द्वारा: Dr. John Ankerberg, Dr. John Weldon; ©2001
कोई चाहे कुछ भी कहे, लेकिन मसीही विश्वास मनुष्य द्वारा निर्मित नहीं है, और न ही यह चेलों या प्रेरित पौलुस या चैथी शताब्दी के निखिया परिषद की कोई खोज थी. मसीही विश्वास यहूदी लोगों के सांस्कृतिक विकास का परिणाम या प्राचीन रहस्यमयी धर्मों की कृत्रिम जाग्रति का परिणाम भी नहीं है. आलोचक चाहे जैसा भी दावा करें, मसिहियत धोखा नहीं है. यीशु मसीह की मूल शिक्षाएं कभी दूषित नहीं थीं, ऐसा केवल कभी इस पंथ तो कभी उस पंथ के द्वारा इनकी नई सिरे से व्याख्या करने के कारण हुआ है, चाहे वे मोर्मोनवाद हो, यहोवा साक्षी, मसीही विज्ञान, मसीहियों की एकतम पाठशाला, आर्मस्ट्रोंगवाद या कोई अन्य पंथ हो.
ऐतिहासिक सच्चाईयाँ और केनॉन इस बात को दर्शाते है कि केवल मसिहियत ही पूरी तरह से सत्य और संसार का एकमात्र ऐसा धर्म है जो सचमुच ईश्वरीय प्रकाशन पर आधारित है. यह इतना सच्चा है कि इस पर विश्वास करनेवाला हर मसीही संस्था या वर्ग (डिनोमिनेशन) को असली मसीही समझा जा सकता है, बजाय इसके कि उन्हें असामन्य मसीहत, पाखण्ड, धर्मविरोधी शिक्षा या केवल नाम के मसीही समझा जाये.
ईश्वरीय प्रकाशन होने के आलावा, धर्मशास्त्रीय विश्वास तर्कसंगत है, और अंज्ञानता या आत्मवाद पर नहीं टिका. मसीहत ही एकमात्र ऐसा धर्म है जिसके सत्य होने की संभावना बहुत अधिक है, और झूठ होने पर बहुती सरलता से इसका खंडन भी किया जा सकता है. इसलिए, सत्य की खोज करनेवाले व्यक्ति को अपनी खोज की शुरुआत बाइबल पर टिकी मसीहत से करनी चाहिए. यदि सत्य का ज्ञान व्यक्ति का सर्वोत्तम हित है, तो मसीहत का यह दावा कि सत्य उसमें है, और यीशु मसीह का यह दावा कि वह स्वयं सत्य है, ये खोजने योग्य विषय हैं. साथ ही, क्योंकि मसीही धर्म ईश्वरीय प्रकाशन (बाइबिल) पर आधारित है, इसलिए यह बाइबिल के अधिकार में रहता है. दूसरे शब्दों में, कलीसिया बाइबिल में लिखी हुई बातों, या उसकी वैधता का न्याय नहीं करती; बाइबिल स्वयं, उन धार्मिक समूहों की बातों और वैधता का न्याय करती है जो स्वयं को मसीही कहते हैं, फिर चाहे वे परंपरागत मसीहत के दायरे में हैं या उससे बाहर.
वे, जो पहले से खोज में लगे हैं, और हमारे मसीही विश्वदृष्टि का हिस्सा नहीं हैं, वे क्यों मसीही धर्म का खुल्लमखुल्ला मूलांकन करने का विचार करते हैं? पहला, क्योंकि ऐसा करना सही है. सारे धर्म एक दूसरे की बातों का विरोध करते हैं, इसलिए सभी के सभी सहीं नहीं हो सकते. सभी के सभी गलत तो हो सकते हैं, लेकिन सही एक ही होगा। सत्य की सच्ची खोज ही जीवन का सबसे उत्तम दार्शनिक प्रयास है. प्लेटो घोषणा करता है, ‘‘ स्वर्ग और पृथ्वी, दोनों ही जगह सत्य हर भली बात का आरम्भ है; और जो धन्य और आनंदित है, उसे सत्य का पहला सहभागी होना चाहिए.” यीशु मसीह स्वयं सत्य होने का दावा करता है, और अपनी संतुष्टि के लिए उसके दावे की सच्चाई की जाँच कर सकते हैं. कोई भी धर्म यदि यह दावा करे कि सत्य केवल उसी में है, और यदि वह इसके योग्य प्रमाण भी दे, तो उस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए. बाइबिल पर आधारित मसिहियत ही केवल ऐसा दावा करती है.
