द्वारा: Dr. John Ankerberg, Dr. John Weldon; ©1999
“मैं अकसर सोचता था कि जैविक विकास को कानून की अदालत में प्रमाणित करने के लिए मुझे कुछ अधिक नहीं चाहिए होगा. “ (Errol White, presidential address, “A Little on Lungfishes,” proceeding of the Linnean Society of London)
क्रमिक विकासवाद को माननेवाले कहते हैं कि विज्ञान की कई शाखाओं में क्रमिक विकासवाद के असंख्य प्रमाण उपलब्ध हैं. ज़रा ऐसे दो उदाहरणों पर विचार करें: विज्ञान की राष्ट्रीय अकादमी का आधिकारिक कथन घोषणा करता है कि: ‘‘जीवाश्म विज्ञान, कम्पेरेटिप अनाटामी (विभिन्न प्रजातियों के जीवों की शारीरिक विशेषताओं का तुलनात्मक अध्ययन), जैव भूगोल, भ्रूणविज्ञान, जैवरसायन, आनुवांशिकी, और अन्य जैविक अध्ययन, सभी एक ही स्रोत से उत्पत्ति (क्रमिक विकास) के प्रमाण देते हैं.’’[1]
लोकतांत्रिक एवं लौकिक मानववाद परिषद का आधिकारिक कथन आगे यह कहता है कि ‘‘भौतिक-रसायनिक विकास ने लगभग 4 करोड़ पूर्व जीवन के आरंभ की नींव डाली थी. इसके बाद होनेवाला जैविक विकास अब भूविज्ञान, जीवश्मविज्ञान, जैव भूगोल, मानव-शास्त्र, आनुवांशिकी, वर्गीकरण विज्ञान के तुलनात्मक अध्ययन, जैव रसायन, भ्रूणविज्ञान, शरीर-रचना विज्ञान, और शरीर क्रिया विज्ञान के प्रयोगसिद्ध साक्ष्यों द्वारा प्रमाणित है.’’[2]
इस बात में कोई संदेह नहीं कि विकासवाद को माननेवाले लोगों को हर जगह विकासवाद के प्रमाण दिखते हैं. इस बात पर कोई दो राय नहीं है कि विकासवाद के तथाकथित प्रमाणों के आँकड़ों की बहुतायत है. आँकड़ें अथवा तथ्य स्वयं में कोई समस्या नहीं हैं, समस्या है वह पक्षपातपूर्ण रवैया जो इनके मूल्यांकन के समय प्रयोग में लाया जाता है. जैसा कि Issac Manly, M.D टिप्पणी करते हैं, कि विकासवाद के प्रमाणों की परीक्षा करने पर उसका तर्क बिखरने लगते हैं: ‘‘इन प्रस्तुत प्रमाणों में थोडा बहुत तर्क तब तक ही दिखाई देता है जब तक कि उनको की समीक्षा और जैविक प्रक्रियाओं की बुनियादी समझ के साथ देखा न जाये.’’ [3]
प्रसिद्ध अभिनेता Richard Dreyfuss ने फरवरी 26, 1997 के WENT प्रकृति कार्यक्रम ‘The Galapagos Islands’ में यह टिप्पणी की थी. उन्होंने बड़ी भावुकता के साथ गलपगोस के दर्शनीय प्रदर्शन का वर्णन किया, समुद्र की लहरों पर तैरते जलसिंहो कई दर्ज किया उस द्वीप समूह का नाम प्राय चाल्र्स डारविन के नाम के साथ जोडा जाता है. उन्हें देखकर चकित होते हुए उसने कहा था, कि ‘‘मैं विकासवाद के विज्ञान को जानने की पूरी कोशिश कर रहा हूँ. लेकिन इस समय जो मेरी आँखों के सामने है, उसे तो केवल चमत्कार ही कहा जा सकता है.’’
हालाकि उसका यह आरंभिक संदेह का आधार ठोस था, लेकिन जैसे-जैसे कार्यक्रम आगे बढ़ा और Dreyfuss विकासवाद के अधिकाधिक प्रमाणों की चर्चा करता गया, वैसे-वैसे समय की लंबी अवधियों तथा माइक्रोम्यूटेशनों (सूक्ष्म बदलावों) के कारण आए गंभीर बदलावों द्वारा नई प्रजातियों के पैदा होने की बात से विकासवाद संभव लगने लगा. टी.वी. कार्यक्रम का अंत होते-होते, Dreyfuss अपने दर्शकों को बताता है कि क्रमिक विकासवाद में विश्वास कितना तर्कसंगत था.
