द्वारा: Dr. John Ankerberg / Dr. John Weldon; ©2003
धार्मिक समूह जो त्रिएकता का इनकार करते हैं, वह न केवल यीशु मसीह के व्यक्तित्व और कार्य का इनकार करते है परन्तु पवित्रात्मा के व्यक्तित्व और ईश्वरत्व का भी इन्कार करते हैं| यहोवा विटनेस पंथ यह सिखाते हैं कि “पवित्रात्मा परमेश्वर का सक्रिय सामर्थ्य है. वह व्यक्ति नहीं परन्तु एक शक्तिशाली बल है जो परमेश्वर अपने अंदर से उत्पन्न करता है ताकि वह अपनी पवित्र इच्छा को पूरी कर सके.”[1] Victor Paul Wierwille, द वे इंटरनेशनल संस्था के संस्थापक, कहते है कि “मसीहियों में आज सबसे अधिक गलत समझा जाने वाला विषय है पवित्रात्मा”, वायरविले विश्वास करते हैं कि पवित्रात्मा परमेश्वर के व्यक्तित्व का केवल एक पर्यायवाची शब्द है.[2] केवल परमेश्वर जिसे पिता कहा जाता है वही परमेश्वर है, जब कभी भी वायरविले “पवित्रात्मा ” शब्द का उपयोग करते है तब वह उसे पिता परमेश्वर के लिए ही काम में लेते हैं और बड़े अक्षरों में लिखते है और जब वह उसे छोटे अक्षरों में लिखते हैं तो उनका तात्पर्य आत्मिक वरदानों से होता है जो पिता परमेश्वर देता है. वायरविले के शिक्षा के अनुसार, बाइबल में पवित्रात्मा का अस्तित्व ही नहीं है.[3] वायरविले, यहोवा विटनेस और अन्य बहुत लोग यह दावा करते हैं कि पहली सदी की कलीसिया यह विश्वास नहीं करती थी कि पवित्रात्मा परमेश्वर हैं.
हालाँकि पहली सदी की कलीसिया में पवित्रात्मा का विचार यीशु मसीह के सिद्धांत की तुलना में अधिक विकसित नहीं था, फिर भी पवित्रात्मा को व्यक्ति और परमेश्वर के रूप में ही पहचाना गया था| निम्नलिखित स्रोत इसकी पुष्टि करते हैं:
एथेनागोरस (इनका मुख्य कार्य त्रिएकत्व की रक्षा करना, Embassy for the Christians, 176-180 ई. में रचित) वह पिता, पुत्र, और पवित्रात्मा के विषय में लिखते हैं कि मसीही लोग “उनकी सामर्थ्य, एकता और उनके क्रम में अनेकता दोनों कि घोषणा करते हैं.”[4]
एक विख्यात धर्मविज्ञानी हरोल्ड. ओ. ब्राउन, के अनुसार, ” तर्तुल्लीयन (160- 250 ई) पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पवित्रात्मा को परमेश्वर कह कर संबोधित किया और यह भी कहा की वह पिता परमेश्वर का ही तत्व हैं.”[5]
तर्तुल्लीययन अपने निष्कर्ष में कहतें हैं “इसलिए पिता और पुत्र का सम्बन्ध और पुत्र का पवित्रात्मा में, तीन सुसंगत व्यक्ति बनाते हैं, जो एक दूसरे से भिन्न भी हैं. ये तीनो एक ही तत्व हैं.[6]
यरूशलेम के सिरिल लिखते हैं कि “पवित्रात्मा पिता और पुत्र के साथ आदर पाता है और पवित्र त्रिएकत्व में पूर्ण रूप से सम्मिलित हैं. हम तीन ईश्वरों का प्रचार नहीं करते इसलिए मार्सियनवादी शांत रहें. हम न ही पवित्र त्रिएकता को विभाजित करते है जैसे कुछ लोगों ने किया, और न ही सबेल्लिउस की तरह हम इनको एक ही में मिला कर एक कर देते हे. निश्चय ही पवित्रात्मा महान है और उसके वरदान भी, सर्वशक्तिमान और अद्भुत हैं. “[7]
अथनेशियास लिखते हैं कि, “पवित्रात्मा सृजित नहीं हो सकती और उसे ऐसे पुकारना निंदा की बात है.”[8]
अगस्तीन ने पवित्रात्मा को कलीसिया के लिए एक वरदान कहते हुए लिखा है. “और इसलिए, पवित्रात्मा यद्यपि परमेश्वर हैं, उसे परमेश्वर का वरदान कहा जाये तो उचित ही हैं.”[9]
सिसरिया के बासिल ने लिखा, “परमेश्वर ने हमें एक ज़रूरी और बचाने वाला सिद्धांत दिया है की पवित्रात्मा को भी पिता के”तुल्य स्थान दिया जाये.[10]
ओरिगन का तर्क, ” यदि [वे अनन्तता में नहीं जैसे वो हैं ……] पवित्रात्मा को त्रिएकता की एकता में कभी भी गिना नहीं गया तो…न बदलने वाले पिता और उसके पुत्र के साथ वह हमेशा से ही पवित्रात्मा है.[11]