मसीहत एक खोजी को गहरी और अपार संतुष्टि भरा अस्तित्व प्रदान करती है, फिर चाहे अपने जीवन में उसे कितनी ही निराशा और दर्द का अनुभव क्यों न करना पड़े. यीशु मसीह ने दावा किया है कि वह हमें ऐसा कुछ देगा जिसकी हमें अपने जीवन में सचमुच आवश्यकता हैः सच्चा अर्थ और उद्देश्य का बहाव, और मृत्यु के पश्चात् महिमामय स्वर्ग में अकल्पनीय अनंत जीवन. विख्यात ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज विद्वान, सी.एस. लुईस ने मानव जाति की हृदयस्पर्शी इच्छा को समझ कर, इस प्रकार लिखा, ‘‘कई बार ऐसे अवसर आये हैं जब मैं सोचता हूँ कि हमें स्वर्ग की इच्छा नहीं हैं, लेकिन इससे कहीं अधिक मैं इस बात को सोच कर हैरान होता हूँ, कि इसके अलावा हमारे भीतर कोई और इच्छा है भी या नहीं.”[1] यीशु ने कहा, ‘‘मैं इसलिए आया कि वे जीवन पाएं और बहुतायत से पाएं” (यूहन्ना 10:10). उसने कहा, ‘‘पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूँ, जो कोई मुझ पर विशवास करता है वह यदि मर भी जाये, तौभी जीवित रहेगा” (यूहन्ना 11:25). उसने ऐसा भी कहा, ‘‘मैं सत्य हूँ” (यूहन्ना 14:6). ‘‘जो सत्य की ओर है वह मेरी सुनता है” (यूहन्ना 18:37).
मसीहत जिन दावों पर टिकी है, और जिन सिद्धांतों की वह शिक्षा देती है, उनके कारण अनूठी है. जैसे यीशु मसीह अनूठा है वैसे ही उस पर आधारित धर्म भी अनूठा है. मसीहत की सच्चाई को प्रमाणित करने के लिए मानव अनुभव और अध्ययन के हरेक विभाग के पास पर्याप्त प्रमाण हैं. भले ही अन्य धर्मों में सत्य के बहुत से दावे हों, लेकिन यह एक गैर-मसीही का विशवास है जिसका आतंरिक व बाहरी अभाव है. हालांकि सीधे तौर पर ऐसा कहना सही नहीं होगा, लेकिन वास्तव में देखा जाये तो मुद्दा केवल एक है: ‘‘क्या यह सत्य है?’’ फिर से, मसीही विश्वास एक वस्तुनिष्ठ व तर्कसंगत विश्वास है. चाहे उनके कोई भी गुण क्यों न हो, लेकिन गैर-मसीही विश्वास आमतौर पर तर्कहीन, व्यक्तिपरक और बिना पर्याप्त प्रमाणों के ऐतिहासिक दावे हैं, तथा ईश्वरीय प्रकाशन होने के प्रमाणित दावों का अभाव है. मसीहत को लेकर एक बड़ी गलतफहमी है कि यह ‘‘अंधरे में लगाई छलाँग है”, लेकिन सही मायनों में यह व्याख्या गैर-मसीही धर्मों पर सही बैठती है.
विद्वान आश्वस्त हैं
मसीहत केवल बौद्धिक रूप में विश्वसनीय नहीं है, चाहे उस पर दार्शनिक, ऐतिहासिक, वैज्ञानिक, नैतिक, या सांस्कृतिक दृष्टि से विचार किया जाये, परन्तु प्रमाणों के दृष्टिकोण से तो यह अन्य विश्वदर्शनों में सर्वोच्च है, फिर चाहे बात लौकिक विश्वदर्शन की हो या धार्मिक विश्वदर्शन की. यदि मसीहत सचमुच गलत होती, जैसा कि अधिकाशं पंथ और संशयवादी दोष लगाते हैं, तो विख्यात विद्वान और बुद्धिजीवी, कैसे अपने विश्वास की घोषणा कर पाते? दरअसल गवाहियाँ इतनी महत्वपूर्ण नहीं हैं, पर यदि उन्हें विद्वानों के प्रमाण से सशक्त किया जाये तो उन्हें आसानी से खारिज नहीं किया जा सकता. मोर्टिमर एडलर, संसार के प्रमुख दार्शनिकों में से एक हैं. वे ‘‘द इन्साईक्लापीडिया ब्रिटैनिका” के संपादक-बोर्ड के अध्यक्ष हैं. साथ ही वे ‘‘द ग्रेट बुक्स आँफ द वेस्टर्न वल्र्ड” श्रृंखला, और अदभुत ‘‘सिंटोपिकन” के वास्तुकार भी हैं. वे शिकागो के प्रख्यात इंस्टीट्यूट फॉर फिलोसोफिकल रिसर्च के अध्यक्ष व ‘‘ट्रुथ इन रिलीजन”, ‘‘टेन फिलोसोफिकल मिस्टेक्स”, ‘‘हाउ टू थिंक अबाउट गॉड” ‘‘हाउ टू रीड ए बुक” , और ऐसी ही 20 से अधिक चुनौतीपूर्ण पुस्तकों के लेखक हैं. वह कहता है कि ‘‘मैं विश्वास करता हूँ कि इस संसार में केवल मसीहत ही तार्किक और स्थिर विश्वास है.”[2] ऐडलर के स्तर का दार्शनिक, किस प्रकार ऐसी बात कह सकता है? क्योंकि वह जानाता है कि अन्य कोई धर्म ऐसा तर्क नहीं दे सकता.
