई परमेश्वर नहीं है सिर्फ वो, जीवता और अनंत.”[1]  लेकिन अल्लाह कौन है? क्या वो मसीही धर्म के परमेश्वर की तरह है?

नहीं. अल्लाह में पवित्रता, दया और प्यार के गुण का अभाव है. हम बाइबिल के परमेश्वर साथ मुस्लिम परमेश्वर के साथ मसीही परमेश्वर की तुलना करें तो पाएंगे दोनों के अलग विचार हे परमेश्वर के विषय में. पहले तो, अल्लाह एक दूर का परमेश्वर हे जिससे कोई भी एक व्यक्तिगत सम्बन्ध नहीं बना सकता जिस प्रकार पवित्र शास्त्र में लिखा है. लेकिन पवित्र शास्त्र का परमेश्वर चाहता है की इंसान उससे एक व्यक्तिगत सम्बन्ध बनाये (:1,11-14 1 यूहन्ना; 15:9-15; 16:27; :20-26).

दूसरा, मुस्लिम परमेश्वर का अलग आदत और प्रवर्ती हे पवित्र शास्त्र के परमेश्वर की तुलना में. उदहारण के तौर में, अल्लाह एक प्रेम से भरपूर परमेश्वर नहीं है, मगर पवित्र शास्त्र सिखाता है की “परमेश्वर प्रेम है” (1 यहू 4:. 8).

पुरे कुरान में इस बात पर जोर दिया गया है की अल्लाह सिर्फ “प्रेम करता हे” उनसे जो भलाई करते हें, मगर वो बुरे लोगों पर दया नहीं करता. अल्लाह बार-बार इस पर जोर देकर बोलते हें की वो करते प्रेम पापी से नहीं.[2]  इसलिए अल्लाह का प्रेम पवित्र शास्त्र के परमेश्वर का प्रेम नहीं है. पवित्र शास्त्र का परमेश्वर करता प्रेम पापियों से भी; बल्कि, वो सारे पापियों को प्यार करता है (3 यूहन्ना: 16; रोमियों -10).

और, अल्लाह को सारे बुराई का सृजक माना जाता है. लेकिन पवित्र शास्त्र का परमेश्वर किसी भी बुरे का सृजक नहीं है. बल्कि वो अनंत पवित्र और धर्मी है. (1 शमूएल 2: 2; भजन 77:13, 99:9; प्रकाशितवाक्य 15:04). उसके “आँखे पूरी तौर में पवित्र में बुराई में दखने हेतु” (Habakkuk (113).

फिर, मुसलमान परमेश्वर के पवित्र शास्त्र में बताये त्रिएक रूप से इनकार करते हें. कुरान इस बात पर जोर देता है की मसीही अविश्वासी और काफ़िर हैं क्योंकि वो एतिहासिक मसीही त्रिएकता के सिद्धांत को मानते हें.[3]  (कुरान इस त्रिएकता के सिद्धांत को त्रिदेदवाद (तीन परमेश्वर) करके बिगाड़ता है.) मगर पवित्र शास्त्र हमें बताता है की परमेश्वर अपने आपको एक त्रिएक रूप में बताता है, एक परमेश्वर के रूप में जो तीन व्यक्तियों में समाया है – पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा. (: 1,14, प्रेरितों 5: 1 यूहन्ना 3,4).[4]

इन सबका क्या अर्थ है? इसका मतलब है की मुस्लिम परमेश्वर और पवित्र शास्त्र का परमेश्वर दो अलग और विभिन्न परमेश्वर के बारे में है. क्योंकि मुसलमान ये सिखाते हैं के केवल अल्लाह ही एक सच्चा परमेश्वर है, वो कहते हैं की मसीही एक झूटे परमेश्वर की आराधना करते हैं, एक प्रतिमापूजक लोगों की तरह. लेकिन शायद मुसलमान ये भूल चुके हैं की “अल्लाह” वास्तव में अन्यजातियों का परमेश्वर था. विद्वान् मानते है मुहम्मद से पहले, “अल्लाह” एक अन्य धर्म का इश्वर (ईश्वरों का समूह) था अरब में इस्लाम के शुरू होने से पहले – और वो मुख्य इश्वर भी नहीं था. वो मुहम्मद था जिसने इसको बदला और इस अन्य धर्म के इश्वर को इस्लाम के मुख परमेश्वर का दर्जा दिया. 5

नोट्स

1. ↑ A. J. Arberry, The Koran Interpreted  (न्यू यॉर्क: मैकमिलन, 1976), पृ. 65.

2. ↑ # Ibid., pp. 139-40.

3. ↑ For a good study, see E. Calvin Beisner, God in Three Persons  (व्हीटॉन, IL: टिंडेल, 1984), and Edward Bickersteth, The Trinity में  (Grand Rapids: Kregel).

4. ↑ G. D. Newby in Abingdon Dictionary of Living Religions, पृ. 23.