जब जीव-विज्ञानी Edward O. Dodson, Evolution: Process and Product, के सह-लेखक, जैसे विकासवादी कहें कि ‘‘क्रमिक विकास के प्रमाणों की एक प्रभावशाली श्रृंखला उपलब्ध है,’’ तो उन आँकड़ों से निष्कर्ष निकालने के लिए प्रयुक्त हुए दृष्टिकोणों के प्रति हमें सचेत रहना चाहिए.[4] जब Dr. Kurt Wise जैसा सृष्टिवादी यह घोषित करता है कि ‘‘समष्टि-विकासवाद, भौतिक प्रमाणों की विविधता की व्याख्या करने का एक शक्तिशाली सिद्धांत है’’[5] तो हमें यह समझना चाहिए कि इस कथन की सार्थकता केवल विकासवाद के संभव. होने की दशा में ही है. जो कभी हुआ ही नहीं वह किसी बात की व्याख्या कैसे कर सकता है, हमारे विचार से विकासवाद की असंभावना ही इन सभी तथाकथित प्रमाणों और व्याख्याओं को बेतुका बना देगी, जैसा की डा हेरिबेर्ट निल्स्सों कहते हैं, “प्रेतात्मा की पाचन क्रिया और मस्तिष्क के कार्यों पर विचार विमर्श करना व्यर्थ है.
एक शर्मनाक चुप्पी
अपने किताब, Darwin on Trial, यू.सी. बर्कले विधि के प्रोफेसर Phillip E. Johnson अपनी पुस्तक Darwin on Trial में, सन् 1981 में विकासवादी Colin Patterson द्वारा प्राकृतिक इतिहास के अमरीकी संग्रहालय में दिए उल्लेखनीय लेक्चर का संदर्भ देते हैं. Patterson ब्रिटिश प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय में वरिष्ठ जीवाश्म विज्ञानी और विकासवाद पर संग्रहालय के जनरल टेक्स्ट के लेखक हैं. उन्होंने अपने दर्शकों से एक सरल सा सवाल पूछा था, लेकिन उस महत्वपूर्ण सवाल में विकासवाद की प्रक्रिया की विश्वसनीय समझी जानेवाली जानकारी पर स्वयं उसके अपने अविश्वास की झलक थी. यह रहा वह सवाल जो उन्होंने विशेषज्ञ विकासवादी दर्शकों के सामने रखा थाः
‘‘क्या आप विकासवाद से जुड़ी कोई भी बात बता सकते हैं, कोई एक ऐसी बात जिसकी आपको जानकारी हो……..और जो बिल्कुल सही हो? यही सवाल मैंने प्राकृतिक इतिहास के फील्ड संग्रहालय के भूविज्ञानियों से पूछा था, और उन्होंने भी मुझेयही उत्तर दिया था, चुप्पी. शिकागो विश्वविद्यालय, जो कि विकासवादियों की एक प्रतिष्ठित संस्था है, उसमें हुए विकासवादी आकृति विज्ञान के सेमिनार में भी मैंने यही सवाल पूछा था, और वहाँ पर भी जवाब मुझे एक लंबी चुप्पी के रुप में मिला लेकिन आखिरकार, कुछ समय बाद एक व्यक्ति बोला, ‘‘इसके बारे में मुझे एक बात पता है……………इसे स्कूलों में नही पढ़ाया जाना चाहिए.’’[6]*
Johnson मानते हैं कि तर्क और वैज्ञानिक शोध के मान्य सिद्धांतो के दृष्टिकोण से देखने पर, डारविन के सिद्धांत में पुष्टि करनेवाले प्रमाणों का भारी अभाव दिखता है. Johnson दिखाते हैं कि कैसे वैज्ञानिकों ने घोड़े को गाड़ी के आगे लगाया हुआ है, और डारविन के सिद्धांत के तथ्यों को अकालिक स्वीकृति देने के बाद, वे उसके पक्ष में प्रमाण जुटा रहे हैं. इस प्रक्रिया में स्वयं डारविनवाद एक नकली विज्ञान बन चुका है, जो प्रमाणों के आधार पर नहीं वरन् अपने भक्तों के विश्वास पर टिका है.[7]
प्रमाणों के इसी अभाव के कारण Karl Popper जैसे दार्शनिक ने कहा था: ‘‘मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि डारविनवाद एक परखा हुआ वैज्ञानिक सिद्धांत नही है, बल्कि मैटाफिजि़क्स का एक शोध कार्यक्रम है – परीक्षणीय वैज्ञानिक सिद्धांतों का एक संभावित ढाँचा…..मुझे इस बात में संदेह है कि डारविनवाद जीवन की उत्पत्ति की व्याख्या दे सकता है. मेरे विचार में, जीवन इतना अधिक विचित्र है कि कुछ भी इस बात की ‘‘व्याख्या’’ नहीं कर सकता है कि इसकी उत्पत्ति क्यों हुई है…..’’[8]