श्री जॉन वारविक मोंटोगोमेरी, जो कि एक दार्शनिक, इतिहासकार, धर्माविज्ञानी और प्रतिवादी वकील, और नौ विभिन्न क्षेत्रों में स्नातक, यह तर्क देते हैं कि ‘‘मसीही सच्चाई का प्रमाण अन्य धार्मिक दावों और लौकिक विश्वदर्शनों पर बहुत भारी पड़ता है.”[3] उनकी 50 से अधिक पुस्तकें, और 100 से अधिक विद्वत्तापूर्ण लेख, विविध गैर-मसीही धार्मिक और लौकिक क्षेत्र से पड़े प्रभावों का संकेत देते हैं. यदि मसिहियत झूठी होती, तो कैसे इतना बुद्धिमान व्यक्ति ‘‘बहुत भारी पड़ता है” जैसे शब्दों का उपयोग कर पाता?
ऐल्विन प्लैंटिंगा, जिन्हें संसार में परमेश्वर का सबसे महान प्रोटेस्टेंट दार्शनिक माना जाता है, का कथन है कि ‘‘लगभग पूरा जीवन मैं मसिहियत की सच्चाई को लेकर आश्वस्त रहा हूँ.’’[4] यदि मसीहत में स्थिरता न होती, जैसा कि पंथवादी और आलोचक दोष लगाते हैं, तो संसार का इतना महान दार्शनिक किस आधार पर ऐसी घोषणा करता?
डॉ ड्रीयू टॉटर, चार्लोट्स्वेल, वर्जीनिया में सेंटर फॉर क्रिश्चियन स्टडीज़ के कार्यकारी निर्देशक हैं. उनके पास केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की उपाधि है. उनका दावा है कि, ‘‘तर्क और प्रमाण, दोनों उस परम सत्य की वास्तविकता का संकेत करते हैं, और वो सत्य यीशु मसीह में प्रकट हुआ है”. [5]
यदि हम प्रामाणिक सत्य की खोज में हैं, तो हमें शायद प्रमुख अर्थशास्त्री और समाजशास्त्री, व ‘‘वेल्थ एंड पॉवर्टी” के लेखक, जॉर्ज आर. गिल्डर के शब्दों पर विचार करना चाहिए, जो कहतें हैं कि ‘‘मसीहत सत्य है, और इसकी सच्चाई दृष्टि के अंतिम छोर तक दिखाई देती है.”[6]
डॉ. ऐलिस्टर मैकग्राथ, वायक्लिफ हॉल, ऑक्सर्फोड यूनिवर्सिटी के प्रधानाचार्य हैं. उन्होंने अपनी शिक्षा ऑक्सफोर्ड और कैमब्रिज विश्वविद्यालय से की है, और ऑक्सफोर्ड में धर्मविज्ञान के शोध लेक्चरर हैं. उन्हें विश्व के सबसे प्रभावशाली मसीही लेखकों में से एक माना जाता है, उनकी अनेक पुस्तको में अपोलोजेटिक्स पर एक उल्लेखनीय लेख है, और साथ ही साथ ‘‘ब्रिज बिल्डिंग” व ‘‘इंटेलेक्चुअल्स डोंट नीड गॉड एंड अथर मिथ्स” शामिल है .वह कहते हैं कि मसीहत के प्रमाण इतने उच्च कोटि के हैं कि वे एक अच्छे वैज्ञानिक खोज करने के बराबर है:
जब मैं ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में आणविक जीव विज्ञान में डोक्टोरेट शोध कर रहा था, तब मैं अकसर ऐसे कई सिद्धांतों का सामना करता था जिनमें दिए गए अवलोकन का स्पष्टीकरण देना होता था. अन्त में, मुझे यह फैसला करना होता था कि किस सिद्धांत में सबसे अधिक आतंरिक स्थिरता, प्रायोगिक अवलोकन के आंकडों की सबसे अधिक अनुरूपता, और सबसे अधिक भविष्यसूचक योग्यता है. जब तक कि मुझे समझ की प्रगति की संभावना को छाड़ना न होता, मुझे ऐसा फैसला करना ही होता था… और इस तरह स्पष्टीकरण देते हुए मैं मसीहत के ‘‘सर्वोच्च” होने की बात कहता.[7]
