द्वारा: John G. Weldon; ©2012
“आदि में वचन था और वचन परमेश्वर के साथ या और वच नही परमेश्वर था” यही आदि में परमेश्वर के साथ था। सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न होगा और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उसमें से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न नही हुई. (यूहन्ना 1: 1, 1: 14).
सरल शब्दों में कहा जाए तो, ”पुनरूद्वार“ (विस्मयकारी) का अर्थ है, अनादि परमेश्वर जो अपने मुंह के उच्चारण से ही जगत को अस्तित्व में लाया, यथार्थ में मनुष्य बना, विशेष करके, त्रिएक परमेश्वर का द्वितीय अंश निश्पाप मानवीय स्वभाव लेकर उत्पन्न हुआ क्यों? अपने असीम प्रेम एवं अपनी असीम करूणा में हमारी अभागी अवस्था को देखकर, उसने मानव देहधारण किया कि क्रूस पर अपनी विस्मयकारी मृत्यु द्वारा इस संसार का उद्धारक हो. (: 16; १ यहुन्ना 2: 3 यूहन्ना 2; 4: 10, 14). उसने यह काम इस प्रकार किया कि वह पूर्ण परमेश्वर होते हुए भी पूर्ण मानव बना अर्थात उसका ईश्वरत्व कम नही हुआ परन्तु वह मनुष्यत्व में भी परिपूर्ण हुआ, एक ही व्यक्तित्व में. इसका अर्थ है कि उद्धार के इस कार्य में परमेश्वर का परम न्याय पूरा हो और मानवीय स्वभाव में भी किसी प्रकार की कमी न आए. यह एक ही बार का काम था जो फिर कभी दोहराया नहीं जाएगा, परन्तु देहधारण-अद्वैत ईशमानव सदाकालीन अस्तित्व में रहेगा.
परन्तु यह ऐतिहासिक तथ्य संपूर्ण इतिहास का एकमात्र चमत्कार होते हुए भी प्रायः अनदेखा किया जाता है जबकि कुछ लोगों का विवाद है कि यह पुनरूत्थान के बाद दूसरे स्थान पर आता है. [1] पुनरूत्थान को ही तो हम प्रत्येक ”बड़े दिन“ पर मनाते हैं. इसमें हमें अनुग्रह के द्वारा; महिमामय स्वर्ग में एक अनन्तकालीन दिन. जीवन का निर्मोल वरदान दिया गया है. यह याचना का विषय है अर्थात् इसका उत्सव लगातार मनाना चाहिए. यह एक ऐसा वरदान है जिसका दिया जाना अन्तहीन है.[2]
अब कोई यह पूछे. करोड़ों लोग यह मानने को कैसे तैयार हो गए कि यदि अनन्त परमेश्वर का ऐतिहासिक स्थान का पुनरूत्थान वास्तव में हुआ है?
अधिकांश जन मनुष्य यहाँ आकर मसीही सन्देश की अद्वैतता को समझने में असमर्थ है क्योंकि अन्य किसी भी धर्म में ऐसी समानता दूर तक नहीं है, इसके आगे, एक अखण्ड विवाद यह भी है कि ऐसी कोई भी बात विश्वास के योग्य नहीं हो सकती जब तक कि वह वास्तव में घटी न हो. अब यहाँ महत्वपूर्ण बात जो है, वह यह है कि इसका व्यापक विश्वास नहीं इसकी विशेषता क्या है. उदाहरणार्थ, करोड़ों लोग अल्लाह आदि पैगमबर मोहम्मद में विश्वास करते है और पूर्वी देशों में पुनर्जन्म में विश्वास किया जाता है परन्तु इस दोनों ही के प्रमाण नहीं है.[3] दूसरे शब्दों में पुनरूत्थान के सम्बन्ध में, करोड़ों लोगों को आश्वस्त करने के लिए कैसे प्रमाण की आवश्यकता होगी कि एक अनादि अनन्त परमेश्वर ने देहधारण किया अर्थात वह मनुष्य बना? इसमें प्रभु यीशु स्वयं ही एक प्रमाण है जो मानवीय इतिहास में सर्वशक्तिमान अद्वैत एवं अधिकार सम्पन मनुष्य था जिसके तुल्य अन्य कोई नहीं. वह सदेह मृतकों में से जी उठा जो उसके परमेश्वर होने का एक निश्चित प्रमाण है.[4] (प्रभु यीशु की अद्वैत अवस्था को समझने के लिए केवल बाइबल में सुसमाचार वृत्तांतों को पढ़ने की आवश्यकता है जो दुर्भाग्य से ऐसा काम है जो अधिकांश जन बहुत ही कम करते हैं.)
