द्वारा: Dr. John Ankerberg; ©2000
(‘‘इस्लाम बनाम मसीहत’’ पर हुए वाद-विवाद से प्रतिलिखित, व The John Ankerberg Show द्वारा निर्मित. प्रस्तुत मेहमान हैं: Dr. Jamal Badawi, Dr. Hussein Morsi, Dr. Gleason Archer, Dr. Anis Shorrosh.)
Dr. John Ankerberg: आज रात हमारा विषय बहुत ही विवादास्पद विषय है; एक बहुत ही रोचक विषय है, और ज़रुर से आपको भी ऐसा लगेगा. कौन सी किताब परमेश्वर का वचन है – बाइबल या कुरान? अपने तर्क के पक्ष में आपके पास क्या प्रमाण हैं? शुरुआत Dr. Jamal Badawi से करेंगे.
Dr. Jamal Badawi: शुक्रिया, जॉन. मैं दो मुद्दों पर बात कहना चाहूँगा. पहला है कि पहले की मज़हबी किताबों और कुरान के बीच रिश्ता, और दूसरा है क्यों मुसलमान कुरान को आखरी मुंसिफ और कसौटी मानते हैं? पहले सवाल पर छः बुनियादी बातें हैं:
1. कुरान का एक मज़हबी कानून न केवल ख़ुदा के नबियों पर ऐतबार करने को कहता है, बल्कि उस बुनियादी मसीही प्रकाशन पर भी ऐतबार करने को कहता है जो उन्हें इन्सान की रहनुमाई और फायदे के लिए दी गई थी. वे सभी एक ही ज़रिये, ख़ुदा से आते हैं, और यही बात कुरान व बाइबल के बीच की समानता को समझाती है.
2. मुस्लिम ईमान के हिसाब से, कुरान से पहले की कोई भी मज़हबी किताब पूरी तरह से पूरी नहीं है, और न ही और कोई मज़हबी किताब बुनियादी भाषा में – वह जिसमें इसके नबी ने इसे कहा और सिखाया था – उसमें हुई व्याख्याओं की कड़ी में बिना कोई बाधा डाले अपने नबी तक पहुँचती है; और जिसमें कोई बड़े बदलाव न आये हों.
3. इखि़्तयार और असली प्रकाशन की बहुत ज़रुरत थी, ताकि लोगों को आम मज़हबी मीरास को परखने में मदद मिल सके और यह पक्का किया जा सके कि कौन सा प्रकाशन ख़ुदा की ओर से है और कौन सी बाद में पनपी थियॉलोजी है.
इसके मद्देनज़र, (4) कुरान अपने चार तरह के काम देखती हैः (1) पहले की मज़हबी किताबों में जो भी दावे किये गये हैं, कुरान उसे पक्का करती है व उसके सबूत देती है; (2) बुनियादी प्रकाशन में लोगों द्वारा की गई गलत व्याख्या और मतांध रुप से जोड़ी गई बातों को सही करती है, जैसे कि यीशु नबी, शांति और आशीष उन पर हो, उनके ओहदे को बड़ा-चढ़ा कर बताना; (3) ऐसी एहम जानकारियों का खुलासा करती है जो हो सकता है कि पूरे इतिहास के दौरान खो गई हों, या छिपा दी गई हों या गलत समझी गई हों, जैसे कि पूरे नबूवत के समय की आखरी चोटी की तरह, मुहम्मद नबी की भूमिका, शांति और आशीष उन पर हो; (4) मुसलमानों के लिए कुरान बाकी पिछली सभी मज़हबी किताबों के ऊपर निगहबान (रक्षक) की तरह है; मिसाल के तौर पर, यह कसौटी है, जैसा कि सूरा 67 में यह खुद को कहती है. जो कुछ कुरान के मुताबिक है, उससे किसी मुसलमान को कोई परेशानी नहीं है. पुराने और नये नियम में ‘‘हे इस्राएल, सुन, यहोवा हमारा परमेश्वर है’’ का उल्लेख है. कुरान में भी इस बात पर ज़ोर दिया गया है. इसको लेकर कोई परेशानी नहीं है.
