मसीही जनों के लिए त्रिएक परमेष्वर की धर्म शिक्षा को समझना महत्वपूर्ण क्यों है? भाग-1

द्वारा: Dr. John Ankerberg Dr. John Weldon; ©2006

बाइबल आधारित त्रिएक परमेश्वर की शिक्षा को समझना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह परमेश्वर से सम्बन्धित है कि वह कौन है, अर्थात् पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के रूप में परमेश्वर के स्वभाव का उचित बोध प्राप्त करना. त्रिएक परमेश्वर को समझने का अर्थ है परमेश्वर को समझना जैसा कि उसने स्वयं को प्रकट किया है. यह महत्वपूर्ण क्यों है?

त्रिएक परमेश्वर की धर्म शिक्षा मसीही जनों को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण विश्वास क्यों है?

जब हम त्रिएक परमेश्वर की चर्चा करते हैं तब हमें सावधानी और मर्यादा के साथ ऐसा करना चाहिए जैसा सन्त अगस्तीन ने कहा, “ ओर कही पर इससे ज्यादा खतरनाक गलतिया नही हुई, या खोज अधिक रही या खोज अधिक फलदायक रही.” (सन्त थोमस अक्वीना, सुम्मा थियोलाजिकल ,1272)

त्रिएक परमेश्वर की बाइबल आधारित शिक्षा को समझना अति महत्वपूर्ण है क्योंकि यह परमेश्वर से सम्बन्धित है कि वह कौन है अर्थात् पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के रूप में परमेश्वर के स्वभाव का उचित बोध ग्रहण करना. त्रिएक परमेश्वर को समझने का अर्थ है कि परमेश्वर को समझना जैसा उसने स्वयं को प्रकट किया है.

यह महत्वपूर्ण क्यों है? क्योंकि यदि हम प्रभु यीशु की आज्ञा के अनुसार परमेश्वर की आराधना, “आत्मा और सच्चाई” (यूहन्ना 4: 24), में करेंगे तो हमें एकमात्र सच्चे परमेश्वर की आराधना करना है जैसा वह वास्तव में है. ऐसा करने से चूकने का अर्थ है परमेश्वर को जानने और उसकी आराधना करने से चूकना और इस प्रकार उसकी महिमा नहीं होगी. अतः वे जो त्रिएक परमेश्वर को स्वीकार नहीं करते वे परमेश्वर के स्वभाव को स्वीकार नहीं करते हैं.

कथित मसीही धार्मिक वर्गों का उदाहरण देखें जो बाइबल की शिक्षाओं का प्रबल खण्डन करते हैं. त्रिएक परमेश्वर की बाइबल आधारित शिक्षा को स्वीकार न करने के कारण जेहोवा विटनेस प्रभु यीशु को एक सृजित प्राणी बना देते हैं और पवित्र आत्मा को परमेश्वर का अव्यक्तिगत बल. अतः प्रभु यीशु “वास्तव में परमेश्वर का एक सृजित प्राणी है.” जिसने अपने उद्धार और अपनी अमरता को अर्जित किया है[1] और पवित्र आत्मा, “व्यक्ति नहीं अपितु परमेश्वर की अप्रत्यक्ष शक्ति है जिसके माध्यम से परमेश्वर अपनी पवित्र इच्छा और कार्यों को पूरा करता है.” [2]

“त्रिएक परमेश्वर का इन्कार करने में जेहोवा विटनेस के संस्थापक सी. टी. रसल ने ईश्वर निंदा करते हुए कहा कि मसीही धर्म का परमेश्वर यहोवा नही एक प्राचीन ईश्वर है जो युगों के पापों के कारण बूढ़ा हो गया है- बाल देवता, शैतान स्वयं.” [3] दूसरा वाच टावर अध्यक्ष, जज रूदरफोर्ड ने भी ऐसा ही कहा, “त्रिएक परमेश्वर की शिक्षा झूठी है और शैतान द्वारा विकसित की गई है जिसका उद्देश्य है कि यहोवा के नाम को बदनाम करें.”- और मनुष्य को “यहोवा और उसके पुत्र मसीह यीशु के सत्य की शिक्षा” से दूर रखें. निःसन्देह, “परमेश्वर का भय मानने वाले मनुष्यों को जटिल त्रिमूर्ति बेढंगे परमेश्वर से प्रेम करने और उसकी आराधना करने में कठिनाई होती है.” [4] निश्चय ही ऐसी शिक्षाएं जो परमेश्वर का व्यंग चित्र बनाती हैं उसे आदर एवं महिमा नहीं देती हैं.

इसी प्रकार, मोरमोन्स का मानना है कि पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा परमेश्वर अमर नहीं हैं. वे आत्माएं हैं जो उनके दिव्य माता-पिता के संसर्ग से उत्पन्न हुए हैं जिनमें से प्रत्येक आगे चलकर ईश्वर बने. [5] अतः मोरमोन शिक्षा में पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा की अस्तित्ववान एकता को नहीं माना जाता है. वे तीन अलग-अलग ईश्वरों की शिक्षा देते हैं.

इसमें सन्देह नहीं कि मोरमोन समूह बहुदेववादी हैं जो एक सच्चे परमेश्वर में विश्वास नहीं करते हैं. मोरमोन समूह की शिक्षाओं का एक मान्य लेख है.

