विश्वास द्वारा धर्मी ठहराये जाने का बाइबल सिद्धांत

द्वारा: Dr. John Ankerberg / Dr. John Weldon; ©2005

‘धर्मी ठहराना’ परमेश्वर का कार्य है जिसमें वह मसीही विश्वासियों के पापों को क्षमा करता है और विश्वास के द्वारा उनमें मसीह की आज्ञाकारिता व धार्मिकता को आरोपित करके उन्हें धर्मी ठहराता है. (देखें लूका 18:9-14)

धर्मी ठहराये जाने का सिद्धांत तर्क प्रमाणित बाइबल का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है. इस में कोई संदेह नहीं कि यही वह सिद्धांत है जिसे मसीही धर्म की अपेक्षा अन्य सभी धार्मिक पंथों और धर्मों ने अस्वीकार किया है और इसका विरोध किया है. अपनी पुस्तकKnow Your Christian Life: A Theological Introduction, में धर्मशास्त्री Sinclair Ferguson इसके महत्व की चर्चा करते हैं जो केवल कलीसिया के लिए ही नहीं बल्कि मसीहियों के लिए भी है.

Martin Luther, जिन्हें अधिकांश जनों की तुलना में सुसमाचार की अधिक समझ थी, उन्होंने एक बार कहा था कि केवल धर्मी ठहराये जाने का सिद्धांत ही है जिसके द्वारा कलीसिया या तो आस्तित्व में बनी रहती हैं या विलोप हो जाती है. उन्होंने कहा ‘‘और विश्वास का यह मूलतत्व ही है जो कलीसिया का ‘सिर‘ और कोने का पत्थर है, जो कलीसिया की उत्पत्ति का कारण है और उसका निर्माण करता है,उसे अवस्थित रखता है और उसकी रक्षा करता है, उसे पोषित करता है; और इसके बिना परमेश्वर की कलीसिया एक घंटे भी नहीं टिक सकती.’’ लूथर सही थे. हालांकि हमने मसीही जीवन की सामान्य व्यवस्था और उसके संचालन की हमारी समझ के लिए नए जन्म के सिद्धांत को महत्वपूर्ण कहा है, लेकिन धर्मी ठहराये जाने का सिद्धांत ही वास्तव में केंद्रीय सिद्धांत है. यह न केवल कलीसिया के बने रहने और गिरने का कारण है, बल्कि यह मसीही विश्वासियों के भी ठहराव या पतन का सिद्धांत है. अन्य किसी भी सिद्धांत की तुलना में, इस सिद्धांत की अधूरी समझ या गलत दृष्टिकोण के कारण मसीही विश्वासियों के जीवन में शायद सबसे अधिक समस्या पैदा होती है. जब परमेश्वर की संतान परमेश्वर के साथ अपनी शांति के बोध को खो देती है तब वह दूसरों के प्रति अपनी भावना शून्य हो जाती है, अथवा परमेश्वर की उदारता व अनुग्रह की भावना को प्राय: घटा हुआ पाती है, तो यह वह जल-सोता है जिससे पीना उसने बंद कर दिया है. इसके विपरीत, यदि हम इस सिद्धांत पर युत्तियुत्त उन्नति करें, तो हमारे पास शांति और आनन्द के जीवन की बुनियाद होगी.[1]

इसके बाद वह बताते हैं कि कुछ लोगों के लिए इस विचार को अन्तर्ग्रहण करना इतना कठिन क्यों होता हैः