उदाहरण के लिए, कोई मसीही कलीसिया को पुनरूत्थान के बिना कैसे अस्तित्ववान कह सकता है? उपलब्ध ऐतिहासिक तथ्य भी प्रमाण है, क्या इस व्याख्या का अन्य कोई विकल्प भी है? यदि कोई इस पर विचार करे तो इससे हट कर अन्य विश्वासयोग्य व्याख्या नहीं है. यह प्रभु यीशु का सदेह पुनरूत्थान है जो मसीही धर्म के अस्तित्व का एकमात्र तार्किक वाद है.[5]
संसार में ऐसा कोई धर्म नहीं हुआ है और न ही आज है जिसमें पुनरूत्थान की कभी कोई ऐतिहासिक घटना हुई है. अब एक प्रश्न उठता है, संसार में एक ही धर्म ऐसा क्यों है जिसमें उसके कर्ता का यथार्थ में सदेह मृतकोत्थान हुआ है?
इसी प्रकार, अन्य किसी भी धर्म में ऐसा परमेश्वर नहीं है जिसने परमेश्वर ने देहधारण किया और हमारी घोर आवश्यकता के निमित्त अर्थात पापों की क्षमा के लिए अपनी जान की आहुति दे दी. (3 यूहन्ना: 16; रोमियों 5: 8; १ यहुन्ना 4: 10).[6]
“देहधारण” अतः भाषा का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण शब्द है. एक ओर तो यह एक ऐसी महिमामय शिक्षा है जिसमें परमेश्वर की उपस्थिति तथा दिव्यता दोनों ही व्याप्त है अर्थात सीमित और असीमित दोनों है. सांसारिक एवं ऐतिहासिक दोनों और फिर भी दूसरी ओर यह एक ऐसी महत्वपूर्ण एवं व्यावहारिक शिक्षा है कि यह प्रत्येक मनुष्य के अनन्त जीवन को प्रभावित करती है, इसमें पाठकगण भी आते हैं. (3 यूहन्ना: 16).[7] It is something that, paradoxically, at one time never existed – but then in an instant exists forever.
देहधारण तो उसी पल हो गया था जब प्रभु यीशु को कुंवारी मरियम ने गर्भ में धारण किया था और यह पवित्र-आत्मा द्वारा संभव हुआ था (ल्यूक 1 :26-38).[8] अब प्रभु यीशु के इन दोनों स्वभावों में उलझन उत्पन्न न करते हुए, पुत्र परमेश्वर का ईश्वरीय स्वभाव एक मनुष्य में निष्पाप स्वभाव के साथ बड़े ही अद्वैत रूप से संयोजित हुआ था. या हम यह भी कह सकते हैं कि प्रभु यीशु परमेश्वर है जो कभी मनुष्य नही हो सकता था और फिर भी मनुष्य है जो कभी परमेश्वर नहीं हो सकता अर्थात एक सिद्ध ईशमानव, तथापि, प्रभु यीशु के मानवीय तथा ईश्वरीय स्वभाव को कभी स्पष्ट शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है. क्योंकि इस शिक्षा में रहस्य है. (त्रिएक परमेश्वर का अनन्त व्यक्तित्व) इस कारण अनेक भ्रमित शिक्षाओं का विकास हुआ है क्योंकि उन्होंने बाइबल पर गहन चिन्तन नही किया है.[9]
परन्तु कुछ शिक्षाएं महत्वपूर्ण हैं प्रभु यीशु के देहधारण के बिना कलवरी पहाड़ी पर उसकी प्रायश्चित बलि (मृत्यु) हो ही नहीं सकती थी और पापों से उद्धार संभव नहीं था. यदि परमेश्वर देहधारण नहीं करता तो मसीही सुसमाचार नहीं होता और न ही मसीही विश्वास होता. देहधारण के बिना क्या रह जाता है? प्रेरित पौलुस प्रभु यीशु के पुनरूत्थान के बारे में जो कहता है वह उसके देहधारण के बारे में भी सच है यदि देहधारण नहीं तो तुम्हारा विश्वास करना व्यर्थ है. तुम अब भी पाप में ही हो. (१ कुरिन्थियों 15:17). निःसन्देह प्रत्येक मसीही धारण विलोप हो जाती है.
परन्तु सच तो यह है कि प्रभु यीशु देहधारी परमेश्वर था जैसा कि धर्मशास्त्र का पुराना नियम एवं नया नियम व्यक्त करते हैं,[10] और निष्चय ही वह मृतकों में से फिर जीवित हुआ है,[11] जो उसके देहधारी परमेश्वर होने का प्रमाण है.
अब हम पुनः उसी विचार पर आते है कि संसार के किसी भी धर्म में परमेश्वर का देहधारण नहीं है. इसकी किसी न किसी प्रकार व्याख्या करना आवश्यक है. यह वही जो मसीही धर्म सिखाता है कि उद्धार विश्वास के द्वारा परमेश्वर के अनुग्रह से है. केवल मसीही धर्म में यह शिक्षा है अतः आवश्यक है कि इस विचार के उद्गम की व्याख्या की जाए. इसकी व्याख्या में केवल एक ही बाइबल आधारित है दूसरे शब्दों में संसार के सब धर्म कर्मकाण्ड की शिक्षा देते हैं तो मसीही विश्वास में उद्धार केवल परमेश्वर के अनुग्रह से है, यह कैसे हो सकता है, जब तक कि यह ईश्वरीय प्रकाशन द्वारा न हो?