हम इस बात पर पुन: जोर देते हैं कि पहली सदी के विश्वासियों ने इन्ही कारणों से कि यह निष्कर्ष निकाला की पवित्रात्मा परमेश्वर हैं, जिन कारणों से उन्होंने यीशु मसीह को परमेश्वर माना हैं: क्योंकि यह परमेश्वर के वचन की गवाही है और उनके लिए एक ही विकल्प था. इसलिए, यदि हम परमेश्वर के वचन में खोजे की वह हमें पवित्रात्मा के बारे में क्या सिखाता है तो, हम परंपरागत त्रिएकत्व के विश्वास को वहाँ स्पष्ट रूप से देख सकतें हैं. उदाहरण के लिए, पवित्रात्मा पिता और पुत्र दोनों से भिन्न (यशा 48:16; मत्ती 28:19; लूका 35:21; यूहन्ना 14:16,17; इब्रा 9:8) तथा पवित्रात्मा स्पष्ट रूप में एक व्यक्तित्वहीन बल नहीं हैं जैसा यहोवा विटनेस के लोग दावा करते है परन्तु सच में एक व्यक्ति है. उदाहरण के रूप में , वह प्रेम करता है (रोमियों 15:30); पाप का बोध कराता है (यूहन्ना 16:8); अपनी व्यक्तिगत इच्छा प्रगट करता है (1 कुरि 12:11); आज्ञा देता है और मना भी करता है (प्रेरितों 8:29;13:2; 163:6) सन्देश देता है ( 1तीमु 4:1; प्रकाशित 2:7); मध्यस्थता करता है (रोमियों 8:26)तसल्ली देता है, शिक्षा देता है और सत्य की ओर ले चलता है (यूहन्ना 14:26) शोकित हो जाता है, निन्दित और अपमानित होता है (इफी 4:30, मरकुस 3:29; इब्रा 10:29).एक बार यदि यह बात साबित हो गई कि पवित्रात्मा एक व्यक्ति हैं तो उनके लिए उपयोग होने वाले शब्द अवैयक्तिक और निर्जीव शब्द है, जो वचन में उनके लिए उपयोग किये गए है. जैसे “हमें भरना”, “उडेला जाना” इत्यादि, यह दर्शाने के लिए नहीं की पवित्रात्मा अवैयक्तिक है परन्तु ये शब्द विश्वासियों के साथ उसके घनिष्ट सम्बन्ध को दर्शाने के लिए है.
पवित्रात्मा परमेश्वर हैं क्योंकि वह परमेश्वर के कार्यों को करता है और परमेश्वर के वचन में उसको परमेश्वर कहा गया है. उसमें परमेश्वर के सब गुण हैं, जैसे सर्वव्यापी (भजन 139:7,8); सर्वज्ञानी (1 कुरि 2:10-11); अनन्त है (इब्रा 9:14); सर्वशक्तिमान है(अय्यूब 33:4) और वह अनन्त जीवन देता है (यूहान 3:3-8). वह सृष्टिकर्ता भी है (अय्यूब 33:4, उत्पत्ति 1:2). किसी भी अवैयक्तिक बल (यहोवा विटनेस) और सीमित ईश्वर (मोरमोनवादी) के पास इस प्रकार के व्यक्तिगत और ईश्वरीय गुण नहीं है जैसे परमेश्वर का वचन पवित्रात्मा के विषय में कहता है.
परमेश्वर के वचन के द्वारा यह बात स्पष्ट है कि पवित्रात्मा, ईश्वरीय कार्यों और ईश्वरीय संगति के द्वारा परमेश्वर है. वह सब विश्वासियों में वास करता है (यूहन्ना 14:23; 2 कुरि 6:16); सब के साथ यत्न करता है और संसार को उनके पापों का बोध कराता और यीशु पर विश्वास करने की आवश्यकता के बारे में बताता है (उत्पत्ति 6:3 यूहन्ना 16:8 के साथ 1 पतरस 3:20); ईश्वरीय प्रेरणा देता है (2 पतरस 1:21 लुका 1:68- 70 के साथ प्रेरितों 1:1; 28:25; यशा 6:1-13; इब्रा 10:15-1 यिर्म 31:31-34 के साथ) शुद्ध करता है (2 थिस 2:13-14, 1 थिस 4:7 के साथ). और उसके ईश्वरीय कार्य में वह मजदूरों को भेजता है (मत्ती 9:38 प्रेरितों 13:2-4 के साथ; तुलना करें भजन 95:6-9 इब्रियों 3:7-9 साथ;. 1 थिस्सलुनीकियों 3:12 के साथ रोमियों 5:5-13 और 2 थिस्सलुनीकियों 3:5) पवित्रात्मा को परमेश्वर भी कहा गया है. प्रेरितों 5:3-4 जिससे झूठ बोला गया उसे पहले पवित्रात्मा कहा गया है और फिर शीघ्र ही परमेश्वर. उसे “प्रभू ” कह कर पुकारा गया है (2 कुरी 3:18 में, इब्रा 10:15- 16 में). यशा 6:8-9 और प्रेरितों 28:25- 26 में एक जगह “प्रभू” (परमेश्वर) को यशायाह के साथ बातें करते हुए दर्शाया गया है और दूसरे स्थान में वही सन्देश पवित्रात्मा के द्वारा यशायाह तक पहुंचा.