इसके व्यावहारिक महत्व को बढ़ा-चढ़ा कर बताना संभव नहीं है. सुसमाचार की महिमा यही है कि परमेश्वर ने मसीहियों को उनके पापों के बावजूद भी उसके साथ उचित संबन्ध बनाए रखने की अपनी इच्छा प्रकट की है. लेकिन हमारी सबसे बड़ी परीक्षा या गलती यह है कि हम उसके अनुग्रह के काम में ‘सद्गुणों’ को ले आने का प्रयास करते है. हम कितनी आसानी से भ्रम में पड़ जाते हैं कि हम तभी तक धर्मी ठहराये जाते हैं जब तक हमारे चरित्र में धर्मी ठहराये जाने योग्य कोई बात गुण हो. लेकिन पौलुस की शिक्षा के अनुसार हमारा किया कोई भी काम हमे धर्मी ठहराने में मदद नहीं करता. वास्तव में, उसने इस बात पर इतना अधिक ज़ोर दिया कि लोगों ने उस पर यह आरोप लगाया कि वह सिखाता है कि परमेश्वर द्वारा धर्मी ठहराये जाने के बाद विश्वासी का जीवन कैसे भी हो उससे कोई अन्तर नही पड़ता है. यदि हम जैसे हैं, वैसे ही परमेश्वर हमें धर्मी ठहरता है, तो पवित्रता का क्या महत्व है? परन्तु इसका एक आशय यह भी है कि यह हमारे लिए एक परीक्षा है कि हम संसार को सुसमाचार में उपलप्ध परमेश्वर का अनुग्रह पहुंचा रहे हैं यां न हीं. क्या यह लोगों को विवश करता है कि वे कहें: ‘‘आप अनुग्रह की पेशकश कर रहे हैं जो ऐसा निर्मोल है कि आपकी जीवनशैली कैसी भी हो, अन्तर नहीं पड़ेगा?’’ फरीसियों को भी यीशु की शिक्षाओं को लेकर ठीक यही आपत्ति थी![2]

ये रही वे विशेषताएँ जो ‘धर्मी ठहराये जाने’ की पहचान कराती हैं:

II. धर्मी ठहराना क्या नहीं है:

1.  यह प्रतिफल  हमारे अच्छे कामों का नहीं है.

2.  यह कोई ऐसा कार्य नहीं है जिसमें हम परमेश्वर का सहयोग करते हों. (यह पवित्रीकरण नहीं है.)

3.  यह हम में फूंकी गई धर्मिता नहीं है जो भले कामों को जन्म देती है, कि धर्मी ठहराये जाने का आधार बने (जैसा कि मोरमोन और कैथालिक कलीसिया में धर्मी ठहराये जाने का सिद्धांत है)

4.  यह परमेश्वर के न्याय तृष्ट किए बिना नहीं किया जाता, अर्थात् यह अन्यायपूर्ण नहीं है.

5.  इसमें स्तर नहीं होते- कोई भी व्यक्ति कम या अधिक धर्मी नहीं ठहराया जाता. व्यक्ति या तो पूरी रीति से धर्मी ठहराये जाते हैं या पूरी रीति से अधर्मी.

III. धर्मी ठहराना क्या है:

1. धर्मी ठहराया जाना परमेश्वर की दया का वह मुफ्त वरदान है जिसके योग्य हम नहीं हैं  (रोमि. 3:24; तीतु. 3:7)

2. औचित्य जो पूरी तरह पूरा एक बार   के लिए. (यह स्वयं को निर्मल बनाने की प्रक्रिया नहीं है, लेकिन इसका ज्ञान निश्चय ही पवित्रीकरण में सहायता करता है.)

हमारे समय के एक गणमान्य धर्मशास्त्री James Packer ने कहा थाः

यह धर्मी ठहराया जाना यधपि व्यक्तिगत रूप से मनुष्य के विश्वास के पल पर आधारित होता है, (रोमि. 4:3; 5:1) अन्त समय तक का सदाकालीन परमेश्वर का कार्य है- अन्तिम न्याय का वर्तमान में होना. एक बार धर्मी ठहराये जाने की आज्ञा एक बार दे दी गई तो फिर बदली नहीं जा सकती है. धर्मी ठहराये हुओं को परमेश्वर का ‘‘क्रोध” स्पर्श नहीं करेगा (रोमि. 5:9). वे जिन्हें ग्रहण किया जा चुका है, वे सदा के लिए सुरक्षित हैं. संभव है कि मसीह के न्याय के सिंहासन (रोमि. 14:10-12; 2 कुरि. 5:10) के आगे तहकीकात में वे अपने कुछ प्रतिफलों (1 कुरि. 3:15) से वंचित हो जाएँ, लेकिन धर्मी ठहराये जाने से वे कभी वंचित नहीं होंगे. मसीह परमेश्वर द्वारा धर्मी ठहराये जाने की आज्ञा को चुनौती नहीं देगा, बल्कि उसकी घोषणा करेगा, पुष्टि करेगा और उसे लागू करेगा.[3]

दूसरे शब्दों में, परमेश्वर पिता न्यायोचित   विश्वास की बिंदु पर, जो यह संभव बेटा कभी पिता का कानूनी घोषणा निराकरण करना चाहते हैं?