एक ही तर्क अवतार के लिए सच है. क्यों अन्य ने दावा अवतार स्पष्ट रूप से पौराणिक है जब का उसमें समय अंतरिक्ष इतिहास हुआ है कि एक अवतार वहाँ जो? एक दिव्य रहस्योद्घाटन जो कि अवतार जो पर्याप्त विवरण.
महान धर्म सुधारक मार्टिन लूथर का कहना अति उचित था अन्ततः संसार में केवल दो ही धर्म हैं, कर्मकाण्ड का धर्म और अनुग्रह का धर्म. एक विशिष्ट मसीही लेखक जी. के. चेस्टरटन भी अपनी शिक्षा में सही थे जब उन्होंने तुलनात्मक धर्म के संदर्भ में कहा कि “देहधारण केवल मिटटी और अपवाद है.” चेस्टरटन का कहना था कि केवल एक ही है इसलिए परमेश्वर भी एक ही है जो एकमात्र सच्चा ईश्वरीय है और उद्धार का भी एक ही सच्चा मार्ग है. इससे प्रकट होता है कि अन्य धर्म ईश्वरीय प्रकाशन के मात्र दिखावे हैं चाहे उनकी मन्शा कैसी भी भली क्यों न हो.
अन्ततः अन्य सब धर्म एक दूसरे से स्पर्धा करते हैं. सब धर्म सत्य न हों परन्तु यदि सत्य तो केवल एक ही धर्म है और देहधारण का ऐतिहासिक सत्य इसे दर्शाता है कि कौन सा धर्म सच्चा है . इसका अर्थ क्या है? इसका तर्क सम्मत अभिप्राय यह है कि केवल एक ही ईश्वरीय देहधारण है इसलिए सच्चा परमेश्वर भी एक ही है (अन्य सब ईश्वर अस्तित्व-रहित मूर्तियां है, भजन 96:5). यदि केवल एक ही सच्चा परमेश्वर है तो बात समझ में आती है कि उद्धार का एक ही सच्चा मार्ग है, परमेश्वर तक पहुँचने का एक ही मार्ग है और स्वर्ग का एक ही सच्चा मार्ग है (14:06 यूहन्ना; प्रेरितों 4: 12; 1 तीमुथियुस 2:5 -6).
अन्य धर्म- हिन्दु, बुद्ध, इस्लाम आदि ने कभी भी अपने दावों का आश्वासन प्रभावित नहीं किया है उनके धर्मशास्त्रों में अनन्त, सर्वज्ञानी, तार्किक एवं सत्य परमेश्वर कैसे ऐतिहासिक, वैज्ञानिक, तार्किक और आत्मिक अप्रमाणिकता को कैसे आने देता है अर्थात उनके ईश्वरों का अपना कथित प्रकाशन. इस प्रकार की यथार्थ त्रुटिओं को जानने के लिए केवल उनके धर्मशास्त्रों को पढ़ना ही प्र्याप्त है.
बुद्ध धर्म हिन्दु धर्म और इस्लाम और अन्य सब धर्मों के तथ्य प्रकट करते है कि यीशु की अपेक्षा अन्य कोई देहधारण नहीं हुआ है.[12]
संसार में अन्य सब धर्मों की तुलना में, केवल मसीही धर्म है जिसमें परमेश्वर समय और इतिहास में देहधारण करता है. धर्म के सब प्रवर्तकों में केवल प्रभु यीशु ही एक है जो मृतकों में से सदेह फिर जीवित हुआ है जो उसके देहधारिक परमेश्वर होने का प्रमाण है,[13] जिसमें द्वारा वह स्वयं को अचूक अधिकार स्थापित करता है.
परन्तु केवल यही नहीं कि मसीही धर्म में ऐतिहासिक देहधारण है परन्तु केवल मसीही धर्म में ही देहधारी परमेश्वर है जो पाप, परमेश्वर से विद्रोह और उसके परिणामों पर रोता है (; 11:35 यूहन्ना ल्यूक 19:41); उसने हमारे पापों के लिए कल्पना से परे दुःख उठाया और हमारे पापों का दण्ड चुका कर क्षमादान के लिए तथा हमारे लिए अनन्त जीवन का निर्मोल वरदान उपलब्ध कराने के लिए अति भयानक मृत्यु मारा गया केवल इसलिए कि वह हमसे असीम प्रेम रखता है. उसने पवित्रता द्वारा हमारे अनन्त जीवन की अनिवार्यओं के निमित्त अवणिति मूल्य चुकाया है.[14]
मनुष्य के द्वारा उपासना के सब ईश्वरों की तुलना में केवल मसीही धर्म का परमेश्वर ही ऐसा करता है वही एक ऐसा परमेश्वर है जिसने हमें अपनी नियति का सामना करने के लिए भवसागर में छोड़ नहीं दिया है, केवल वही है जिसने हमें मुक्ति दिलाई है, आज के लिए नहीं वरन् अनन्तकाल तक के लिए.