आखिर में, इस तरह देखें तो, मेरी सीधी-सादी समझ के हिसाब से, ‘‘कुरान और बाइबल में कौन सा परमेश्वर का वचन है?’’ यह शीर्षक सही नहीं है. क्योंकि मुसलमानों के हिसाब से बाइबल में भी खुदा के हुकुम है, लेकिन केवल एक हिस्सा भर ही, क्योंकि इसमें पतरस के, प्रकाशितवाक्य के लेखक के, और कई औरों के शब्द भी हैं. और, हम इन दोनो में फर्क करते हैं. इसमें कुछ-कुछ खुदा के हुकुम भी है; लेकिन हमारे लिए जाँचने की एकमात्र कसौटी कुरान है.
अब, मुसलमान किसलिए कुरान को खुदा का हुकुम मानते हैं? (1) इसके भीतरी सबूत की अटलता बताती है कि यह ख़ुदा का हुकुम है. (2) हमारे पास नबी के दावों की असलियत को मानने के ज़रुरत से ज़्यादा वजहे हैं, जैसा कि हम नबूवत पर चर्चा करते समय देख चुके हैं. (3) कुरान के भीतर मौजूद लफ़्ज़ी और वैज्ञानिक चुनौती का कोई जवाब नहीं है, केवल उन लोगों को छोड़ जो कुरान की भाषा या इसके विज्ञान को नहीं जानते हैं. और जैसा कि, डॉ. कीथ मूर, अंतर्राष्ट्रीय स्तर के जाने-माने भ्रूणविज्ञान के विशेषज्ञ, अपनी किताब ‘‘द
डेवलपिंग एम्ब्रियो’’ में यह बात साफ तौर पर कहते हैं कि वह इस बात को लेकर बहुत हैरान थे कि कुरान में भ्रूण के बढ़ने के शुरुआती दौर पर एकदम सटीक बातें लिखी थी. डॉ. मोरिस पोकाई की लिखी पुस्तक, ‘‘द बाइबल, द कुरान और साइंस,’’ इस बात का निष्कर्ष निकालती है, कि कुरान की किसी भी बात का स्थापित वैज्ञानिक तथ्यों से, सिद्धांतों से नहीं, बल्कि तथ्यों से कोई विरोध नहीं है. कुरान में कही कोई भी भविष्यद्वाणी, जो कि बहुत सारी हैं, न कि बस उतनी जितनी पिछले कार्यक्रम में कहीं गई थीं, और उनमें से कोई भी आज तक, कुरान के प्रकाशन के 1400 सालों में अब तक गलत साबित नहीं हुई है. (5) कुरान में लिखी बातों में कोई आपसी टकराव नहीं है, और चुनौती भरी है. जितने भी कहे जानेवाले आपसी टकराव हैं, वो या तो अक्ल की कमी से है या फिर समझ की कमी से. (6) कुरान ही ऐसी एकलौती मज़हबी किताब है जो उसके नबी के जीवन-काल के दौरान, 23 सालों से भी अधिक समय के अरसे में, उन्हीं की देखरेख में लिखी और याद की गई थी. और कुरान को बचाये रखने का असल तरीका लिखने से ज़्यादा पीढ़ी दर पीढ़ी उसे याद करना था. मसीहत के पश्चिम के विद्वान, विलियम वेयर्स तक ने कुरान की सटीकता की सच्चाई को माना था. सबसे एहम बात, कुरान का संदेश अपने ज़रिये को गवाही देता है, जो है – एकमेव सच्चे ख़ुदा पर ईमान रखना; उसका प्यार; हमारा उससे लगाव; सभी नबियों के लिए इज़्जत; इंसानी भाईचारे पर ज़ोर, सभी के लिए न्याय और जि़ंदगी के सभी पहलूओं में ब्यौरेदार हिदायत.