“इस जगत के सम्बन्ध में ईश्वर तीन हैं पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा… हम उचित सीमित अर्थ में कहते हैं कि हम केवल इन ईश्वरों की आराधना करते हैं परन्तु इनके अतिरिक्त अनेक अनन्त व्यक्तित्व हैं जो अंसख्य संसारों से निकले हैं और जिन्होंने ईश्वरत्व को प्राप्त किया है और इस प्रकार वे भी ईश्वर हैं.” [6]

मेरी बेकर एडी मसीही विज्ञान की संस्थापक थीं, यह एक और समूह है जो अपने आपको सच्चा मसीही कहता है परंतु अपनी पुस्तक, “Science and Health with Key to the Scriptures”- मसीही विज्ञान की बाइबल, में वह लिखती हैः

“एक परमेश्वर के तीन व्यक्तित्व का सिद्धान्त (अर्थात् त्रिएकत्व या त्रिएकता) बहुदेववाद का सुझाव प्रस्तुत करता है न कि सदा उपस्थित “मैं हूँ” को ……. “ईलोहीम” बहुवचन में है परन्तु आत्मा के इस बहुवचन का अभिप्राय एक से अधिक ईश्वर से नहीं है और न ही यह एक परमेश्वर में तीन व्यक्तित्व का बोध करवाता है.” [7]

विक्टर पॉल वियरविल, “थे वे इन्टरनेशनल” के संस्थापक भी त्रिएकत्व के खण्डन का एक और सुझाव प्रस्तुत करते है जो मसीह यीशु के व्यक्तित्व का ही नहीं क्रूस पर उसके प्रायश्चित्त कर्म का भी खण्डन करता है. वियरविल का विवाद निम्नलिखित है.

“वर्षों से मैंने अधिकाधिक सावधानीपूर्वक परमेश्वर के वचन की खोज की है उतना ही अधिक मैंने त्रिएकत्व को प्रमाणित करने का कम से कम देखा है. यद्यपि मैंने सदैव एक में तीन परमेश्वर के विचार को स्वीकार किया है. मैंने लगातार परमेश्वर के वचन में प्रमाण देखे हैं जो मसीही त्रिएक परमेश्वर का खण्डन करते हैं… इसके अतिरिक्त यदि मसीह यीशु परमेश्वर है… तो हमारा अभी तक उद्धार नहीं हुआ है… तो फिर त्रिएकत्व का विचार कहाँ से आता है? यह पहली, दूसरी और तीसरी शताब्दि में विकसित होकर प्रबल हुआ है जो अन्य जाति धर्म मसीही विश्वास में आने वालों का विचार है और उन्हीं के द्वारा मसीही धर्म में अन्य जाति अभ्यास एवं आस्थाओं का प्रवेश हुआ है. इस प्रकार त्रिएकत्व नापसिया में सन् 325 में कलीसिया के बिशपों द्वारा राजनीतिक कार्यसाधकता के कारण पुश्ट किया गया था.”[8]

अतः सारांश यह है कि त्रिएक परमेश्वर को बाइबल तथा थियोलोजी के आधार पर समझना महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे चूक जाने से परमेश्वर के अस्तित्व के बारे में हम झूठी शिक्षाओं की ओर बह जाते हैं. जिसके परिणामस्वरूप एकमात्र सच्चे परमेश्वर का त्याग कर हम एक झूठे परमेश्वर की उपासना करने लगेंगे. यदि बाइबल किसी एक बात को स्पश्ट व्यक्त करती है तो वह है एक झूठे परमेश्वर में विश्वास और उसकी आराधना मनुष्यों को पापों से उद्धार दिलाने में असमर्थ है. यीशु ने स्वयं परमेश्वर के उचित ज्ञान के बारे में बलपूर्वक कहा था, “और अनन्त जीवन यह है कि वे तुमे,एकमात्र सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तूने भेजा है, जानें.” (जॉन : 3).

परमेश्वर ने होशे, भविष्यवक्ता के द्वारा इस्राएल को चिताया था, “मेरे ज्ञान के न होने से मेरी प्रजा नष्ट हो गई…” और “तू मुझे छोड़ किसी को परमेश्वर करके न मानना…” (होशे 4: 6; 13:04). उनका इतिहास इस बात का गवाह है कि उन्होंने परमेश्वर को त्याग कर आदि देवी-देवताओं की उपासना की और परिणाम-स्वरूप उनका आत्मिक विनाश हुआ. दुर्भाग्य से, इसी प्रकार, वे जो यह जानते हुए भी कि बाइबल त्रिएकत्व परमेश्वर के बारे में क्या शिक्षा देती है जानबूझकर त्रिएक परमेश्वर का इन्कार करते हैं, अपने ही उद्धार की कमी को प्रकट करते हैं. (१ कुरिन्थियों 2: 14). दूसरे शब्दों में, कोई भी पवित्रशास्त्र में पवित्र आत्मा द्वारा व्यक्त परमेश्वर के वास्तविक स्वभाव का त्याग करके अपने आप को तर्क-पूर्वक मसीही जन नहीं कह सकता है.

निःसन्देह, त्रिएक परमेश्वर का पूर्व ज्ञान, विशेष करके उसकी थियोलोजी जरूरी नही है मनुष्य के उद्धार के लिए. परन्तु उद्धार होने के बाद विश्वासी जन के लिए यह महत्वपूर्ण है कि परमेश्वर के वास्तविक स्वभाव को समझे, जिस परमेश्वर ने उसके पाप क्षमा किए हैं. इससे स्पष्ट हो जाता है कि क्यों कलीसिया ने सदा ही परमेश्वर के बारे में उचित समझ प्राप्ति करने पर बल दिया है और यह माना है कि जो परमेश्वर का बाइबल आधारित विचार स्वीकार नहीं करते वह उद्धार नहीं पाएंगे जब तक कि वे ऐसा विचार रखते हैं.