यही एक कारण है कि वह हमारे समर्पण, विश्वास और आराधना के योग्य है. यदि हमने प्रभु यीशु में विश्वास नहीं किया ओर पापो से उद्धार के लिए उसमें भरोसा नहीं रखा तो अब जब हमारे पास समय है तो हमें ऐसा करना चाहिए. हर विवाद के उपरान्त केवल एकमात्र देहधारण यही है जो हमारे लिए परमेश्वर के प्रेम का प्रमाण है. प्रावधान केवल एक ही है, हमें उसमें विश्वास करना है और हमारे लिए देहधारी परमेश्वर में आस्था उत्पन्न करना है.
“परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि अपना एकलौता पुत्र दे दिया कि जो कोई उसमें विश्वास करे वह नाश न हो परन्तु अनन्त जीवन पाए” (3 यूहन्ना: 16).
यदि आपको मसीही विश्वास के सम्बन्ध में अधिक जानकारी चाहिए तो होम पेज देखें www.JAshow.org
प्रस्तावित अध्ययन (यहां उपलब्ध है: www.Amazon.com)
Robert Glenn Gromacki, The Virgin Birth: Doctrine of Deity.
Charles H. Spurgeon, Christ’s Incarnation, the Foundation of Christianity.
Arthur Custance, The Virgin Birth and the Incarnation.
Thomas F. Torrance, Incarnation: The Person and Life of Christ.
David F. Wells, The Person of Christ: A Biblical and Historical Analysis of the Incarnation.
Oskar Skarsaune, Incarnation: Myth or Fact? अथानासिउस, On the Incarnation. (ऑनलाइन भी उपलब्ध है.)
J. Gresham Machen, The Virgin Birth of Christ.
Sir James Norman D. Anderson, The Mystery of the Incarnation.
Harry Rimmer, A Scientist’s Viewpoint of the Virgin Birth of Jesus Christ.
Stephen T. Davis, et al., eds. The Incarnation: An Interdisciplinary Symposium on the Incarnation of the Son of God.
Paul D. Molnar, Incarnation and Resurrection: Toward a Contemporary Understanding.
नोट्स
1. ↑ उदाहरणार्थ प्रभु यीशु के देहधारण और मध्यस्थ होने की बाइबल आधारित शिक्षा वास्तव में भयोत्पादक है. यह शिक्षा हम में आश्चर्य उत्पन्न करती है केवल इसलिए नहीं कि यह एक भेद की बात है और मानवीय समझ के परे है परन्तु, प्रभु यीशु के दो स्वभावों बेजोड़ एकता धर्मशास्त्र का सबसे बड़ा चमत्कार है. (Rev. Brian Schwertley, “The Incarnation of Christ”, [Entrewave Entrewave]; http://entrewave.com/view/reformedonline/Incarnation.htm.) निःसन्देह प्रभु यीशु का सदेह पुनरूत्थान सबसे बड़ा प्रत्यक्ष चमत्कार और एक प्रमाण है कि मृत्यु पर विजय प्राप्त की जा चुकी है तथापि बाइबल के आधार पर मैं विश्वास करता हूँ कि देहधारण! कुंवारी से यीशु का जन्म सबसे बड़ा चमत्कार है जैसा कि मेरा आनेवाला लेख स्पष्ट करेगा.
2. ↑ विचार विमर्श हेतु देखें John G. Weldon, “Heaven: A World of Love”, the John Ankerberg Show;http://www.jashow.org/wiki/index.php?title=Heaven_-_A_World_of_Love.
3. ↑ उदाहरण के लिए, देखें www.answering-Islam.org या John Ankerberg, John Weldon, Fast Facts on Islam के आधार पर पुनर्जन्म का खण्डन किया गया है इब्रानियों 9: 27, परन्तु मेरी आने वाली पुस्तक में मैं अन्य आधारों पर भी इसकी चर्चा करूंगा देखें Mark C. Albrecht, Reincarnation: a Christian Critique of a New Age Doctrine उपलब्द हे ऑनलाइन: http://www.ccel.us/reincarnation.toc.html
4. ↑ See next footnote.
5. ↑ === उत्तरोक्त के सम्बन्ध में चर्च आफ इंगलैण्ड के डरहाम के बिशप नये नियम के विद्वान एन.टी. राइट परमेश्वर पुत्र के पुनरूत्थान पर प्रभावी चर्चा करते हैं, माइक लिकोना का लेख भी देखें, The Resurrection of Jesus, A New Historiographical Approach and my brief article, “The Resurrection As Historical Fact? “The John Ankerberg show; Http :/ / www.jashow.org/wiki/index.php?title=The_Resurrection_as_Historical_Fact% 3F === यही तर्क देहधारण एवं कुंवारी से जन्म, मेरा आने वाला लेख भी एक कुंवारी से जन्म के सम्बन्ध में देखेंwww.JAshow.org.