3. औचित्य एक शामिल है लांछित  पूरी तरह से अलग से धर्म के काम करता है: विश्वासी को स्वयं परमेश्वर की धर्मिता दी जाती है. इसका मनुष्य की अपनी धर्मिता से कोई लेना-देना नहीं है (रोमि. 4:5, 6, 17-25).

इसमें परमेश्वर हमारे पाप और अपराध को नज़रअंदाज़ ही नहीं करता वरन् संपूर्ण और भरपूर पवित्रता को हमारे खाते में डाल देता है. Bruce Milne इस विनिमय को इस तरह से व्यक्त करते हैं:

हमारा धर्मी ठहराया जाना परमेश्वर द्वारा हमारे अपराधों को नज़रअंदाज़ करना भर नहीं है, हमारी ज़रुरत तो तभी पूरी हो सकती है जब हमें धर्मिता अर्थात चरित्र की भरपूर एवं संपूर्ण पवित्रता दी जाए. यह परमेश्वर का अद्भुत वरदान है. मसीह द्वारा सिद्ध व्यवस्था पालन और उसकी सिद्ध धर्मिता उसमें विश्वास के द्वारा हमारी हो जाती है(1 कुरि. 1:30; फिलि. 3:9). यह अपने जीवन में नैतिकता की परीक्षा में हमारी घोर विफलता प्रदर्शन को नज़रअंदाज़ करना ही नहीं है अपितु हम इसे 100 प्रतिशत अंको के साथ पहले दर्जें के साथ उत्तीर्ण करते हैं! एथेनासियस को इस ‘‘अद्भुत लेनदेन’’ के बारे में कहने दें, जिस कारण, कैल्विन कहते हैं, ‘‘पूरी तरह निष्कलंक और निर्दोष परमेश्वर के पुत्र ने हमारे पापों के कलंक और अपमान को अपने ऊपर ले लिया, और बदले में हमें अपनी धार्मिकता का वस्त्र पहनाए.’’[4]

धार्मिकता रोपित करने का कारण है, विश्वासी का मसीह में एक हो जाना. दूसरे शब्दों में, क्योंकि विश्वासी ‘‘मसीह में’’ है, मसीह की धर्मिता उसमें रोपित की गई है. धर्मी ठहराया जाना उसी बात की अनुवर्ती वैधानिक स्वीकृति है. हमें धर्मी ठहराया गया है (भूतकाल).  परमेश्वर के आगे हमारे पास सिद्ध धर्मिता है (हमारी अपनी नहीं बल्कि वैधानिक रुप से मिली धर्मिता).

परन्तु उसी की ओर से तुम मसीह यीशु में हो, जो परमेश्वर की ओर से हमारे लिए ज्ञान ठहरा, अर्थात् धर्म, और पवित्रता, और छुटकारा. (1 कुरि. 1:30).

जो पाप से अज्ञात था, उसी का उसने हमारे लिए पाप ठहराया कि हम उसमें होकर परमेश्वर की धार्मिकता बन जाएँ. (2 कुरि. 5:21)

अपने किताब God’s Words: Studies of Key Bible Themes, में J. I. Packer धर्मी ठहराये जाने के अर्थ की चर्चा करते हैं और कैथालिक व मारमोन मत से इसकी परस्पर तुलना करते हैं