उदाहरणार्थ, चर्चा करते हुए दिव्य श्राप- अनाथेमा- पर जो उन पर डाला जाता है जो परमेश्वर को स्वीकार नही करते है,अथानासियन क्रीड

“पावन घोषणा से आरंभ होता है और अन्त होता है कि त्रिएक परमेश्वर और देहधारण में व्यापक विश्वास उद्धार की अपरिहार्य अवस्था है और जो इसको स्वीकार नहीं करते वे सदा के लिए नाश हो गए… अनाथेमा प्राकृतिक एवं ऐतिहासिक संदर्भ में, झूठी शिक्षा के संकट के विरुद्ध पावन चेतावनी ही नहीं है, न ही दूसरी ओर यह उद्धार की शर्त की अनिवार्यता भी नहीं है, संपूर्ण ज्ञान और प्रस्तावित शिक्षा के तार्किक कथन का समर्थन (यह मसीही विश्वासियों में अधिकांश को दण्ड का भागी बना देगा) है परन्तु इसका अर्थ है कि इस शिक्षा के इन्कार के परिणामस्वरूप मनुष्य स्वर्ग से वंचित हो जाएगा. इसमें आवश्यक है कि हर एक जन जिसका उद्धार हो गया है वह एकमात्र सच्चे जीवित परमेश्वर पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा में विश्वास करे जो सार में एक है और व्यक्तित्व में तीन तथा एक मसीह यीशु जो एक ही मनुष्य में पूर्ण परमेश्वर और पूर्ण मनुष्य है, विश्वास करें.” [9]
व्लादिमीर लोस्सकी ने “The Mystical Theology of the Eastern Church (1957, p. 66),” नामक पुस्तक में निर्भीकतापूर्वक कहा था, “त्रिएक परमेश्वर और नरक के मध्य कोई चुनाव नहीं है.”

इस प्रकार मसीही होने का दावा करने वाले धर्मों के जो त्रिएकत्व का इन्कार करते हैं, उनके निरीक्षण से ज्ञात होता है कि वे विश्वास द्वारा उद्धार की शिक्षा का भी खण्डन करते हैं. दूसरे शब्दो में, यदि कोई धर्मशास्त्र के उचित सम्मान और परमेश्वर के ज्ञान के साथ आरंभ न करें तो संभव नहीं कि वह बाइबल के बारे में अन्य उचित विचार रखें. यही तो हम धार्मिक पंथों में देखते हैं.

तथापि त्रिएक परमेश्वर के विषय में बाइबल की शिक्षा की परिचर्चा से पूर्व हमें स्मरण रखना है कि यह शिक्षा ऐसी है जिसे मनुष्य की सीमित बुद्धि अन्तर्ग्रहण नहीं कर सकती है. त्रिएक परमेश्वर की व्याख्या तर्क के आधार पर की जा सकती है परन्तु यही आधी समस्या है क्योंकि “ईश्वरत्व का असीमित सत्य तर्क की सीमा के बहुत परे है क्योंकि तर्क केवल सीमित सत्य एवं श्रेणियों से सम्बन्धित होता है.”[10] दूसरे शब्दों में, अनन्त अस्तित्व रखने के कारण सीमित मनुष्य द्वारा परमेश्वर को पूर्णरूपेण समझना कदापि संभव नहीं है. जब हम प्रायोगिक भौतिक शास्त्र जैसे साधारण विषय को समझने में समर्थ नहीं है तो कौन विवाद करेगा कि हम अनन्त परमेश्वर के बारे में सब कुछ समझने योग्य हैं.

, जैसे डोरथी एल सेयर्स ने एक बार कहा- Current Religious Thought में(1957)

“आप क्यों कहते हैं कि परमेश्वर त्रिएक है एक अस्पष्ट एवं रहस्यमय विचार है जबकि आप बड़ी विनम्रता से भौतिकशास्त्र के आधारभूत सूत्र को स्वीकार करते हैं- ‘two P minus PQ equals IH over two Pi where I equals the square root of minus one’ जबकि आप भली-भांति जानते हैं कि (-1) का स्क्वेयर रूट आत्म-विरोधी है और Pi की गणना नहीं की जा सकती है?”

मान लें कि एक चींटी मनुष्य को पूर्णरूपेण समझ नहीं पाती है चाहे वह कैसा भी यत्न करे. यदि मनुष्य किसी तरह चींटी बन जाए तो वह मनुष्य के बारे में समझाने में समर्थ होगा कि चींटी मनुष्य के बारे में समझ ग्रहण कर पाए.

जब हम यह मानते हैं कि परमेश्वर यथार्थ में मनुष्य से अनन्त दूरी पर है तो इसका समानान्तर अमेय हानि उठाता है. हम परमेश्वर के बारे में जो कुछ यथार्थ में समझ सकते हैं वह केवल उतना ही है जितना उसने स्वयं को बाइबल में प्रकट किया है. यद्यपि बाइबल हमें बहुत जानकारी देती है परन्तु स्पष्टतः वह हमें परमेश्वर की अनन्तता को नाप पाने के लिए व्यापक जानकारी नहीं देती है. निःसन्देह अनन्त उद्धार की महिमाओं में से एक (युहन्ना 5:24; 06:47) यह है कि सीमित मनुष्य एक अनन्त परमेश्वर की व्यापक महिमा और सिद्धता के बारे में अद्भुत बातें सदैव सीखता रहेगा. यह स्वार्गिक ज्ञान सांसारिक ज्ञान को अपनी तुलना में क्रांतिहीन बना देता है.

निष्पक्षता से कहें तो एक मसीही जन जो कर सकता है वह यह है कि वह परमेश्वर द्वारा प्रकाशित एवं कलीसिया द्वारा बाइबल की शिक्षा के अनुसार ऐतिहासिक रूप से प्रतिपादित शिक्षा को स्वीकार करे. अतः परमेश्वर त्रिएक है, इसका अर्थ क्या है?