6. ↑ देहधारण धर्म की शिक्षा में गम्भीर विषय, विषय नहीं है, यह धर्म सत्यावन में भी गम्भीर विषय है, उदाहरणार्थ, मसीही धर्म की बेजोड़ स्थिति प्रभु यीशु के ऐतिहासिक देहधारण तथा तदोपरान्त उसके सदेह पुनरूत्थान द्वारा सिद्ध होती है. अन्य किसी भी धर्म में उसके प्रवर्तक न तो ऐतिहासिक देहधारण है और न ही मृतकोत्थान है. अतः मसीही धर्म संसार के सब धर्मों की तुलना में बेजोड़ है, उसका अद्वैतपन अनुग्रह द्वारा विश्वास से केवल मसीह के माध्यम से उद्वार ही नही परमेश्वर कौन है और वह कैसा है तथा वह हमसे प्रेम करता है, इन विषयों की शिक्षा में भी मसीह धर्म का जोड़ नहीं है. देहधारण और प्रायश्चित का ईश बलिदान इतिहास और समय में परमेश्वर के प्रेम और उसके न्याय को प्रकट करता है, देहधारण में परमेश्वर हमसे प्रेम करता तो है परन्तु वह अपने सिद्व न्याय को भी प्रकट करता है. ऐसी शिक्षा अन्य किसी धर्म में नहीं है. लिखा है कि परमेश्वर ने अपना प्रेम इस रीति से प्रकट किया कि जब हम पापी ही थे तब वह हमारे लिए मर गया. यह सिद्व प्रेम है. (रोमन 5 8). यह नहीं कि हमने पहले परमेश्वर से प्रेम किया परन्तु यह कि उसने पहले हमसे प्रेम किया और अपने पुत्र को हमारे लिए प्रायश्चित बलि होने के लिए भेजा. १ यहुन्ना 4: 10). “परन्तु अब व्यवस्था से अलग परमेश्वर की वह धार्मिकता उत्पन्न हुई है जिसकी गवाही व्यवस्था और भविष्यद्वक्ता देते हैं; अर्थात परमेश्वर की यह धार्मिकता जो प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने से सब विश्वास करने वालों के लिये हैं. क्योंकि कुछ भेद नहीं; इसलिये कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं, परन्तु उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो यीशु मसीह में हैं, सेत-मेत धर्मी ठहराए जाते है. उसे परमेश्वर ने उसके लहू के कारण एक ऐसा प्रायश्चित ठहराया, जो विश्वास करने से कार्यकारी होता है, कि जो पाप पहले किये गए और जिन पर परमेश्वर ने अपनी सहनशीलता के कारण ध्यान नही दिया. उनके विषय में वह अपनी धार्मिकता प्रगट करें. वरन् इसी समय उसकी धार्मिकता प्रगट हो कि जिससे वह आप ही धर्मी ठहरे, और जो यीशु पर विष्वास करे उस पर भी धर्मी ठहरानेवाला हो. (रोमियों 3 :21-26). इस प्रकार देहधारण परमेश्वर के न्याय को प्रकट करता है. (रोमियों 3 :25-26) क्योंकि परमेश्वर पूर्ण परमेश्वर था. क्योंकि मसीह पूर्ण परमेश्वर था, वह परमेश्वर के आसीम दण्ड को पूरा का पूरा उठाने में सक्षम था. मनुष्य के पाप का दण्ड जो परमेश्वर ने मानवजाति पर ढा दिया था. क्योंकि वह पूर्ण मानव था वह पाप क्षमा के लिए मानवजाति का प्रतिनिधित्व कर सकता था. यहाँ फिर वही बात प्रकट है कि देहधारण के बिना पाप मुक्ति या उद्धार संभव नही है.
7. ↑ देहधारण का महत्वपूर्ण स्वभाव व्यक्त करता है कि मनुष्य जो इस युग का महानतम् प्रचारक है. उन्नसवीं शताब्दी में ही मनुष्य ने 1 करोड़ लोगों को सुसमाचार सुना दिया था और सबको पीछे छोड़ देने वाला मनुष्य, चाल्र्स स्पर्जन जिसने परमेश्वर को सृष्टि में महिमामय दर्शाया, उसने उसके देहधारण को सर्वोच्च कहा है, “हे सृष्टि क्लांत हो जाने तक स्तुति कर परन्तु देहधारण की मधुर स्तुति में तू ऐसा गान नहीं गा सकती है, प्रभु यीशु के खटोले चरनी में जो संगीत है वह सम्पूर्ण सृष्टि की मधुरवाणी में भी नहीं है. बेतलहम में जन्में शिशु के सुसमाचार में जो वैभव है वह सर्वोच्च परमेश्वर के सिंहासन के पहुं और उपस्थित परिक्रमा करते मूक संसार में भी नहीं है,” (Charles Spurgeon, Christ’s Incarnation: The Foundation of Christianity, Amazon Kindle, Opening Note.)