बाइबल के अनुसार ‘‘धर्मी ठहराये जाने’’ का अर्थ होता है ‘‘धर्मी ठहराये जाने की घोषणा’’ करना, अर्थात् इस बात की घोषणा करना कि यह व्यक्ति, जिस पर मुकदमा चल रहा था, वह उन लोगों के कारण सज़ा का नहीं बल्कि विशेष सुविधाओं का हकदार है जिन्होंने व्यवस्था का पूरी रीति से पालन किया है….रोम की कलीसिया ने हमेशा से यह माना है कि परमेश्वर द्वारा धर्मी ठहराने का काम पूरी रीति से चाहे न सही, लेकिन बुनियादी तौर पर भीतरी आत्मिक नवीनीकरण के द्वारा होता है, लेकिन अगस्टीन के समय से चले आ रहे इस मत का कोई प्रमाण न तो बाइबल में हैं और न ही भाषा अध्ययन में इसका पता चलता है. ‘‘धर्मी ठहराये जाने’’ के लिए पौलुस द्वारा प्रयोग किए गए समानार्थक शब्द हैं ‘‘धर्मी समझना,’’ ’’पापों की क्षमा (से छुटकारा),’’ ‘‘पापी न ठहराया जाना’’ (देखें रोमियो 4:5-8) – ये सारे शब्द आंतरिक बदलाव के विचार को नहीं बल्कि एक वैधानिक स्थिति को दर्शाता हैं और वैधानिक त्र्रिन के रद्द किए जाने के विचार को प्रकट करते हैं. धर्मी ठहराया जाना व्यक्ति पर न्याय की आज्ञा है, न कि व्यक्ति के भीतर हुआ नए मन का कोई काम; यह परमेश्वर का दिया एक ओहदा और उसके साथ संबंध का वरदान है, न कि मन का रुपांतरण. निश्चय ही, धर्मी ठहराये गए लोगों को परमेश्वर नया जीवन देता है, लेकिन ये दोनो बातें एक नहीं हैं.[5]

इस प्रकार, के रूप में Baker’s Dictionary of Theology  ध्यान दिलाती है, मसीह में हर एक विश्वासी को (रोपित धर्मिता के आधार पर) परमेश्वर धर्मियों की तरह देखता है, न कि पापियों की तरह:

‘‘परमेश्वर की धर्मिता’’ (परमेश्वर से प्राप्त धार्मिकता फिलिप्पियों 3:9] ) उन्हें मुफ्त वरदान की तरह दी गई (रोमियों 1:17, 3:21, 9:30; 10:3-10): या कह सकते हैं, कि उन्हें यह अधिकार और प्रतिज्ञा मिलती है कि अब उनके साथ पापियों के समान नहीं, बल्कि ईश्वरीय न्याय के द्वारा धर्मियों के समान बर्ताव किया जाएगा. इस तरह, वे उसमें और उसके द्वारा – जो ‘‘पाप से अज्ञात’’ था, और उनके लिए पाप ठहराया गया था (उसके साथ पापियों जैसा बर्ताव किया गया और उसने पापियों के समान सज़ा भुगती) – ‘‘परमेश्वर की धर्मिता’’ बन जाते हैं (2 कुरि. 5:21). यही है ‘‘मसीह की धर्मिता के ओरापण’’ में व्यक्त पारंपरिक पेंटेकास्टल विचार, अर्थात्, परमेश्वर के सम्मुख विश्वासियों का धर्मी होना (रोमियों 5:19), और उनमें धर्मिता (फिलिप्पियों 3:9) का होना और किसी कारण से नहीं बल्कि इसलिए है कि उनका सिर, मसीह, परमेश्वर के आगे धर्मी था, और वे उसके साथ एक हैं तथा उसको मिले ओहदे और उसको मिली स्वीकृति के सहभागी हैं. मसीह की आज्ञाकारिता के कारण मिली योग्यता के आधार पर, मसीह की खातिर, परमेश्वर विश्वासियों पर आज्ञा सुनाते हुए उन्हें धर्मी ठहराता है. परमेश्वर उनके धर्मी होने की घोषणा करता है, क्योंकि वह उन्हें धर्मी मानता है; और वह धर्मिता को उनके खाते में गिनता है, लेकिन इसलिए नहीं कि वह यह मानता है कि उन लोगों ने उसकी व्यवस्था का स्वयं पालन किया था (जो कि झूठा न्याय होता), बल्कि इसलिए कि वह उन्हें उसके भीतर एक मानता है जिसने उनके लिए सारी व्यवस्था का पालन किया था (यही है सच्चा न्याय). पौलुस के लिए, मसीह के साथ एक होना कोई फंतासी नहीं बल्कि एक सच्चाई थी – जो कि असल में मसीहत की भी बुनियादी सच्चाई है; और आरोपित धर्मिता का सिद्धांत इसी सच्चाई के अदालती पहलू की व्याख्या है (देखें रोमियों 5:12).[6]