प्रमुख मसीही विद्वान, डॉ. कार्ल एफ एच हेनरी ने ‘‘गॉड़, रिविलीशन एंड अथॉरिटी” नामक 3000 पन्नोंवाली, 6 खंड की पुस्तक लिखी है. अपने विस्तृत विश्लेषण के बाद हेनरी ने कहा, ‘‘सत्य ही मसीहत की स्थायी सम्पत्ति है…’’[8] उनके निर्णायक ‘‘बेकर इन्साईक्लोपीडिया ऑफ क्रिश्चियन अपोलोजेटिक्स” (बेकर बुक हाउस, 1999, पृ. 785) में, ‘‘व्हेन कल्टिस्ट्स आस्क,’’ ‘‘व्हेन क्रिटिक्स आस्क,’’ और ‘‘व्हेन स्केपटिस्ट्स आस्क,’’ के लेखक, प्रमुख मसीही विद्वान, डॉ. र्नोमेन एल गीज़लर लिखते हैं, ‘‘सत्य की प्रणाली ही मसीही प्रणाली है.” ऐसी वाहवाही को बारंबार, कई गुणा बढ़ाया जा सकता है. निश्चय ही, जैसा कि डॉ. गेइस्लेर टिपण्णी करते है, ‘‘अपोलोजेटिक्स के अभिभूत करने वाले प्रमाणों के सामने अविश्वास विकृत हो जाता है.’’ [9]
दूसरे धर्म के अगुवों से, मसीही धर्मं के संस्थापक, यीशु मसीह की तुलना किये जाने पर वह पूरी तरह से मूल और अनूठे सिद्ध होते हैं. टाइम पत्रिका के लेख के शब्दों में, ‘‘उनका जीवन, धरती के ‘‘सबसे अधिक प्रभावशाली जीवन था.’’[10] इसके अलावा, स्वयं मसीही बाइबिल भी स्पष्टत रुप से मानव इतिहास की सबसे प्रभावशाली पुस्तक है. यदि यीशु मसीह और मसीही ग्रन्थ इस संसार पर अपना अद्वितीय प्रभाव डाल रहे हैं, तो क्या उन्हें निष्पक्ष जाँच के योग्य नहीं समझा जाना चाहिए? यदि वस्तुनिष्ठ प्रमाण भी यही साबित करतें हैं कि मसीहत ही पूरी तरह सच है, तो ऐसी स्थिति में यही समझा जा सकता है कि व्यक्तिगत पूर्वाग्रह ही लोगों में यीशु मसीह को अपने जीवन में स्वीकार करने की अनिच्छा पैदा करता है.’’
एक और कारण: अन्य धार्मिक अनुनय, लौकिकवादियों को भी मसीहत को स्वीकार करना चाहिए, क्योंकि अपने अनुभव से हम जानते हैं कि हम निरंतर विषाक्त होते युग में रहते हैं. अपनी बहुधर्मी और मूर्तिपूजक व नास्तिक संस्कृति में हर कोई गलत शिक्षा और उसके तरह-तरह के परिणामों का शिकार हो सकता हैं, जिसमें विभिन्न पंथ और नए युग के रहस्यमय कार्य से लेकर आत्मवाद और शून्यवाद तक शामिल है. निराशा का दर्शनशास्त्र और तंत्र-मंत्र के ज़ोरदार अनुभव उन लोगों को भी बदल सकता है जिन्हें लगता है
कि उन्हें इससे कोई खतरा नहीं है. ‘‘ऐसे बहुत से शोध हैं, जो यह दिखाते हैं कि सभी लोग, विशेषकर अत्याधिक बुद्धिमान लोग ही तरह-तरह के भ्रम, मतिभ्रम, आत्म-भ्रम का शिकार होते हैं और आसानी से इनके जंजालों में पड़ जाते हैं – और सबसे अधिक ऐसा तब होता है जब भ्रम को वास्तविकता समझने में उनका फायदा हो.[11] दूसरे शब्दों में गैर-मसीहियों के जीवन का व्यक्तिगत हित भी खतरे में हो सकता है.