8. ↑ देखें मेरा लेख – www.JAshow.org.
9. ↑ देहधारण के विषय में सर्वोत्तम एवं सरलतम पुस्तक (वह क्या है क्या नहीं) Dr. Robert Glenn Gromaki द्वारा लिखी गई है. देखें कि गलत शिक्षा मसीही शिक्षा पर कैसा बुरा प्रभाव डालती है, Harold O.J. Brown’s Heresies: Heresy and Orthodoxy in the History of the Church, में पाई जाती है. गलत शिक्षाओं में एक ध्यान देने योग्य शिक्षा है ग्लोस्टिसिज्म जिसमें प्रभु यीशु को देहधारी नहीं माना गया है. एरयन विचार में प्रभु यीशु सृजित प्राणी था वह परमेश्वर नहीं था. डोसेटिज्म में प्रभु यीशु वास्तविक मनुष्य नहीं माना गया था. ने स्टोरियन विचार में परमेश्वर का पुत्र और प्रभु यीशु दो अलग-अलग व्यक्तित्व हैं. यूटिखियामिज्म में प्रभु यीशु में दो नहीं एक ही स्वभाव था. उसका ईश्वरीय स्वभाव मानवीय स्वभाव पर जयवन्त था. मोनोफिजीटिस्म में प्रभु यीशु के ईश्वरीय और मानवीय स्वभाव ऐसे विल्य हो गए थे कि एक नया स्वभाव उत्पन्न हो गया था. एडोप्रशमिज्य में प्रभु यीशु जन्म के समय तो मनुष्य था परन्तु बपतिसमा पाने पर उसमें परमेश्वर प्रवेश कर गया. इन गलत शिक्षाओं के कारण आज अनेक बाइबल विरोधी धर्मों का उदय हो गया है जैसे यहोवा विट्नेस (एरियन विचार), खिस्तदेल्फियनिज्म, यूनिटेरियन, यूनिवर्सालिज्म, स्वीडेनबलेमियानिज्म मोश्मोन्स, आदि अन्य अनेकों कुछ वर्ष पूर्व मैंने एक पुस्तक पढ़ी थी जिसमें 200-300 मसीही फिरकों का उल्लेख किया गया था, (या लगभग 800-900 थे) यह तो आरंभिक तीन शताब्दियों की बात है, परन्तु परिवर्तन आज तक नहीं आया है.
10. ↑ उदाहरणर्थः पुराने नियम में देहधारण के विषय भजनकार, भविष्यद्वक्ता यशायाह और मीका शिक्षा देते हैं. अब-जब कोई पद प्रभु यीशु को परमेश्वर का पुत्र कहता है (अनेक स्थानों पर) या अभिप्रेत करता है कि परमेश्वर मानव रूप में उपस्थित है वो देहधारण आवश्यक हो जाता है. प्रभु यीशु के बपतिस्मे पर परमेश्वर ने स्वयं आकाशवाणी में कहा था, “यह मेरा पुत्र है” (मत्ती 3: 17). उदाहरण देकर स्पष्ट क्लासिक मुक्तिदाता छंद निम्नलिखित पर विचार करने के लिए: भजन बनानेवाला के अनुसार, 7-11: – “पुत्र को चूमो, ऐसा न हो कि वह क्रोध करे और तुम मार्ग ही में नष्ट हो जाओ क्योंकि क्षण भर में उसका क्रोध धड़कने को है. धन्य है वह जिनका भरोसा उस पर है. (भजन 2: 12NLT, विशेष रूप से संदर्भ, 2 देखना पूरे पवित्र शास्त्र की गिल की प्रदर्शनी शब्द भी प्यार, सम्मान, पूजा दर्शा सकते सबमिट करें.) पैगंबर यशायाह .. – “इस कारण प्रभु आप ही तुमको एक चिन्ह देगा. सुनो एक कुमारी गर्भवती होगी और एक पुत्र जनेगी और उसका नाम इम्मानुएल रखेगी. (यशायाह 7: 14) “के लिए पैदा हुए बच्चे जो लिए ]” एक बेटा जो ] ” सरकार अपने कंधों पर आराम करेंगे और वह बुलाया जाएगा करने के लिए दिया: ताकतवर अनन्त पिताजी, कमाल काउंसेलर [सचमुच : अनंत काल के पिता], शांति का राजकुमार ” (यशायाह 9: 6). पैगंबर मीका – “हे बैतलहम एप्राता, यदि तू ऐसा छोटा है कि यहूदा के हजारों में नही गिना जाता तौभी मुझ में से मेरे लिये एक पुरूष निकलेगा, जो इस्त्राएलियों में प्रभुता करने वाला होगा, और उसका निकलना प्राचीनकाल से, वरन् अनादी काल से होता आया है.” (मीका 5: 2). डाॅ. बेली इस अद्भुत भजन पर टीका करते हुए कहते हैं, “यह भजन अपने विषय मसीह के अस्वीराज्य, उसका उदय, विरोध और धीरे-धीरे बढ़ने के विषय के कारण ही अद्भुत नहीं है वरन् संदर्भित मनुष्य के महिमामय परिवर्तन के कारण भी अद्भुत है. पहले पद में भविष्यद्वक्ता