आखिर में, पिछले 1400 सालों के दौरान अनगिनत लोगों और देशों के जीवनों को बदलने में कुरान ने सबसे एहम भूमिका निभाई है. यह लाखों लोगों द्वारा इस्लाम को अपनाये जाने के लिये जि़म्मेदार है जिसमें अमर से लेकर, जो कि मुहम्मद नबी को जान से मारनेवाला था लेकिन कुरान को सुनने के बाद मुसलमान हो गया था, कैट स्टीवन्स तक, और मुक्केबाज़ मुहम्मद अली तक, करीम अब्दुल जब्बर और पश्चिमी यूरोप व अमेरीका के हज़ारो लोग तक शामिल हैं. असल में, कुरान ने ही 1000 सालों तक बनी रहनेवाली एक पूरी नई सभ्यता को स्थापित किया था, और यूरोप के पुनर्जागरण का आरंभ बनी थी.
Ankerberg: बहुत, बहुत धन्यवाद. Dr. Anis Shorrosh, अब आप शुरु करें.
Dr. Anis Shorrosh: धन्यवाद, सर. परमेश्वर, सृष्टि, आदम, हव्वा, पाप, पतन, स्वर्गदूत, स्वर्ग, नरक, अब्राहम, मूसा, इब्रानी जाति, और नबियों से जुड़ी कुरान की शिक्षायें पुराने नियम में पहले ही से प्रकाशित व उद्घोषित थीं.
मुहम्मद ने कोई नई बात नहीं बताई थी. हो सकता है कि उनके कुछ सुननेवालों के लिये ये नई हों, लेकिन अपनी बाइबल के माध्यम से यहूदी व मसीही लोगों को इससे अधिक जानकारी का पहले से ज्ञान था. पूर्व के नबियों की तुलना में मुहम्मद के प्रकाशन न तो बेहतर थे और न ही वे परमेश्वर की ओर से दिये किसी नये प्रकाशन के प्रमाण प्रस्तुत करते थे. ऊपर बताये प्रमाण और उससे अधिक बातें मुहम्मद के जन्म से सदियों पहले से प्रकाशित व सिखाई जाती रही थीं. किसी भी प्रकाशन को एक सच्चा प्रकाशन मानने के लिए धर्मशास्त्र के विशेषज्ञ 6 शर्तों को पूरा करने की माँग करते हैं.
पहली, इसे मनुष्य की आत्मा में अनन्त सुख को पाने की इच्छा को संतुष्ट करना चाहिए. दूसरी, इसे विवेक के साथ एकमत होना चाहिए, जो मनुष्य की बुद्धि में लिखे नैतिक नियम हैं. तीसरी, इसे परमेश्वर के सच्चे सत्व को प्रकाशित करना चाहिए. चौथी, इसे मनुष्य के इस तर्क के साथ सहमत होना चाहिए कि परमेश्वर एकमेव है. पाँचवीं, इसे उद्धार के मार्ग को सुगम बनाना चाहिए. छठवीं, इसे पुस्तकों में, नबियों के माध्यम से, और व्यक्तिगत रुप से स्वयं परमेश्वर को प्रकाशित करना चाहिए. न तो मुहम्मद और न ही कुरान इन छः की छः शर्तों को पूरा करते हैं. कुरान आंशिक रुप से चौथी और शायद छठवीं कसौटी को पूरा करती है.