परमेश्वर ने प्रकट किया है कि वह तीन व्यक्तित्व में है या एक ईश्वरत्व में तीन चित्-शक्तियों का केन्द्र है. फिर वही बात है कि यह विचार समझ से परे है और पूर्ण रूपेण अन्तर्ग्रहण नहीं किया जा सकता तो इसका अर्थ यह नहीं कि यह विचार उचित रूप् से व्यक्त नहीं किया जा सकता या समझाया नही जा सकता. त्रिएक परमेश्वर की एक अच्छी परिभाषा प्रसिद्ध कलीसियाई इतिहासकार Philip Schaff द्वारा दी गई हैः

“परमेश्वर तीन व्यक्तित्वों में एक है (अर्थात एक ही स्वभाव के तीन अलग-अलग व्यक्तित्व) जिसमें प्रत्येक व्यक्तित्व अपने गुणों में ईश्वरत्व की परिपूर्णता को व्यक्त करता है. व्यक्तित्व न तो प्राचीन अर्थ में प्रकटीकरण का रूप है (अर्थात चेहरा) और न ही आधुनिक अभिप्राय में एक स्वाधीन अलग व्यक्तित्व है परन्तु इन दोनों के मध्य का अर्थ है और इस प्रकार एक ओर यह उस विचार से बचता है कि परमेश्वर एक ही है जिसके तीन प्रकट रूप् है और दूसरी ओर तीन अलग-अलग परमेश्वर के विचार से. ये तीन दिव्य व्यक्तित्व एक-दूसरे में निहित है और दिव्य सार में शाश्वत अन्त संचार एवं गति उत्पन्न करते हैं.प्रत्येक व्यक्ति में कई दिव्य गुण हैं जो दिव्य तत्व में होते हैं परन्तु प्रत्येक में अपने ही विशिष्ट गुण हैं जिनका संचारण नहीं हो सकता. पिता उत्पन्न नहीं है, पुत्र उत्पन्न है और पवित्र आत्मा प्रवाहित होता है. इस त्रिएकत्व में कोई भी समयानुसार पहला नहीं है या कोई किसी के बाद नहीं है और न ही पद में कोई बड़ा है या छोटा है परन्तु तीनों सह अनन्तकालीन है और बराबर हैं.” [11]

यहाँ ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि बाइबल एकेश्वरवाद और त्रिएकत्व दोनों की शिक्षा देती है. वह सिखाती है कि एक ही सच्चा परमेश्वर है और त्रिएकत्व का अर्थ है कि यही एक सच्चा परमेश्वर तीन व्यक्तित्वों में अनन्तकालीन है. परमेश्वर की यह त्रिएकत्व एकता का विचार आरंभिक समय से ही सुरक्षित किया गया है और मसीही थियोलोजी ज्ञाताओं और धर्मरक्षकों ने त्रिदेववाद के विरुद्ध परमेश्वर की एकता और तीन व्यक्तित्वों के परमेश्वरवाद की रक्षा की है. निस्सा के ग्रंगरी ने अब्लाबिअस को पत्र में लिखा था,
यह कहना कि ईश्वर तीन है… बुरा है… पुत्र और पवित्र आत्मा के ईश्वरत्व की गवाही न देना… भक्तिहीन एवं अनर्थ है… इसलिए धर्मशास्त्र की गवाही के अनुसार हमारे द्वारा एक परमेश्वर का अंगीकार किया जाना चाहिए, “हे इस्राएल सुन, तेरा प्रभु परमेश्वर एक है.” (Deut. 06:04), शब्द “deity ” होली ट्रिनिटी के माध्यम से फैली हुई है.[12]

तो हम कैसे जानेंगे कि त्रिएकत्व की शिक्षा बाइबल पर आधारित है. त्रिएकत्व की शिक्षा बाइबल पर आधारित है, पांच वक्तव्यों द्वारा सिद्ध होती है जो बाइबल के आधार पर है. क्योंकि जेहोवा विटनेस इस शिक्षा के कट्टर विरोधी है और कहते हैं कि यह “अन्य जातीय” “तर्कहीन” और “शैतान की” है, हमने सोचा कि यदि वे अपनी ही बाइबल, द न्यू वल्र्ड ट्रान्सलेशन (NWT; 1970 संस्करण) से इस शिक्षा के सम्बन्ध में निर्देशन पाएं तो उचित होगा. नीचे दिए गए उनके धर्मशास्त्रीय संदर्भ में पवित्र आत्मा को अंग्रेजी में बड़े अक्षरों में नहीं लिखा गया है क्योंकि उनके विचार में पवित्र आत्मा केवल परमेश्वर का सक्रिय भाववाचक बल है एक वास्तविक व्यक्तित्व नहीं है. अतः न्यू वल्र्ड ट्रान्सलेशन भी त्रिएक परमेश्वर की शिक्षा देती है.

1. केवल एक ही सच्चा परमेश्वर हैः “क्योंकि परमेश्वर एक ही है और परमेश्वर और मनुष्यों के बीच में एक ही बिचवई है, अर्थात मसीह यीशु जो मनुष्य है.” (NWT 1 तीमुथियुस 2:5, जोर जोड़ा, CF व्यवस्था विवरण 4:. 35, 6:4, यशायाह 43:10).

2. पिता परमेश्वर हैः “तौभी हमारे लिए तो एक ही परमेश्वर है.” (1 कुरिन्थियों 8: 6, NWT, जोर जोड़ा, CF यूहन्ना :1-3, 2 1 कुरिन्थियों:.. 3; फिलिप्पियों 2.11; कुलुस्सियों 1: 3; 1: पीटर 1: 2).

3. मसीह यीशु, पुत्र परमेश्वर हैः “परमेश्वर को अपना पिता कहकर अपने आपको परमेश्वर के तुल्य भी ठहराता है” : (5 यूहन्ना: 18 NWT, जोर जोड़ा); “यह सुन थोमा ने उत्तर दिया, ‘हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!’” (जॉन 20:28 NWT, जोर जोड़ा, CF यशायाह 9:., 5, टाइटस 2:: 1 रोमियों 9 6 (1 यूहन्ना 13; 2: पीटर 1 : 1).