कह रहा है, तीसरे में विरोधी, और चैथे एवं पांचवे में भविष्यद्वक्ता उत्तर देता है. छठवे में यहोवा कहता है और सातवें में मसीह तथा आठवे और नवें में यहोवा उत्तर देता है तथा 10-12 में भविष्यद्वक्ता विरोधियों से कहता है कि वे आज्ञाकारी बने तथा आत्मसमर्पण करें. Clarke’s Commentary on the Bible; http://bible.cc/psalms/2-12.htm) यीशु मसीह खुद उन्होंने परमेश्वर अवतार था सिखाया. उदाहरण के लिए, पर विचार इब्रानी पवित्र शास्त्र उसमें सादा अंग्रेजी यूहन्ना 8 का अनुवाद: 58, “यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ कि पहले इसके कि अब्राहम उत्पन्न हुआ, मैं हूँ.” प्रभु यीशुने स्वयं कहा कि वह देहधारी परमेश्वर है. “यहूदियों ने उसको उत्तर दिया,” भले काम के लिए हम तुझ पर पथराव नहीं करते परन्तु परमेश्वर की निन्दा करने के कारण; और इसलिये कि तू मनुष्य होकर अपने आप को परमेश्वर बताता है.” यूहन्ना 10: 33), वह उसकी हमारे पिता परमेश्वर बुला रहा था नहीं वह साथ उससे बराबर बना रही है, सब्बाथ तोड़ रहा था, ” यहूदियों उसे मारने के लिए कठिन कोशिश की कारण परमेश्वर यूहन्ना 5:. 18) प्रभु यीशुने स्वयं कहा कि वह देहधारी परमेश्वर है.
(3 यूहन्ना: 13, CF 3:. 17, 31) “कोई स्वर्ग पर नही चढ़ा, केवल वही जो स्वर्ग से उतरा, अर्थात् मनुष्य का पुत्र जो स्वर्ग में है”.
क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं वरन् अपने भेजने वाले की इच्छा पूरी करने के लिये स्वर्ग से उतरा हूँ” (06:38 यूहन्ना, CF 6:. 57, 62, NLT).
(18:37 यूहन्ना) “पिलातुस ने उससे कहा, “तो क्या तू राजा है”? यीशु ने उत्तर दिया, “तू कहता है कि मैं राजा हूँ. मैंने इसलिये जन्म लिया और इसलिये संसार में आया हूँ कि सत्य की गवाही दूं. जो कोई सत्य का है, वह मेरा शब्द सुनता है”.
ये यहुन्ना बप्तिस्मा देने वाले ने भी सिखाया था, और प्रेरित पौलुस और पतरस ने भी: प्रेरित यूहन्ना और यूहन्ना बैपटिस्ट–
“आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था. वे न तो लहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए है. और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण होकर हमारे में डेरा किया और हम ने उसकी ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा.” यूहन्ना 1: 1, 14-15, NLT)
“उस जीवन के वचन के विषय में जो आदि से था, जिसे हमने सुना और जिसे अपनी आँखों से देखा वरन् जिसे हमने ध्यान से देखा और हाथों से छुआ” (१ यहुन्ना (11, CF. बनाम 2 -3).
“तुम जानते हो कि वह इसलिये प्रकट हुआ कि पापों को हर ले जाए; और उसके स्वभाव में पाप नहीं, जो कोई पाप करता है वह शैतान की ओर से है, क्योंकि शैतान आरम्भ ही से पाप करता आया है. परमेश्वर का पुत्र इसलिये प्रकट हुआ कि शैतान के कामों का नाश करे” (१ यहुन्ना 3: 5,8).
“हमने देख भी लिया और गवाही देते हैं कि पिता ने पुत्र को जगत का उद्वारकर्ता करके भेजा है” (१ यहुन्ना 4: 14).
प्रेरित पौलुस –
“जिसकी उसने पहले ही से अपने भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा पवित्रशास्त्र में, अपने पुत्र, हमारे प्रभु यीशु के विषय में प्रतिज्ञा की थी, वह शरीर के भाव से तो दाऊद के वंश से उत्पन्न हुआ था और पवित्र-आत्मा के भाव से मरे हुओं में से जी उठने के कारण सामथ्र्य से परमेश्वर का पुत्र ठहरा” (रोमियों 1 :2-4).
परन्तु जब समय पूरा हुआ तो परमेश्वर ने अपने पुत्रा को भेजा जो स्त्री से जन्मा, और व्यवस्था के अधीन उत्पन्न हुआ,…” (गलतियों 4: 4).