पूरे संसार में स्वयं बाइबल ही सबसे असाधारण किताब है. इसमें 50 से अधिक लोगों- गडरियों, राजाओं, दार्शनिकों, मछुआरों, अमीरों, गरीबों, युवाओं और वृद्धों द्वारा लिखी 66 पुस्तकों का समावेश है और 1500 से अधिक सालों की अवधि के दौरान लिखी गई हैं. यह स्वयं को परमेश्वर के प्रेरित वचन के रुप में दर्शाता है क्योंकि इसका लेखक केवल एक, पवित्र आत्मा है. मैं 2 पतरस 1:20-21 में से पढ़ता हूँ. ‘‘पर पहले यह जान लो कि पवित्र शास्त्र की कोई भी भविष्यद्वाणी किसी के अपने ही विचारधारा के आधार पर पूर्ण नहीं होती. क्योंकि कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई पर भक्त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्वर की ओर से बोलते हैं.’’ घटनाओं के होने से कई सदियों पूर्व उनके होने की भविष्द्वाणियों के पूरा होने के कारण, हम यह जानते हैं कि बाइबल प्रेरित वचन है. इस पर विश्वास और आचरण किये जाने पर, इसने मनुष्य समाज के उत्थान को भी प्रेरित किया है. इसके आगे, बाइबल की सत्यता को चुनौती तो दी गई है, लेकिन इसे कभी प्रमाणित नहीं किया जा सका है. ऐतिहासिक दस्तावेज़ों, पुरातात्विक खोजों, और प्राचीन हस्तलिपियों ने इसकी सत्यता की पुष्टि की है. संसार भर के संग्रहालयों में वचन की लगभग 25000 से अधिक प्रतिलिपियाँ मौजूद हैं जिन पर कोई भी खोज कर सकता है.
मैं पूछता हूँ दोस्तों, आज हमारे पास कुरान की कितनी प्रतिलिपियाँ उपलब्ध हैं, और वे कितनी पुरानी हैं? तथाकथित प्रकाशन के 55 सालों बाद, ऑथमैन ने कप्सा को छोड़ बाकी प्रतिलिपियों को जला डालने का आदेश क्यों दिया था? एलेक्ज़ेंड्रा के कोड 350 ईसवीं पुराने हैं. कोड्स वेदिकानस 325 इसवीं के हैं. संपूर्ण पुराने नियम के द डेड सी स्क्रोल 250 ईसापूर्व के हैं. आप में से कुछ लोग यूगारेत और ईबला में हुई कमाल की खोजों के बारे में अच्छे से जानते होंगे. दोनो ही ने बाइबल के अधिकार और ईश्वरीय प्रेरणा में हमारे विश्वास को पुख्ता किया है. यीशु ने कहा, ‘‘स्वर्ग और पृथ्वी टल जायेंगे, लेकिन मेरा वचन सदा बना रहेगा.’’
अब हम प्रामाणिकता के बारे में सवाल करते हैं. पुरातत्व विज्ञानियों ने घोषणा की है कि यदि कोई किसी सामग्री या खोज के नये होने का दावा करने से पहले से ही वे ज्ञात, अभिलिखित, या पुष्ट हैं, तो इसके पीछे केवल दो सरल वैज्ञानिक समाधान या जवाब हैं. पहला, भौगोलिक स्थान ने दोनो का अलग रखा होगा, और इस कारण एक को दूसरे की इस खोज का पता नहीं चल पाया होगा. दूसरा, काल-क्रम में बाद में ओनेवाले ने पहले होनेवाले की सामग्री से उधार लिया होगा. बात यही है मेरे दोस्तों. कुरान के होने के 1000 सालों पहले ही पुराना नियम आस्तित्व में आ चुका था. नया नियम कुरान के 500 साल पहले आ चुका था. इस तरह, वैज्ञानिक व पुरातात्विक नज़रिये से, सच्चाई पवित्र बाइबल के साथ डट कर खड़ी है न कि कुरान के. इसलिये, जब भी कुरान बाइबल से मेल न खाये, तो समझ लें कि कमी कुरान में है.