बाइबल में केवल एक अनन्त पाप के विषय में कहा गया है और वह पवित्रात्मा की निंदा करना है(मत्ती 12:32) हरेक पाप जो पिता परमेश्वर और पुत्र परमेश्वर के विरोध में किया गया है क्षमा किया जा सकता है(मत्ती 12:32) परन्तु पवित्रात्मा की निंदा कभी क्षमा नहीं की जायेगी. ऐसा कैसे हो सकता है यदि पवित्रात्मा केवल एक सृष्टि या एक अवैक्तिक बल है? किस पाप के विषय में यहाँ कहा गया है? मृत्यु तक अविश्वासी रहना ही अनन्त पाप है: यह पवित्रात्मा और यीशु मसीह के लिए उसकी गवाही (यूहन्ना 16:8) की निंदा है. इसलिए पवित्रात्मा पाप क्षमा के लिए यीशु मसीह पर विश्वास करने (यूहन्ना 16:8) के आव्हान को अस्वीकार करना असाम्य पाप है. क्यों? क्योंकि वे यीशु पर विश्वास करने से इनकार करते हैं जिसके द्वारा ही उद्धार मिल सकता है. अतः पवित्रात्मा, निश्चय ही परमेश्वर है क्योंकि मनुष्य अनन्त परमेश्वर के विरूद्ध ही पाप करता है. निःसंदेह पवित्र आत्मा के व्यक्तित्व और ईश्वरत्व के विषय में परमेश्वर के वचन में इतनी गहराइयाँ है जिनकी मनुष्य कल्पना भी नहीं कर सकता.[12]
पवित्रात्मा जिसका काम है यीशु मसीह की महिमा करना, उसे ऐतिहासिक मसीही कलीसिया ने त्रिएकत्व में उनको सही स्थान दिया है, परन्तु दुःख की बात यह है कि दुसरे पंथो ने उसे वह आदर नहीं दिया जिसके वह योग्य है.
नोट्स
1. ↑ Watchtower Bible and Tract Society, Reasoning from the Scriptures (Brooklyn, NY: Watchtower Bible and Tract Society, 1985), पृ. 381.
2. ↑ Victor Paul Wierwille, Jesus Christ Is Not God (New Knoxville, OH: American Christian Press, 1975), पृ. 127.
3. ↑ Ibid., Appendix A; cf. Victor Paul Wierwille, Receiving the Holy Spirit Today (New Knoxville, OH: American Christian Press, 1976), अध्याय 1.
4. ↑ E. Calvin Beisner, God in Three Persons (Wheaton, IL: Tyndale, 1984), p. 53, citing Alexander Roberts and James Donaldson (eds), The Ante-Nicene Fathers: Translations of the Writings of the Fathers Down to AD 325, Vol. 2, p. 133, A Plea for the Christians, एक्स
5. ↑ Harold O. J. Brown, Heresies (Garden City, NY: Doubleday, 1984), pp. 140-141.
6. ↑ तेर्तुल्लियन, Against Praxeas, पृ. 25, cited in Brown, Heresies, पृ. 145.
7. ↑ Cyril of Jerusalem, “Catechetical Lecture,” 16, para. 4, in Maurice Wiles and Mark Santer (eds.),Documents in Early Christian Thought (कैम्ब्रिज: कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, 1979), पृ. 82.
8. ↑ Athanasius, “Third Letter to Serapion,” I, in Wiles and Santer, पृ. 85.
9. ↑ Augustine, “On the Trinity,” VX, xvii, 32, in Wiles and Santer, पी. 94.
10. ↑ Basil of Caesarea, “The Book of Saint Basil on the Spirit,” Chapter X, para. 25 in Philip Schaff and Henry Wace, A Select Library of Nicean and Post-Nicean Fathers of the Christian Church, Second Series, Vol. 8 (Grand Rapids, MI” Eerdmans, 1975), पृ. 17.
11. ↑ In Beisner, God in Three Persons, p. 64, citing Roberts and Donaldson, Ante-Nicene Fathers, वॉल्यूम. 4, पृ. 253; डे Principus I.iii.4.
12. ↑ See Edward Henry Beckersteth, The Holy Spirit: His Person and Work (Grand Rapids, MI: Kregel, 1967) for an excellent scriptural study on the personality and deity of the Holy Spirit.