आज अधिकाधिक विकासवादियों में असंतुष्टि बढ़ती जा रही हैः वे सोचते तो हैं कि विकासवाद सच है, लेकिन वे अधिकाधिक विश्वास की आवश्यकता से अभिभूत होते जाते हैं.[9]
विकासवाद के प्रमा
विकासवाद के पक्ष में दिए जानेवाले लोकप्रिय प्रमाण तार्किक, दार्शनिक, और वैज्ञानिक हैं. एक तथाकथित वैज्ञानिक तर्क हैः दुनिया भर के सैकड़ों, हज़ारों वैज्ञानिक, इतना अधिक गलत कैसे हो सकते हैं कि सब एक साथ किसी गलत सिद्धांत को मानने लगें – कम से कम 19वीं और 20वीं सदी में तो नहीं, जो आधुनिक विज्ञान में संसार का सबसे उत्पादक युग समझा जाता है.
लेकिन तकनीकी प्रगति और विकासवादी सिद्धांत एक बात नहीं हैं. साथ ही, अधिकांश लोगों द्वारा दिया जानेवाला तर्क स्वयं एक तार्किक भ्रम है. लोगों का अधिक संख्या में किसी सिद्धांत को अपनाना कोई मायने नहीं रखता. प्रमाण का महत्व उसकी प्रामाणिकता में होता है. जैसा कि हमने पहले देखा था, बहुमत भी गलत हो सकता है.
विकासवाद के पक्ष में दिया जानेवाला दूसरा संभव तर्क है कि केवल यही हमारे आस्तित्व की सबसे अधिक संभावित व्याख्या देता है. अब जबकि हम आस्तित्व में हैं, और केवल विकासवाद के कारण हम यहाँ पर हैं, तो विकासवाद सही है. लेकिन यह भी एक दूसरा तार्किक भ्रम है, जिसे दोषपूर्ण दुविधा कहते हैं, अर्थात्, उचित व्याख्याओं के होते हुए भी विकल्पों को सीमित करना.
(*Johnson इस धारणा का संदर्भ इसलिए नहीं देता है कि Patterson का इतना संशयभरा मत विज्ञान जगत में व्यापकता से माना जाता है, पत्तेरसों अपने उद्देश्य में उत्तेजना उत्पन्न की और,डारविनवादियों द्वारा अस्वीकृत इस लेक्चर की प्रतियों के बटने से वे उनकी भतर्सना और आलोचना का शिकार हो गया. इसके कारण उसे अपनी बात से पूरी तरह से मुकरना पड़ा. Johnson का इतना कहना है कि Patterson की टिप्पणियाँ चाहे बाहरी दुनिया के लिए थी या नहीं, लेकिन उसने एक गंभीर बात अवश्य कही थी – हमारे ग्रह पर इतनी पेचीदा शारीरिक रचनावाले जीवों के आस्तित्व में आने के बारे में वैज्ञानिक बहुत कम जानते हैं.[10]
अधिकांश लोग इन तथाकथित वैज्ञानिक प्रमाणों के कारण विकासवाद में विश्वास करने के लिए विवश हो जाते हैं — जीवन की उत्पत्ति से सम्बंधित ये प्रयोग दावा करते हैं कि जीवन बस यूँ ही अनियमित रुप से आकार लेकर विकास कर सकता है; विकासवाद के स्पष्ट तंत्र के रुप में म्यूटेशन और प्राकृतिक चयन (जीवों में म्यूटेशन होता है; प्राकृतिक चयन तथाकथित रुप से विकासवाद को प्रदर्शित करता है); जीवाश्मों के बीते जीवन के इतिहास का इस रीति से रिकार्ड बनाना कि इनसे तथाकथित विकासवाद को प्रमाणित किया जा सके; तुलनात्मक एनाटामी/आनुवांशिक जीवतत्व जिससे विकासवाद और जीवों की एक ही रीति से उत्पन्न होने की बात का निष्कर्ष निकाला जा सके; जैव भूगोल, पेड़-पौधों व जानवरों का भौगोलिक वितरण जो तथाकथित रुप से विकासवाद से संबंध रखते हैं; होमिनिड जीवाश्म (मनुष्य की तरह दिखनेवाले जीवों के जीवश्म, जिनसे तथाकथित रुप से आधुनिक मनुष्य का विकास हुआ है) इत्यादि.