“हर एक अपने ही हित की नहीं, वरन् दूसरों के हित की भी चिन्ता करे. जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था, वैसा तुम्हारा भी स्वभाव हो; जिसने परमेश्वर के स्वरूप में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा. वरन् अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया. और मनुष्य के रूप में प्रकट होकर अपने आपको दीन किया, और यहाँ तक आज्ञाकारी रहा कि मृत्यु, हाँ क्रूस की मृत्यु भी सह ली!” (फिलिप्पियों 2 :5-8).
“वह शरीर में प्रकट हुआ …..” (1 टिमोथी 3: 16).
प्रेरित पतरस अन्य धर्मों की देहधारण की अनुचित शिक्षा के सम्बन्ध में कहता है,
“वह चतुराई से गढ़ी हुई कहानियों का अनुसरण नहीं था वरन् हमने आप ही उसके प्रताव को देखा था” (पीटर 1 2: 16).
11. ↑ 5 नोट देखें.
12. ↑ बुद्ध धर्म में देहधारण नहीं है क्योंकि गौतम बुद्ध एक नास्तिक था और वह परमेश्वर को अनुपयुक्त मानता था. आगे चल कर बुद्ध धर्म में देहधारण का विचार है परन्तु वह वास्तव में कपोलकल्पित है. इसी प्रकार हिन्दु धर्म में भी उनके देवी-देवताओं और देहधारण का कोई प्रमाण नहीं है इस्लाम में तो देहधारण का विचार ही ईशनिन्दा है. अल्लाह ऐसा दिव्य है कि उसके देहधारण की कल्पना भी नहीं की जा सकती है तो मनुष्य के स्थान पर मनुष्य के पापों के लिए अपनी जान देने का तो प्रश्न ही नहीं उठता. इसी प्रकार अन्य सब धर्मों में है कि उनमें अवतारों या ईश्वरीय प्रकाशन का कोई प्रमाण नहीं है सिस्टमेटिक थियोलाजी के प्रोफेसर डा. जान फ्रेम जिन्होंने प्रिन्सटन यूनिवर्सिटी, येल यूनीवर्सिटी, वेस्टमिनस्टर थियोलाजिकल सेमिनरी से उपाधियां प्राप्त की थी, कहते हैं, “गैर मसीही धारणाओं में परमेश्वर का समय और स्थान में प्रवेश करना संभव नहीं है. पूर्व के धर्म तथा प्लेटो, अरस्तू तथा प्राचीन ज्ञानवादी सबका विचार यही है कि परमेश्वर मनुष्य से बहुत परे है और यदि वह सांसारिक मनुष्य के सम्बन्ध में आ जाए तो उसकी सिद्धता एवं परिपूर्णता नष्ट हो जाएगी. अन्य धर्म एवं दार्शनिक विचारों के आधार पर यदि कोई परमेश्वर है तो वह संसार ही है. उनके विचार में यदि कोई ईशमानव है तो वह इस नश्वर संसार से भिन्न नहीं है. केवल बाइबल के धर्म में ही स्पष्ट है कि परमेश्वर द्वारा सृजित संसार और परमेश्वर में अन्तर है. वह इस संसार से समझौता किए बिना और स्वयं को इस संसार में विलीन किए बिना इस संसार में आ सकता है. देहधारण में वह पूर्व परमेश्वर है और मनुष्य पर अपना ईश्वरत्व प्रकट कर सकता है, चाहे इसके पूर्व अन्य अनेक भेद प्रकट हैं. इसका अर्थ है कि केवल बाइबल में ही हम एक ऐसे परमेश्वर को देखते है जो मनुष्य से प्रेम करता है, उसका प्रेम ऐसा अद्भुत एवं महान है कि वह समय और स्थान में हमारे लिए प्रवेश करता है और इतिहास में शैतान तथा पाप के विरूद्ध परमेश्वर के युद्ध में दृढ़ता से खड़ा होता है.” Reformed Quarterly, Winter 2000;http://rq.rts.edu/winter00/frame.html
13. ↑ प्रभु यीशु के देहिक मृतकोत्थान के ऐतिहासिक एवं अन्य प्रमाणों के पक्ष में प्रतिवाद में देखें John G Weldon, “The Resurrection As Historical Fact?” The John Ankerberg Show; % 3F http://www.jashow.org/wiki/index.php?title=The_Resurrection_as_Historical_Fact विस्तृत जानकारी के लिए NT Wright की पुस्तक देखें, The Resurrection of the Son of God Michael R. Licona, The Resurrection of Jesus, a New Historiographical Approach.
14. ↑ इसके स्पष्टीकरण के लिए, “Hell – Why It’s Eternal and the Remarkable Ease of Entering Heaven”, The John Ankerberg Show John G. Weldon देख; http://www.jashow.org/wiki/index.php?title=Hell_-_Why_It%27s_Eternal_and_the_Remarkable_Ease_of_Entering_Heaven