जब कोई, पिछले २००० साल से कुछ महान बुद्धिजीवियों द्वारा मसीहत के विरुद्ध हो रहे विवादों और हमलों की जाँच करता है, तो ज़रा सोचें कि क्या पता चलता है? एक भी हमला या तर्क सही नहीं था. उनकी एक भी बात, व्यक्तिगत या सामूहिक तौर पर, मसीहत को झूठा प्रमाणित कर सकती है. सबसे कठिन समस्या में भी, जैसे की दुष्टता की समस्या, मसीहत किसी भी धर्म या दर्शनशास्त्र से बेहतर जवाब, और समस्या का समाधान देती है.
संसार के अग्रणी बुद्धिमानों का भी मसीहत को झूठा प्रमाणित न कर पाना, यह स्पष्ट करता है कि क्यों दूसरे अग्रणी बुद्धिमानों ने इसे ग्रहण किया. जैसा कि जेम्स सायर बिल्कुल सही संकेत करते हैं, ‘‘कोई भी आखिर किसी पर क्यों विश्वास करे?’’ सबसे बेहतर प्रमाणों के लिए विश्वास पर तर्क दिये जाने चाहिए, फिर चाहे धार्मिक हो या अन्य; विवाद और सबसे मज़बूत आपत्ति का खंडन करने में सक्षम होना चाहिए. [12] मसीही विश्वास इस मापदण्ड में ठीक बैठता है.
निश्चय ही, यदि ब्रह्माण्ड के परमेश्वर ने अपने आपको प्रकट किया है, और वो ही एकमात्र सच्चा परमेश्वर है, और यदि मसीह ही उद्धार का एकमात्र मार्ग है, तो इसकी पुष्टि के लिए हम आश्वस्त करने वाले प्रमाण की उम्मीद करेंगे. कोई भी प्रमाण नहीं, निम्न स्तर के प्रमाण नहीं – ताकि अपने धर्म के चुनाव के लिए व्यक्ति के पास दर्जन बराबर मान्य प्रमाण हों – वो भी सर्वोत्तम प्रमाण.डॉ. जॉन वारविक मोंटोगॉमेरी पूछतें हैं:
क्या होगा यदि एक प्रकाशनवाले सत्य का दावा धर्मविज्ञान और धार्मिक दर्शनशास्त्र के सवाल – पहले से ‘‘सच्चे विश्वासियों” के पास मौंजूद किसी तरह का गूढ़, फिदेइस्टिक तरीके – उत्तेजित न करे, वरन् तथ्य के प्रश्न निर्धारित करने के लिए व्यवस्था में लगाए तर्क पर करे? ………… परिचित उदहारण लेते हैं, पूर्वी विश्वास और इस्लाम स्वतंत्र रुप से खोजनवालों से कहते हैं कि वे सच्चाई को अनुभव द्वारा जानें: विश्वास का अनुभव स्वयं को आत्मप्रमाणित करेगा……….लेकिन वहीं दूसरी तरफ, मसीहत इस बात की घोषणा करती है कि उसके निश्चित दावे पूरी तरह से ऐतिहासिक सत्य पर निर्भर है, और सामान्य जांच के लिए भी खुला है….