हालाकि समय और जगह की कमी के कारण हम विकासवाद के सभी तथाकथित प्रमाणों की जाँच नहीं कर सकते हैं, तो भी हम ऊपर दिए प्रमुख प्रमाणों को विस्तार से देखेंगे या अधिकांश का सारांश देखेंगे. यदि ये प्रमुख प्रमाण मान्य हैं, तो विकासवाद सिद्ध हो जायेगा. यदि वे अधूर हैं, तो इनके साथ विकासवाद से जुड़े सभी छोटे बड़े अतिरिक्त प्रमाण भी संदिग्ध समझे जाने चाहिए.
विकासवादी कहते हैं कि जीवाश्म रिर्काड, प्राकृतिक चयन, तुलनात्मक एनाटामी, जीवश्म मानव, और जैवभूगोल में विकासवाद और इसके प्रमाण मिल सकते हैं. लेकिन हमें इस बात का पूरा विश्वास है कि इनका कोई प्रमाण ही नहीं है, बल्कि साक्ष्यों में कोई प्रामाणिकता भी नहीं है. इसलिए जब विकासवादी वैज्ञानिक कहते हैं कि अन्य क्षेत्रों में भी विकासवाद से जुड़े साक्ष्य हैं, हम उनकी बात पर विश्वास नहीं कर पाते हैं. सच तो यह है कि गंभीरता से पड़ताल करने पर उनके प्रस्तुत किए सभी तथाकथित साक्ष्य बिखर जाते हैं. असल में, हम ऐसा भी कह सकते हैं कि इस तरह के सभी साक्ष्य इस बात का समर्थन करते हैं कि जीवन विकासवाद से नहीं बल्कि किसी विशेष रीति से आस्तित्व में आया था, फिर चाहे वह रीति प्रत्यक्ष हो या परोक्ष.[11]
तो भी, इस पुस्तक के शेष भाग में हम विकासवाद के बुनियादी साक्ष्यों की कमज़ोरियों की पड़ताल करने के अतिरिक्त भी बहुत कुछ करेंगे. हम सूचना सिद्धांत, डिज़ाइन, एबायोजेनेसिस (एक काल्पनिक सिद्धांत जिसके अनुसार जीवन की उत्पत्ति सरल कार्बनिक यौगिकों से हुई है), आणविक विकास, संभाविता कारक, थर्मोडायनेमिक्स के दूसरे नियम, सृष्टिशास्त्र, संयोग के मिथक, और विविध प्रकार के वैज्ञानिक नियम पर भी दृष्टि डालेंगे जो यह प्रमाणित करने की कोशिश करते हैं कि क्रमिक विकास कभी नहीं हुआ था, और इसके दोबारा होने की कोई संभावना भी नहीं है. इन क्षेत्रों में विचार करने पर – विशेष रुप से दूसरे क्षेत्रों में विकासवाद से जुड़े प्रमाणों के अभाव के प्रकाश में – विकासवाद के सभी तथाकथित अतिरिक्त प्रमाण को खारिज करती है.