4. एक व्यक्ति, जो अनन्त, इसलिए जो परमेश्वर पवित्र आत्मा नेis: कि एक आता है जब वह वह वह वह बात करेंगे सुनता जो बातें अपने हमारे आवेग, की बात नहीं करेंगे के लिए “However, सच कहता हूँ, की भावना वह सच कहता हूँ, में मार्गदर्शन करेंगे 14, NWT, महत्व दिया गया).अतः पवित्र आत्मा परमेश्वर है, “पतरस ने कहा, ‘हे हनन्याह! शैतान ने तेरे मन में बात क्यों डाली कि तू पवित्र आत्मा से झूठ बोले… तू मनुष्यों से नहीं, परन्तु परमेश्वर से झूठ बोला है.” (5 प्रेरितों:. 3, 4 NWT, महत्व दिया गया).) 14:16-17 यूहन्ना (14:13 NWT, महत्व दिया गया).पवित्र आत्मा अनन्त है, “वह तुम्हें एक और सहायक देगा कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहे. अर्थात सत्य का आत्मा…” यूहन्ना (“तो मसीह का लहू जिसने अपने आपको सनातन आत्मा के द्वारा परमेश्वर के सामने निर्दोष करके चढ़ाया, तुम्हारे विवके को मरे हुए कामों से क्यों न शुद्ध करेगा ताकि तुम जीवते परमेश्वर की सेवा करो.” (इब्रानियों 9 “आने वाले बातें करने की घोषणा करेंगे

5. पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा तीनों बराबर के अधिकार के साथ अलग-अलग है, “… उन्हें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो.” “हे भाइयों, हमारे प्रभु यीशु मसीह के और पवित्र आत्मा के प्रेम का स्मरण दिला कर मैं तुमसे विनती करता हूँ कि मेरे लिए परमेश्वर से प्रार्थना करने में मेरे साथ मिलकर लौलीन रहो.” “प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह और परमेश्वर का प्रेम और पवित्र आत्मा की सहभागिता तुम सब के साथ होती रहे.” (मत्ती 28:19; रोमियों 15:30; 2 कुरिन्थियों 13:14 NWT, महत्व दिया गया).

धर्मशास्त्र में पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा को अलग-अलग स्पष्ट व्यक्त किया गया है परन्तु फिर भी परमेश्वर एक है. “… एक ही आत्मा …एक ही प्रभु है …एक ही परमेश्वर पिता है.” (इफिसियों 4 :4-6;. CF, १ कुरिन्थियों 12:4-11). इसके अतिरिक्त, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा को कभी भी एक व्यक्तित्व नहीं दर्शाया गया है जैसा कि आधुनिक समूह शिक्षा देते हैं. उदाहरणार्थ, यूनाइटेड पेन्टेकास्टल चर्च. “केवल यीशु” समुदायJohn 06:38 में यीशु कहता है, “क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं वरन् अपने भेजने वाले की इच्छा पूरी करने के लिए स्वर्ग से उतरा हूँ. यहाँ “इच्छा” किसी व्यक्तित्व का सत है. यहाँ निश्चय ही दो व्यक्तित्व हैं

1900 वर्षों से ऐतिहासिक मसीही कलीसिया ने बाइबल में त्रिएक परमेश्वर का विचार देखा है. यह सत्य किसी के द्वारा भी देखा जा सकता है जो कलीसियाई पितरों को पढ़ें और कलीसिया के विश्वास के अभिकथन का अध्ययन करें. विश्वास के अभिकथन एक परमेश्वर में विश्वास की घोषणा करते हैं परन्तु यह भी स्पष्ट सिखाया गया है कि पुत्र और पवित्र आत्मा भी परमेश्वर है. उदाहरणार्थ सन् 325 का नायसिया का विश्वास अभिकथन 318 कलीसियाई पितरों का विश्वास था. वहाँ लिखा है, “हम… एक प्रभु यीशु मसीह में विश्वास करते हैं जो परमेश्वर का पुत्र है और परमेश्वर का एकलौता है… ज्योति का ज्योति, सच्चे परमेश्वर का सच्चा परमेश्वर एकलौता जो सृजित नहीं है.” [13]

सन् 381 का कांस्तान्तिनोपोलितन का विश्वास अभिकथन जो 150 कलीसियाई पितरों का विश्वास था. उसमें इस प्रकार कहा गया है “(हम) पवित्र आत्मा में विश्वास करते हैं. प्रभु एवं जीवनदाता, जो पिता से निकलता है और जो पिता और पुत्र के साथ महिमा पाता है…” [14]
यद्यपि नायसिया के विश्वास कथन (सन् 351) और कांस्तान्तिनोपोलितन के विश्वास के अभिकथन में त्रिएकत्व की सटीक परिभाषा एवं व्याख्या नये नियम और आरंभिक कलीसियाई पितरों के लेखों में नहीं है परन्तु त्रिएकत्व का सत्य प्रेरितों और प्रेरितों के बाद के कलीसियाई पितरों द्वारा स्पष्ट रूपसे स्वीकार किया गया है. इसके अनुमोदन में ऐतिहासिक थियोलोजी के विद्वानों के संदर्भ की कमी नहीं है. “द्वितीय शताब्दि के पितरों को पूर्ण विश्वास था कि परमेश्वर त्रिएक है.” [15]

और,

“पुराने नियम और नये तथा पुराने नियम के मध्य युग के यहूदीवाद से आरंभिक कलीसिया ने यह विश्वास अपनाया कि आकाश और पृथ्वी का सृजनहार परमेश्वर एक है… इसके अतिरिक्त नये नियम की पुस्तकों के निर्धारण से पूर्व प्रेरितों की प्रथा और कलीसिया का प्रचलित विश्वास परमेश्वर के तीन व्यक्तित्वों की बहुलता के विचार से अंकित थे… परमेश्वर के त्रिएक प्रकटीकरण का विचार मसीही धर्म निष्ठा और आस्था का एक आरंभिक विचार रहा है परन्तु इस विश्वास को लागू करने के लिए और परमेश्वर की संकटनात्मक शिक्षा के लिए कदम नहीं उठाए गए थे. त्रिएक परमेश्वर का विचार परमेश्वर के बारे में भावी मसीही शिक्षा के विकसित व्याख्या का आधारभूत नमूना प्रस्तुत करता है.” [16]

ई. कॅलविन बीसनर त्रिएकत्व पर अपनी पुस्तक, God in Three Persons में प्रेरितों के युग से लेकर नायसिन विश्वास अभिकथन जो कांस्तान्तिनोप्ले की सभा में भी सन् 381 में स्वीकार किया गया, त्रिएकत्व के ऐतिहासिक विकास का गहन अध्ययन प्रस्तुत करते हैं. उन्होंने अभिकथन की एक-एक पंक्ति की तुलना नये नियम की शिक्षाओं से की है और सिद्ध किया है कि त्रिएकत्व का विचार पूर्णतः बाइबल आधारित है. [17]

निःसन्देह पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा धर्मशास्त्र में इस प्रकार संघटित है कि परमेश्वर का तीन अलग-अलग व्यक्तित्वों के मानने पर बाइबल के कुछ अंशों को समझना असंभव हो जाता है. उदाहरणार्थ निम्नलिखित बाइबल अंश पर ध्यान दें:

“इसलिए जाओ और सब जातियों में चेले बनाओ और उन्हें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो.” (मत्ती 28:19).