विधिशास्त्र से जुड़े दृष्टिकोण का लाभ यह है कि उसे आसानी से खारिज नहीं किया जा सकता है: प्रमाण के कानूनी मानकों का विकास समाज के सबसे असभ्य विवादों को हल करने के लिये हुआ है… इस प्रकार, कोई भी इस वैधानिक तार्किकता को सिर्फ खारिज नहीं कर सकता क्योंकि मसीहत के लिए इसका प्रयोग करने से परिणाम मसीही विश्वास के पक्ष में निकलता है.[13]
इसलिए, चलो यह कल्पना करते हैं कि सत्य का परमेश्वर सत्य के लिए समर्पित है, और वह यह इच्छा रखता है कि लोग उसे खोजें. निश्चय ही, ‘‘उसी ने एक ही मूल से मनुष्यों की सब जातियाँ सारी पृथ्वी पर रहने के लिए बने है और उन के ठहराए हुए समय और निवास के सिवानों को इसलिए बांधा है कि वे परमेश्वर को ढूंढें, कदाचित उसे टटोलकर पा जायें तौभी वह हम में से किसी से दूर नहींष् (प्रेरितों 17:26-27). ईश्वरीय प्रकाशन की खोज करने का सबसे तर्कसंगत स्थान कौन सा है? क्या वह एक वही धर्मं न होगा जो परमेश्वर ने अन्य सब से अलग रखा है? किसी धर्म में सचमुच कोई सच्चाई है या नहीं, तार्किक रुप से यह जानने का सबसे बेहतरीन और व्यवहारिक तरीका है कि शुरुआत सबसे बड़े, सबसे अनूठे, प्रभावशाली और प्रामाणिक धर्म से करनी चाहिए. ‘‘इसलिए परमेश्वर ने अज्ञानता के समयों में आनाकानी करके, अब हर जगह सब मनुष्यों को मन फिरने की आज्ञा देता है. क्योंकि उसने एक दिन ठहराया है,जिसमें वह उस मनुष्य के द्वारा धर्म से जगत का न्याय करेगा, जिसे उस ने ठहराया है और उसे मरे हुओंमें से जिलाकर, यह बात प्रमाणित कर दी है” (प्रेरितों 17:30-31). निर्णय करने का यह तरीका बिल्कुल उचित लगता है, बजाय इसके कि हम हर धर्म की एक-एक करके जाँच पड़ताल करें, या अपनी पसंद से कोई भी धर्म चुन लें, या अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर उसे स्वीकारें.
समस्या यह है कि, गैर-मसीही धर्म उद्देश्यपरक, ऐतिहासिक प्रमाणों पर आधारित न हो कर, अपने अनुभव पर आधारित हैं. वैसे भी अपने भीतर निहित आत्मवाद के कारण वे कुछ साबित नहीं करते. इस प्रकार, केवल गहरे धार्मिक अनुभव, किसी भी धर्म को सत्य साबित नहीं करते. निश्चय ही, हरेक धर्मों की जांच करना (चाहे क्रम कोई भी हो), बहुत ही थकाने और असमंजस में डालने वाला, और अन्ततः एक असंभव कार्य होगा.
यदि परमेश्वर एक ही है, और केवल एक ही धर्म पूरी रीति से सत्य है, तो किसी को भी अन्य धर्म में स्थायी सबूत की आशा नहीं करनी चाहिए. वास्तव में, किसी भी अन्य धर्म के पक्ष में कोई स्थायी सबूत नहीं है, फिर चाहे वह धर्म बड़ा है या छोटा. यदि किसी और धर्म के पास कोई मान्य प्रमाण है ही नहीं, और यदि केवल मसीहत के पास विश्वास दिलाने वाले प्रमाण हैं; तो फिर अन्य धर्मों की जांच में समय क्यों गँवाना, विशेषकर तब जबकि उन पर विश्वास करने के परिणाम के गंभीर नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं, न केवल इस जीवन में बल्कि अगले जीवन में भी?
यह आसान कितना जो, अधिक तार्किक, पैमाने की सच्चाई सबसे अंत की संभावनाओं की जांच शुरू करने के लिए. हम इनमें से कुछ “एक जवाब के साथ तैयार” हमारे पुस्तक (हार्वेस्ट हाउस, 1997) उसमें की जांच की. एक साक्ष्यों दृष्टिकोण की ” मूल्य, “विलियम जे Cairney (पीएच.डी., कॉर्नेल) पर आधारित ईसाई धर्म पवित्र शास्त्र प्रेरित का परमेश्वर तथ्य के लिए वास्तविक सबूत है कि गठन संभावनाओं से कुछ की चर्चा:
इतिहास उसमें अग्रिम लिखा. हम लिखने इतिहास उसमें पीछे मुड़कर देखें, एक सर्वशक्तिमान, सर्वशक्तिमान, प्रजापति अंतरिक्ष की हमारे विचार समयबद्ध नहीं होगा, इस प्रकार पहले यह होता है इतिहास लिखने में सक्षम हो जाएगा. हम अच्छा अनुमान लगाने में पूरी तरह से खारिज किया जाना होगा कि उसमें इस तरह के विस्तार ऐसे सटीकता के साथ इतिहास लिखा उसमें अग्रिम के पृष्ठ के बाद पृष्ठ निहित है कि एक स्रोत पुस्तक का सामना करना पड़ा है कि मान लीजिए.