अब, जहाँ तक सटीकता की बात है. भाइयों और बहनों, उनके कुरान में है कि जकर्याह तीन दिनों के लिए गूँगा हो गया था, जबकि बाइबल बताती है कि वह बपतिस्मा देनेवाले यूहन्ना के पैदा होने तक गूँगा था. हमें बताया जाता है कि मूसा को फिरौन की माँ ने उठाया था, जबकि बाइबल बताती है कि उसको फिरौन की बेटी ने उठाया था. हमें बताया जाता है कि एक सामरी ने सोने का बैल बनाया था, जबकि बाइबल बताती है कि उसे बनानेवाला और कोई नहीं बल्कि खुद उसका भाई हारुन था. हमें बारंबार इतनी वज़नदार कहानियाँ बताई जाती हैं, जैसे कि गिदौन की. बाइबल में गिदौन की कहानी है, लेकिन कुरान में 300 लोगों के पानी पीने की घटना राजा शाऊल के साथ होती है. और कितने कमाल की बात है दोस्तों, हमें पता चलता है कि परमेश्वर का वचन सच्चा है, और मैं किसी को भी इस बात की चुनौता दे सकता हूँ कि वह बाइबल को पढ़े और जानें कि कुरान में बाइबल के जिन व्यक्तियों का उल्लेख किया गया है, उनके बारे में परमेश्वर के वचन में, बाइबल में अधिक विस्तार और सटीकता से बताया गया है.
Ankerberg: हमने अभी-अभी दोनो पक्षों की बातों को सुना है, और अब हुसैन मोर्सी पर आना चाहूँगा. डॉ. मोर्सी, मैं आपसे यह पूछना चाहूँगा कि: बाइबल के अनुसार, नूह के सारे बेटे उस बाढ़ से बच गये थे, लेकिन कुरान के अनुसार, सूरा 11:45 में यह सिखाया जाता है कि उसके बेटे डूब गये थे. तो इस तरह, बाइबल और कुरान में बातें मेल नहीं खाती हैं. लेकिन बात यही तक नहीं है, सूरा 21:75 में कुरान कहती है कि ‘‘हमने उसे बचा लिया; नूह और उसके सारे वंश के लोगों को इस महान आपदा से बचा लिया.’’ इस तरह, आपके सामने कुरान में ही आपस में विरोधी बातें हैं, जहाँ एक जगह तो बताया जाता है कि नूह के बेटे डूब गये थे और वहीं दूसरी जगह पर यह कहती है कि हर कोई बचा लिया गया था, और इसके बाद वचन में असहमति. आप कहते हैं कि कुरान में कोई परस्पर विरोधी बातें नहीं हैं. आप इसे कैसे समझायेंगे?
Dr. Hussein Morsi: यहाँ पर जो धारणा है, वह बहुत ही गलत धारणा है जो यह मानने पर टिकी है कि बाइबल पूरी तरह से मुकम्मिल, पूरी, सटीक ऐतिहासिक रिकॉर्ड है जो कि खुद मसीही समाज में बहस का मुद्दा है, और कि अगर कोई बात कुरान में अलग है तो इसका मतलब है कि कुरान ही गलत है न कि वह दूसरा ज़रिया, जो कि एक बहुत ही………..
Ankerberg: ज़रा रुकें, आपने अभी-अभी यह दावा किया है कि कुरान की बातों में कोई आपसी विरोध नहीं है. मुझे अब भी जवाब का इंतज़ार है.
Morsi: कोई टकराव नहीं है क्योंकि जब यह कहती है, जब हम कहते हैं कि नूह और उसके लोग, तब यह ज़रुरी नहीं कि इसका मतलब वह और उसका हर बंदा हो. और अरबी भाषा में एक नियम है कि अगर 99 लोग ने कहा कि एक जन डूब गया, मिसाल के तौर पर, आप कह सकते हैं कि हमने उसे और उसके लोगों को बचा लिया, इसमें ज़रा भी टकराव नहीं है.
Ankerberg: यह कहती है कि सभी बचा लिये गये थे.
Morsi: नहीं, ध्यान से पढ़ें.
Ankerberg: जी पढ़ी है, वह भी तीन अनुवाद.
Morsi: …. तर्जुमा, असल शब्दों को नहीं पढ़ा.