प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह और परमेश्वर का प्रेम और पवित्र आत्मा की सहभागिता तुम सबके साथ होती रहे (13:14 कुरिन्थियों 2).

क्योंकि उस ही के द्वारा हम दोनों को एक आत्मा में पिता के पास पहुंच होती है (इफिसियों 2:. 18, CF, 3 :11-16).

लेकिन तुम, प्रिय मित्र, अपने आप को महान पवित्र विश्वास में बना लो और प्राथना करो पवित्र आत्मा में. अपने आप को परमेश्वर के प्रेम में बनाये रखो जब की आप इंतज़ार कर रहे है प्रभु यीशु मसीह कि कृपा का कि वह तुम्हे अनन्त जीवन में ले जाये. (जूड 20, 21).

अब यह निष्कर्ष निकाले बिना कि बाइबल त्रिएकत्व के विचर की शिक्षा देती है निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास करें:

1. कौन मृत से यीशु उठाया? पिता (रोमियों 06:04; प्रेरितों 3: 26; 1 थिस्सलुनीकियों 1.10.)? पुत्र ने (यूहन्ना 2 :19-21, 10: 17, 18)? पवित्र आत्मा ने (रोमन 8: 11)? या परमेश्वर ने (; 13:30 प्रेरितों; इब्रानियों 13:20 : 31)?

2. बाइबिल किसे परमेश्वर कहती है? पिता को (इफिसियों 4 6)? पुत्र ने (टाइटस 2.13; यूहन्ना 1: 1; 20:28)? पवित्र आत्मा ने (अधिनियमों 5: 3, 4: या परमेश्वर ने (व्यवस्था विवरण 4: 35; यशायाह, 45:18)?

3. ब्रह्माण्ड को किसने बनाया? पिता ने (इफिसियों 3.9-14; 4 6)? पुत्र ने (कुलुस्सियों 1: 16, ; यूहन्ना 1 :1-3)? पवित्र आत्मा ने (उत्पत्ति 1: 2; भजन 104:30)? या परमेश्वर ने (उत्पत्ति 1: 1; इब्रानियों 11:03)?

4. कौन मनुष्य का उद्धार करके उसका पुनरुद्धार करता है? पिता (1 पीटर (13) पुत्र ने (5 यूहन्ना? 21, 4.14) पवित्र आत्मा ने (जॉन 3: 6, टाइटस 3: 5) या परमेश्वर ने (१ यहुन्ना 3: 9)?

5. मनुष्य को धर्मी ठहराने वाला कौन है? पिता (यिर्मयाह 23:06, CF. 2 कुरिन्थियों 5.19)? पुत्र ने (रोमियों 5.9; 10: 4; 2 कुरिन्थियों 5.19, 21)? पवित्र आत्मा ने (1 कुरिन्थियों 06:11; गलतियों 5.5)? या परमेश्वर ने (रोमियों 4: 6; 9: 33)?

6. मनुष्य को शुद्ध कौन करता है? पिता (जुड 1)? पुत्र ने (टाइटस 2: 14)? पवित्र आत्मा ने (1 पतरस 1)? 2)? या परमेश्वर ने (निर्गमन 31:13)?

7. मनुष्य को षुद्ध कौन करता है? पिता (1 यूहन्ना 4: 14; यूहन्ना 3: 16; : 5; 18:11)? पुत्र ने (मत्ती 26:28; यूहन्ना (129; (१ यहुन्ना 2: 2) पवित्र आत्मा ने (इब्रियों 9: 14) या परमेश्वर ने 2: कुरिन्थियों 5? 19, 21, 20:28 प्रेरितों; (१ यहुन्ना 4: 10)?

अतः त्रिएकत्व के एक व्यक्तित्व का किसी कार्य में मुख्य भूमिका हो सकता है जैसे सृजनकार्य, मुक्तिकार्य आदि तथापि सहभागिता तीनों ही की है. इसका अर्थ यह है कि उदाहरणार्थ पुराने नियम या नये नियम की किसी भी घटना में जहाँ “परमेश्वर” शब्द आया है वहाँ त्रिएकत्व के किसी एक व्यक्तित्व का उल्लेख करना अनुचित नहीं है. सच तो यह है कि धर्मशास्त्र में ही ऐसा है. प्रेरितों के काम 28:25-26 पवित्र आत्मा को यशायाह से बात करते दर्शाया गया है परन्तु यशायाह 6:8-9 में शब्द वही है और वहाँ कहने वाला परमेश्वर है.

मिलार्ड जे एरिकसन अपनी पुस्तक क्रिश्चियन थियोलोजी में छः तर्क प्रस्तुत करते है जो त्रिएक परमेश्वर को समझने के लिए स्वीकार करना उचित हैः

1. परमेश्वर केवल एक है.

2. परमेश्वर में समाहित हर व्यक्ति समान रुप से ईश्वर है.