वास्तव में, जीव विज्ञान और गणित के अनुसार यदि विकासवाद असंभव, तो इसका कहीं कोई प्रमाण नहीं है. और यही कारण है कि विकासवादियों को तार्किक, प्रयोगात्मक, और साक्ष्यों को लेकर दुविधा का सामना तो करना ही पड़ेगा. साथ ही, ईश्वरवादियों पर सिर्फ इसलिए हठधर्मी होने या संकीर्ण मानसिकता रखने का आरोप नहीं लगाया जाना चाहिए, क्योंकि वे वैज्ञानिक तथ्यों को अपना वाद प्रस्तुत करने देते हैं.
इसलिए, हम यह सिद्ध करेंगे कि जिन क्षेत्रों का संदर्भ विकासवादी अपने मत के पक्ष में देते हैं, उनसे जुड़ा कोई विश्वसनीय और/या मान्य प्रमाण न तो मौजूद है और न ही उसके होने की कोई संभावना है. ऐसा करने के द्वारा हम अपने इस निष्कर्ष को प्रमाणित करेंगे कि विकासवाद को सिर्फ इसलिए स्वीकारा गया है क्योंकि उसके स्थान पर कोई दूसरे मान्य वैज्ञानिक आँकड़े नहीं हैं.
एक बार फिर, विकासवादियों को उनके वैज्ञानिक प्रमाण जिनका प्रयोग वे उनके आँकलन के लिए करते हैं, केवल इस कारण दमदार लगते हैं . यदि बात ऐसी नहीं है तो फिर विकासवादियों के विश्वास का क्या कारण हैं? हमारे विचार से इसे कई कारकों द्वारा समझाया जा सकता हैः 1) वे आँकड़ों को निष्पक्ष रुप से नहीं देखते हैं (जैसे कि, वे प्रमाणों को बिना किसी गंभीर विश्लेषण के ही स्वीकार लेते हैं); 2) प्रकृतिवाद का पक्षधर होने के कारण वे पक्षपात कर सकते हैं (वे विकासवाद को अपने विश्वास के आधार पर मानते हैं, आँकड़ों को आंशिक रुप से देखते हैं, और स्वयं को प्रमाणों के सच होने का विश्वास दिलाते हैं); 3) उन्होंने शायद विकासवाद के विरोध में प्रस्तुत प्रमाणों के महत्व पर कभी ध्यान नहीं दिया (जैसे कि Bird, Denton, Behe, Milton, MacBeth, Moorehead और Kaplan, Gentry, Grasse, Shute के कार्य[12]) उन्होंने अपने विचारों पर निष्पक्ष ध्यान नहीं दिया है. असल में, हमने विकासवाद के कई मुरीदों से बातचीत की है, और देखा है कि स्पष्ट विचार करने में चुक गए है.
नोट्स
1. ↑ The National Center for Science Education, Inc., Voices for Evolution, पृ. 56.
2. ↑ Ibid, पृ. 166.
3. ↑ Manly, God Made, pp. 114-15.
4. ↑ Dodson and Howe, Creation or Evolution, पृ. 143.
5. ↑ Kurt P. Wise, “The Origin of Life’s Major Groups,” in Moreland (ed.) Creation Hypothesis, पृ. 232.
6. ↑ Cited in Phillip E. Johnson, Darwin on Trial (Downer’s Grove, IL: InterVarsity, 1991), पी. 10.
7. ↑ [ विकासवादी सिद्धांत के धार्मिक अवैज्ञानिक प्रकृति के साथ काम लेखों की एक व्यापक सूची के लिए, कृपया देखेंDarwin’s Leap of Faith, पृ. 366.]
8. ↑ Karl Popper, Unended Quest: An Intellectual Autobiography (ग्रेट ब्रिटेन, फोंटाना / कोलिन्स, 1976, फिरना.), pp. 168-69.
9. ↑ जैसे, सीएफ., डेंटन, विकास 308-44; सबूत के उसमें अपने सर्वेक्षण, R. L. Wysong observes that evolution itself requires faith and lists some of the problems.
10. ↑ Cited in Phillip E. Johnson, Darwin on Trial (Downer’s Grove, IL: InterVarsity, 1991), पी. 10.
11. ↑ बर्ड, Origin…Revisited, Vols. 1 and 2, who cites almost exclusively non-creationists; also see the technical reports and publications of the Institute for Creation Research in Santee, CA and the Creation Research Society in St. Joseph, MO; also see the Recommended Reading in Darwin’s Leap of Faith.
12. ↑ See Recommended Reading in Darwin’s Leap of Faith.