Ankerberg: यहाँ सवाल वचन की सटीकता का है. आपने कहा कि उसमें कोई टकराव नहीं है. हमने आपको एक दिखा दिया. डॉ. आर्चर, आपने कहा था कि असल किताब की बातों के संचार का भी मसला है, कि यह पूरी तरह से शुद्ध नहीं है. असल में, अगर मैने सही समझा है, तो एक कुरान वहाँ काइरो के संग्रहालय में है. और एक दूसरी कुरान वहाँ, मेरे खयाल से, कहाँ है वह?
Dr. Gleason Archer: दमिश्क और काइरो में.
Ankerberg: और फिर वह जिसे आम लोग इस्तेमाल करते हैं, और ये तीनों ही अलग हैं. ये सभी एक दूसरे की बात को काटती हैं. अब, ऐसा क्यों है?
Badawi: मैं आपको समझाता हूँ. लगाये गये बहुत से इल्ज़ाम सही नहीं हैं. मैं यह बात अपने प्रेसेंटेशन में कह चुका हूँ कि कुरान को महफूज़ रखने का सबसे एहम तरीका था उसे जु़बानी याद करके एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाना. आज भी ऐसे लोग हैं जिन्होंने पूरी कुरान को ज़ुबानी याद किया हुआ है और जो नबी के समय से पीढि़यों से ऐसा करते रहे हैं. पहली बात.
Ankerberg: लेकिन क्या इसे केवल याद किया गया था – क्योंकि ऐसा लगता है कि सभी विद्वान, यहाँ तक कि मुस्लिम विद्वान भी यह कहते हैं कि कुछेक को ताड़ के पत्तों पर लिखा गया था, कुछेक का माँस पर लिखा गया था, और कुछेक को पत्थरों पर ….
Badawi: मैंने ऐसा नहीं कहा कि केवल यही तरीका था. मैंने कहा कि महफूज़ रखने का एहम तरीका इसे ज़ुबानी करना था, और आज तक भी, आपको ऐसे बच्चे मिलेंगे जिनकी मादरे ज़ुबान अरबी नहीं है, लेकिन उन्होंने पूरी कुरान ज़ुबानी की हुई है. इसमें कोई परेशानी नहीं है. दूसरी बात, जहाँ तक हाथ के लिखों का सवाल है; नबी, शांति उस पर हो, जब भी कुरान का कोई हिस्सा ज़ाहिर होता था तो वह लोगों को उसे इन्हीं सब पर लिखने की हिदायत देते थे कि जिनके बारे में आपने अभी कहा था. पहली बात. इस तरह, केवल एक ही असल किताब थी. और पूरी कुरान नबी के अपनी जि़ंदगी के दौरान लिख ली गई थी. लेकिन इस असल कॉपी के अलावा भी नबी ने इस बात का भी इशारा दिया था कि कुछ कबीले, जिन्हें कुरान के कुछ लफ़्ज़ मुश्किल लगते थे, वे अपनी सहूलियत के लिए उनकी जगह अपनी ज़ुबान में मौजूद लफ़्ज़ों का इस्तेमाल कर सकते थे. लेकिन ऐसा केवल कुछ समय के लिए करने की इजाज़त थी, क्योंकि वे लोग उस तरह की बोली में बढ़े थे, हालांकि इनके मायने बिल्कुल वही थे, वही थियॉलोजिकल खयाल. उन्होंने असल में किया यह था, कि कुरान के सभी याद करनेवालों और उसमें शामिल होनेवालो की मंज़ूरी से, उन्होंने कहा कि लोगों के पास अलग-अलग कुरान होने की बजाय – क्योंकि इस्लाम दूर-दूर तक फैल गया था और इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि आप इसे असल ज़ुबान में बोलते हैं जिसमें वह ज़ाहिर हुई थी या किसी और ज़ुबान में – उन्होंने कहा कि यह असल में बेहतर होगा कि उन लोगों के दस्तावेज़ों को, लोगों की अपनी निजी कॉपियों को जला कर केवल असल दस्तावेज़ तक हम अपने को बांधे रखें जिसे खुद नबी की निगरानी में बोला गया था.