3. परमेश्वर का त्रिएकत्व एवं एकत्व आत्म-विरोध या अन्तर-विरोध उत्पन्न करता है जो वास्तव में आभासी है न कि यथार्थ. यह इसलिए है कि परमेश्वर का त्रिएकत्व एवं एकत्व एक ही परिप्रेक्ष्य में नहीं है अर्थात वे एक ही बात को एक ही समय में और एक हीतरह से न तो पुष्ट करते हैं न ही इन्कार करते हैं. परमेश्वर का एकत्व दिव्य सत्व को प्रकट करता है और उसका त्रिएकत्व व्यक्तित्व की बहुलता को.

4. त्रिएकत्व अनन्त है. इसमें सदा ही तीन व्यक्तित्व रहे हैं और प्रत्येक व्यक्तित्व अनन्तकाल तक दिव्य है. ऐसा नहीं है कि त्रिएकत्व का एक या दो या तीन व्यक्तित्व किसी समय उत्पन्न हुए या दिव्य हुए. त्रिएक परमेश्वर के दिव्य स्वभाव में कभी कोई परिवर्तन नहीं आया है. वह जैसा है वैसा ही है और सदा ही रहेगा.

5. त्रिएकत्व में एक व्यक्तित्व का कार्य समय के अनुसार एक या दोनों व्यक्तित्वों के अधीन हो परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि वह किसी भी प्रकार उनके अधीन है या उनसे कम है. प्रत्येक व्यक्तित्व का कार्य किसी समय अपने आप में बेजोड़ अवश्य रहा है. दूसरे शब्दों में, त्रिएकत्व को दिया गया विशेश कार्य उस भूमिका को निभाने के लिए केवल उसी समय के लिए था जो उसका पद परिवर्तन या सार परिवर्तन नहीं है. जब त्रिएकत्व का द्वितीय व्यक्तित्व देहधारण करके मसीह यीशु बना तो वह पिता परमेश्वर से कम नहीं हो गया था जब कि वह कार्य करने में पिता के अधीन था. इसी प्रकार पवित्र आत्मा आज पवित्र आत्मा पुत्र की सेवा में अवरता के स्तर पर है. (यूहन्ना 14-16) और पिता की इच्छा के अधीन है परन्तु वह उनसे कम नहीं है.

इसको समझने के लिए कुछ उदाहरण हैः एक पत्नी पति के अधीन रहती है परन्तु वह उसके बराबर है. इसी प्रकार किसी संस्था में किसी को अध्यक्ष चुना जाता है परन्तु उसके पद में अन्तर नहीं आता है. इसी प्रकार युद्ध में लड़ाकू विमान का चालक बम गिरवाने वाले से बड़ा होता है परन्तु उसे उसके आदेशों का पालन करने के लिए उसके आधीन रहना होता है जबकि बम गिरवाने वाला चालक से पद में कम होता है.

6. अन्त में जैसा हमने देखा है, त्रिएकत्व को समझना असंभव है. हम उद्धार पाकर स्वर्ग में भी परमेश्वर कि पूरी समझ नहीं पाएंगे क्योंकि एक सीमित मनुष्य द्वारा अनन्त परमेश्वर को समझना संभव नहीं. अतः “परमेश्वर के विषय वे बातें जिन्हें हम समझ नहीं पाते उन्हें भेद की बातें कहा जाता है क्योंकि वे हमारे तर्क के परे हैं न कि आत्म-विरोधी बातें जो तर्क के लिए खण्डनात्मक हैं.” [18]

निःसन्देह, त्रिएकत्व को समझने में जो समस्याएं सामने आती हैं वे मसीह यीशु को समझने में भी उत्पन्न होती हैं. अतः संघटित एकता का विचार बाइबल के सब आंकड़ों को संयोजित करके देहधारण को उचित रूप से व्यक्त करता है. उसके अनुसार यीशु कोई कम परमेश्वर नहीं है परन्तु स्वभाव में पूर्ण परमेश्वर है. मसीह यीशु परमेश्वर और मनुष्य दोनों है. वह आधा मानव और आधा परमेश्वर नहीं है- वह पूर्ण परमेश्वर और पूर्ण मनुष्य है.

इसी कारण उसके दो स्वभाव है- ईश्वरीय और मानवीय. परन्तु वह दो नहीं है- वह द्वैध मन एक नहीं है. वह दो अनुभूतियों का मनुष्य है- अलौकिक अनुभूति तथा लौकिक अनुभूति. वह एक है परन्तु उसमें दो इच्छाएं हैं- ईश्वरीय इच्छा और मानवीय इच्छा तथापि प्रभु यीशु में इच्छाओं का परस्पर विरोध नहीं था.

प्रभु यीशु को दो स्वभावों के संघटन के कारण उसके एक व्यक्तित्व में नया स्वभाव उत्पन्न नहीं हुआ था. उसके ईश्वरीय और मानवीय गुण और कार्यों को प्रभु यीशु के व्यक्तित्व में किसी भी नाम से पुकारा जाए एक ही है और किसी भी घटना में प्रभु यीशु के मानवीय और ईश्वरीय स्वभाव दोनों प्रकट होते हैं. अन्त में प्रभु यीशु के ये दोनों स्वभाव उसकी मृत्यु, उसके दफन पुनरुत्थान और स्वर्गारोहण के कारण बदले नहीं थे. वे अनन्तकाल तक वैसे ही रहेंगे. [19]

उपरोक्त अध्ययन सामग्री बाइबल के संदर्भों का सही रूप् से सूत्रपात करने के महत्वपूर्ण उदाहरण हैं और इनसे यह भी प्रकट होता है कि परमेश्वर के स्वभाव को समझने में कैसे हम अपनी धारणा को गलत बना सकते हैं. यही कारण है कि परमेश्वर हमें प्रोत्साहित करता है और कहता है, “अपने आपको परमेश्वर का ग्रहणयोग्य और ऐसा काम करने वाला ठहराने का प्रयत्न करे, जो लज्जित न होने पाए, और जो सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाता हो.” (2 टिमोथी 2:15). यही कारण है कि मसीही जनों को त्रिएक परमेश्वर के बारे में अध्ययन करना चाहिए कि वे बाइबल की जानकारी को प्रभावी रूप से समझ पाए और विरोधियों के वाद का सही उत्तर दे पाएं.