आगमज्ञान. कि उसमें एक ही स्रोत पुस्तक मान लीजिए, हम मानव जाति कि ज्ञान वा उन अवधारणाओं की खोज के लिए आवश्यक तकनीकी आधार विकसित किया था दूर से पहले अवधारणाओं वैज्ञानिक ज्ञान का प्रदर्शन सदियों पहले लिखा सटीक बयान मिल पा रहे थे ….
ऐतिहासिक साक्ष्य. कि उसमें एक ही स्रोत पुस्तक मान लीजिए, हम ऐतिहासिक छात्रवृत्ति जारी रखा के रूप में समय समय के बाद सच के रूप में सत्यापित किया गया है कि ऐतिहासिक दावे मिल रहे थे ….
पुरातात्विक साक्ष्य. कि उसमें एक ही स्रोत पुस्तक, स्थानों लोगों के बारे में किए है मुश्किल है सत्यापित करने के लिए कि बयान, अतीत के पुरातत्व “unearths “अधिक ज्ञान, अपने दावे सच उसमें हो देखा समय Sourcebook जो के बाद समय के रूप में मान लीजिए.
दार्शनिक तार्किक जुटना. एक ही स्रोत पुस्तक, हजारों साल से अधिक टुकड़ों में लिखा हालांकि, आंतरिक लगातार जो अच्छी तरह से विकसित आम प्रसंग हैं कि मान लीजिए. और इन सबूतों के एक ही संकलन के भीतर आंतरिक अंतर्विरोध के बिना एक साथ वा साहित्यिक तनाव लटका लगता है. सामूहिक रूप से, हम हल्के से इन सबूतों नहीं ले सकता है.[14]
दरअसल, जो क्यों, कुल मिलाकर, सबूत जोरदार वा नहीं किसी को ईसाइयत जो सच है, इस बात से सहमत है कि क्या हो पाता है. सबूत उसमें अन्य धर्मों पाया की तुलना में ईसाई धर्म के लिए सबूत, दार्शनिक नैतिक, ऐतिहासिक, वैज्ञानिक, पुरातात्विक वा,) यह आंतरिक दस्तावेजों जो चाहे शक्तिशाली बनी हुई है. उदाहरण के लिए, नए करार के दस्तावेजों की क्षमता “सामान्य इतिहास नए करार भूगोल, कालक्रम, की विश्वसनीयता फिर फिर से पुष्टि की “Modern पुरातात्विक अनुसंधान का .”, उसमें कानून की किसी भी अदालत की स्थापना की जाएगी[15]
(पक्षपातपूर्ण, उदार बाइबिल अध्ययन यही जो विशेष रूप से सच उसमें हम अक्सर यह पर उनकी नाक snubbing सच सच कहता हूँ के सबसे करीब होने के नाते उन की विरोधाभास लगता है जहां बाइबिल विश्वास, ठुकरानेवाले को धर्मों का आह्वान किया. शास्त्रीय विद्वान प्रोफेसर ईएम Blaiklock बताते बताया गया है, “Recent पुरातत्व का कितना बकवास अधिक नष्ट कर देगा. और अटकलों एक पल साहित्यिक वा ऐतिहासिक आलोचना की किसी अन्य शाखा उसमें के लिए बर्दाश्त नहीं किया जाएगा कि मुद्रा उसमें बाइबिल छात्रवृत्ति खोजने मैं सिद्धांतों के लिए जानबूझकर शब्द बकवास उपयोग को नष्ट कर दिया. “)[16]
निष्कर्ष, कोई भी सफलतापूर्वक ईसाई धर्म अपने मूल अच्छी तरह से जांच के रूप में नहीं किया गया मिले कि यह की कुछ अपरिचित पहलू इसके पतन साबित हो सकता बहस . बी NOSS बताते यूहन्ना मनुष्य का धर्म , इतिहास के किसी भी अन्य तुलनीय अवधि की तुलना में इसके बारे में लिखा अधिक पुस्तकों था का ” पहले ईसाई सदी की पांचवें संस्करण के रूप में. अपने इतिहास पर नए करार के epistles है Gospels असर इन फिर हम एक तुलनात्मक बयान दिया है और अधिक अच्छी तरह कभी लिखा किसी भी अन्य पुस्तकों की तुलना में जांच के मन की तलाशी ली गयी. “बनाना चाहिए ” मुख्य स्रोतों[17] सार, ईसाई धर्म कहने के लिए आवश्यक प्रमाणित की बोझ, सच “यही धर्म एकमात्र जो मिलता है. ” आलोचकों अन्यथा का दावा करते हैं, वे गलत है.