Ankerberg: ठीक है, ज़रा यहाँ पर रुकें. जे.एम. रॉडवेल ने कुरान को अरबी से अनुदित किया था. अपनी प्रस्तावना में, वह कुछ और ही कहता है. वह कहता है कि इससे जो कॉपियाँ बनाई गई थीं, उससे सहज रुप से और ज़रुरी तौर पर बहुत सी व्याख्यायें पैदा हो गई थीं, और इन सबके कारण विश्वासियों के बीच बहस पैदा हो गई थी, जिसके कारण हस्तक्षेप करना ज़रुरी हो गया था, और यही कारण था कि हर अलग बात कहनेवाली कॉपी को जला दिया गया क्योंकि उसके कारण ….
Badawi: वह उसका कहना था, इतिहास ने उसे सही नहीं ठहराया है. कुरान का सबसे दुरुस्त हवाला जिसे सारे जानकार मानते हैं, वह है हदीस की किताबें, और वे उसी की बात की खिलाफत कर रहे थे. इसी दौरान, मैने ईसाई मिशनरी विलियम वेयर्स का जि़क्र किया था जिन्होंने कुरान पर तफसील से खोज-बीन करने के बाद, खुद इस बात को माना था कि कुरान आज भी वैसी ही है.
Ankerberg: यह बात इतनी गंभीर क्यों हैं अनीस, ऐसा कहना कि अल्लाह किसी आयत को देने के बाद उसे रद्द करके उसकी जगह नई आयत नहीं देता?
Shorrosh: क्योंकि, सर, यह ऐसा सुनाई देगा मानो परमेश्वर के पास स्वर्ग में दो कुरान हैं और इस पर उनके विचार को बदलने के लिए वह उन्हें यहवाली देता है, और उसके लिए वह दूसरीवाली देता है. यही कारण है कि आपको शक का बहुत तेज़ अहसास होता है कि क्या कुरान सचमुच परमेश्वर का वचन है. अगर वह एक आयत को भूल गया, तो वह दूसरी ले आयेगा. उनकी वे भूली हुई आयतें कहाँ पर हैं? और वे कहाँ पर हैं जिन्हें परमेश्वर ने बेहतर करके दिया था?
Ankerberg: ठीक है, आपका इस पर क्या कहना है कि एक बात कहीं पर कही गई है और ऐसा लगता है, अब, एक बार फिर, कृप्या करके इसे अपमान न समझें, लेकिन ऐसा लगता है कि जब मुहम्मद को नई पत्नी से जुड़े, लड़ाई से जुड़े, किसी शहर से जुड़े, उसे एकांत चाहिए था से जुड़े किसी प्रकाशन की ज़रुरत पड़ी, तो अचानक ही नये प्रकाशन उन मुद्दों पर कहते हैं. आप किसी आदमी को इस पर क्या बतायेंगे?
Badawi: इसका जवाब बहुत ही सीधा सा है. पहली बात, हमें ऐसा कहने से बचना चाहिए कि मुहम्मद को ज़रुरत पड़ी, क्योंकि यह उन पर इस बात का इल्ज़ाम लगाता है कि वह ख़ुदा से सुनने का दावा करनेवाले कोई बहुरुपिया थे, और पिछले कार्यक्रम में उनकी सच्चाई के ढेरो सबूतों पर हम पहले ही चर्चा कर चुके हैं, पहली बात. दूसरी बात: जिसे रद्द किया जाना कहा जा रहा है, वह पूरी तरह एक गलतफहमी है. कुरान इसकी एक अच्छी मिसाल देती है. इस्लाम के शुरुआती दिनों में जब लोग पीने-पिलाने में लगे हुए थे, तब उन्हें एकदम से बदलना न तो मुमकिन था और न ही अक्लमंदी. तो, ऐसे में उन्हें ऐसा करने से रोकने के लिये एक आयत आई. दूसरी कहती है कि नशे की हालत में दुआ मत करो. इसके बाद एक और आयत, जो कहती है कि बंद करो. इस तरह, यह लोगों में नशे की लत को छुड़ाने का कारगर तरीका था.