“और प्रभु के दास को झगड़ालू होना न चाहिए, पर सबके साथ कोमल और शिक्षा में निपुण, और सहनशील हो. और विरोधियों को नम्रता से समझाए, क्या जाने परमेश्वर उन्हें मन फिराव का मन दे, कि वे भी सत्य को पहचानें. और इसके द्वारा उसकी इच्छा पूरी करने के लिए सचेत होकर शैतान के फंदे से छूट जाएं.” (2 टिमोथी (224-26).

थोमस ए केम्पिस ने एक बार मसीही प्राथमिकताओं पर बल देकर कहा था जो इस विषय का एक उचित निष्कर्ष हैः

“हे प्रभु, होने दे कि हम वह जाने जो जानने योग्य है, उससे लगाव रखें जो लगाव रखने योग्य है, स्तुति करें तो उसकी जिससे तू अति प्रसन्न होता है और प्रतिष्ठा उसकी करें जो तेरे सम्मुख बहुत अनमोल है तथा तेरी दृष्टि में जो घृणित है उससे घृणा करें जो बातें मतभेद की हैं. उनमें अन्तर समझने का सच्ची परख हमें प्रदान कर और सबसे बढ़कर खोजकर वही करें जो तुझे ग्रहणयोग्य हो. हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम में आमीन.

नोट्स

1. ↑ , पी: समझौता (Watchtower Bible and Tract Society, 1971 ब्रुकलीन, NY) पवित्र शास्त्र मसीह “यीशु QV, “Watchtower Bible and Tract Society, एड. 918, पृ. 437, एंथोनी ए Hoekema, चार मेजर सम्प्रदायों (Grand Rapids, MI: एर्डमैन्स, 1970), पृ. 295 का हवाला देते हुए चलो (1952) यह सच है परमेश्वर, पृ. 74.
2. ↑ , पी: परमेश्वर (Watchtower Bible and Tract Society, 1965 ब्रुकलीन, NY) झूठ करने के लिए यह असंभव है Watchtower Bible and Tract Society, हालात उसमें. 269.
3. ↑ सीटी रसेल, अध्ययन उसमें शास्त्रों – वॉल. 7: तैयार रहस्य, पृ. 410 रिचर्ड के.एच. स्मिथ, “यहोवा के गवाह कलीसिया “उसमें डेविड जे Hesselgrave, एड विल्टन एम. नेल्सन उद्धृत, गतिशील धार्मिक आंदोलनों:. तेजी से (Grand Rapids: बेकर, 1978) दुनिया भर के धार्मिक आंदोलनों बढ़ते के मामले के अध्ययन, पृ. 181.
4. ↑ (: मैकमिलन, 1970 न्यूयॉर्क), पी. अल्पसंख्यक धार्मिक आंदोलनों आधुनिक अमेरिकी सम्प्रदायों का एक अध्ययन: चार्ल्स एस ब्रेडन, ये भी प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर तो तू और तेरा घराना उद्वार पाएगा आह्वान किया. 371 न्यायाधीश रदरफोर्ड के खुला (ब्रुकलीन, NY: WBTS, 1937) के हवाले से;, परमेश्वर (1946) यह सच है रहो 82-83, 93 pp., 48-49 pp..
5. ↑ , Ankerberg यूहन्ना देखें यूहन्ना वेल्डन, कभी चर्चा, बारे में मॉर्मनमत (यूजीन, ओआरः हार्वेस्ट हाउस, 1992) जानना चाहता था सब कुछ तुम. 10.
6. ↑ ब्रूस आर McConkie, मॉर्मन सिद्धांत (साल्ट लेक शहर: Bookcraft, 1977), 270, 576-77 pp..
7. ↑ मेरी बेकर एड़ी, को कुंजी के साथ स्वास्थ्य विज्ञान ग्रंथों (बोस्टन, एमए: मसीह, वैज्ञानिक, 1971 की पहले चर्च), pp. 256, 515.
8. ↑ Victor Paul Wierwille, Jesus Christ Is Not God (New Knoxville, OH: American Christian Press, 1975), pp. 2-3, 6-7, 25.
9. ↑ Philip Schaff, ed., rev. by David S. Schaff, ईसाई जगत के creeds: महत्वपूर्ण नोट्स एक इतिहास साथ – वॉल. 1: creeds के इतिहास (Grand Rapids: बेकर पुस्तक हाउस, 1983), pp. 39-40.
10. ↑ Ibid., पृ. 38.
11. ↑ Ibid., ग्रीक अवधि transliterated गया था.
12. ↑ Nyssa के “Gregory … Ablabius के लिए, “उसमें विलियम जी Rusch, ट्रांस. . एड, The Trinitarian Controversy (फिलाडेल्फिया: किले प्रेस, 1980), 149, 151-52 pp..
13. ↑ यूहन्ना एच. Leith, चर्चों के creeds:. वर्तमान 3 एड को पवित्र शास्त्र से एक पाठक उसमें मसीही सिद्धांत, (अटलांटा: नॉक्स प्रेस, 1982 यूहन्ना), 30-31 pp..
14. ↑ Ibid., पृ. 33, जोर जोड़ा.
15. ↑ जेजी डेविस, जल्दी क्रिश्चियन चर्च: इसके पहले पांच सदियों की इतिहास (Grand Rapids, MI: बेकर, 1980), 97.
16. ↑ Rusch, 2, जोर जोड़ा.
17. ↑ E. Calvin Beisner, God in Three Persons (Wheaton, IL: टिंडेल, 1984).
18. ↑ Millard J. Erickson, Christian Theology (. Grand Rapids, MI: बेकर, 1986, एक वॉल्यूम संस्करण) – 338, 337 pp..
19. ↑ , CHS: एक अच्छा विचार – विमर्श के लिए Robert Glenn Gromacki, The Virgin Birth: Doctrine of Deity (थॉमस नेल्सन, 1974 न्यूयॉर्क) देखें. 9, 11-13.2