प्रस्तावित अध्ययन
यूहन्ना Ankerberg, यूहन्ना वेल्डन, एक जवाब के साथ तैयार, उद्धार बारे सत्य को जानने का
C. S. Lewis, मेरे ईसाई धर्म
फ्रांसिस Schaeffer, उन्होंने कहा कि वह चुप नहीं है वहाँ है
नॉर्मन Geisler, Baker Encyclopedia of Christian Apologetics
नोट्स
1. ↑ C. S. Lewis, The Problem of Pain (न्यू यॉर्क: मैकमिलन, 1962), पृ. 145.
2. ↑ के रूप में एक साक्षात्कार उसमें “Christianity Today”, नवम्बर 19,1990, पृ उसमें आह्वान किया. 54.
3. ↑ यूहन्ना डब्ल्यू मांटगोमेरी (सं.), “Evidence for Faith: Deciding the God Question” (डलास: वर्ड, 1991), पृ. 9.
4. ↑ Alvin Plantinga, “A Christian Life Partly Lived, “उसमें Kelly James-Clark (ed.), Philosophers Who Believe (Downers Grove, IL: InterVarsity, 1993), पृ. 69, जोर जोड़ा.
5. ↑ जैसा उसमें Chattanooga Free Press, 25 जुलाई, 1995, पी. साक्षात्कार. A-11.
6. ↑ George Gilder, को L. Neff, “Christianity Today वार्ता ” Christianity Today6 मार्च, 1987, पृ. (यूजीन, या: हार्वेस्ट हाउस, 1994), पी. 55, उसमें David A. Noebel, “सत्य के लिए खोज हमारे दिन की धार्मिक worldviews टाइम्स समझ” का आह्वान किया. 15.
7. ↑ Alister E. McGrath, “Response to John Hick “उसमें Dennis L. Okholm Timothy R. Phillips (सं.),” More Than One Way? Four Views on Salvation in a Pluralistic World “(Grand Rapids, MI: Zondervan, 1995), पृ. 68.
8. ↑ Ajith Fernando, “The Supremacy of Christ” (व्हीटॉन, IL: क्रॉसवे, 1995), पृ. 109.
9. ↑ Norman L. Geisler, “Joannine Apologetics “उसमें रॉय बी Zuck (जनरल एड.),” Vital Apologetic Issues: Examining Reasons and Revelation in Biblical Perspective “(Grand Rapids, MI: Kregel, 1995), पृ. 57.
10. ↑ Richard N. Ostling, “Who Was Jesus? “समय, 15 अगस्त, 1988, पृ. 57.
11. ↑ Maureen O’Hara, “Science, Pseudo-Science, and Myth Mongering, “Robert Basil (सं.), Not Necessarily the New Age: Critical Essays (न्यूयॉर्क: प्रोमेथियस, 1988), पृ. 148.
12. ↑ याकूब महाराज, “क्यों सब में किसी प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर तो तू और तेरा घराना उद्वार पाएगा कुछ?” (Downers Grove, IL: InterVarsity प्रेस, 1994), पृ. 10.
13. ↑ यूहन्ना वारविक मांटगोमेरी, ” जूरी रिटर्न: ईसाई धर्म के एक न्यायिक रक्षा, “उसमें John Warwick Montgomery (ed.),” Evidence for Faith: Deciding the God Question “(डलास: जांच बुक्स, 1991), 319-20 pp..
14. ↑ विलियम जे Cairney, ” एक साक्ष्यों दृष्टिकोण का मूल्य, “उसमें मांटगोमेरी (सं.),” Evidence for Faith “, पृ. 21.
15. ↑ मांटगोमेरी, ” जूरी रिटर्न: ईसाई धर्म के एक न्यायिक रक्षा, “उसमें मांटगोमेरी (सं.),” विश्वास के लिए साक्ष्य “, pp. 322, 326.
16. ↑ ईएम Blaiklock, “Christianity Today”, 28 सितम्बर, 1975, पृ. 13.
17. ↑ यूहन्ना बी NOSS, “मनुष्य का धर्म”, 5 एड. (न्यूयॉर्क: मैकमिलन, 1974), पृ. 417.