4. धर्मी ठहराया जाना परमेश्वर के न्याय के सामंजस्य में पूरा किया जाता है. यह उसकी पवित्रता को दर्शाता है; उसे नकारता नहीं है. परमेश्वर की दृष्टि में पापियों के धर्मी ठहराये जाने के लिए दो शर्तों का पूरा किया जाना ज़रुरी होता है. पहली शर्त, व्यवस्था की हर एक अनिवार्यता पूरी की जाए. दूसरी शर्त, परमेश्वर के असीम पवित्र चरित्र को पूरी रीति से तुष्ट किया जाए. J. I. Packer टिप्पणी देते हैं:

धर्मी ठहराए जाने को न्यायोचित होने के लिए एक ही उपाए है कि जहां तक धर्मी ठहराया गए मनुष्य का प्रशन है वह व्यवस्था की अनिवार्यता पूरी करे. परन्तु परमेश्वर की व्यवस्था पापी के लिए दो अनिवार्यताएं रखती है. वह परमेश्वर के सृजित प्राणियों से पूर्ण आज्ञापालन और व्यवस्था के उल्लंघन के अपराध में उसके दण्ड को पूरा भोगने, दोनों की मांग करता है. लेकिन वे इस दोहरी माँग को कैसे पूरा कर सकते हैं? इसका उत्तर है: उनके नाम में यीशु मसीह पहले ही इन माँगों को पूरा कर चुका है. अपने लोगों के स्थान पर इन दोनो माँगों के निमित्त व्यवस्था के अधीन होने के लिए परमेश्वर का बेटा यीशु मसीह ‘‘व्यवस्था के अधीन’’ पैदा हुआ था (गला. 4:4). उसकी अधीनता के इन दोनो पहलूओं का संकेत पौलुस के शब्दों में मिलता हैः “यहां तकआज्ञाकारी-रहा कि मृत्यु भी सह ली’’ (फिलिप्पियों 2:8). उसके धर्मी जीवन का अंत पिता की इच्छा के अनुसार एक अधर्मी की मृत्यु स्वरुप हुआ. उसने मनुष्यों के पापों का प्रायश्चित करने के लिए (रोमियों 3:25) व्यवस्था के दंड के श्राप को अपने ऊपर ले लिया (गलातियों 3:13).

और इस तरह, ” एक धर्म के काम के द्वारा”-निष्पाप यीशु की जिंदगी और मौत के द्वारा- “सब मनुष्यों के लिए जीवन के निमित्त धर्मी ठहराए जाने का कारण हुआ” (रोमियों 5:18 NASB)[7]

वह निष्कर्ष निकालते हैं कि:

पौलुस का प्रमेय है कि परमेश्वर पापियों को किसी न्यायसंगत आधार पर ही धर्मी ठहराता है, अर्थात, परमेश्वर की व्यवस्था की माँगों को पूर्ण रीति से पूरा किया. उन्हें धर्मी ठहराने के लिए व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं किया गया है, या उसे निलंबित नहीं किया गया या उसका उल्लंघन नहीं किया गया है, बल्कि उनके स्थान पर यीशु मसीह ने व्यवस्था को पूरा किया है. सिद्ध रीति से परमेश्वर की सेवा करने के द्वारा, मसीह ने सिद्ध रीति से व्यवस्था का पालन किया (मत्ती 3:15). सकी आज्ञाकारिता उसकी मृत्यु में पूरी हुई (फिलिप्पियों 2:8); उसने मनुष्यों के स्थान पर व्यवस्था का दण्ड भोगा (गलातियों 3:13) कि उनके पापों का प्रायश्चित करे (रोमियों 3:25). मसीह की आज्ञाकारिता के कारण, परमेश्वर विश्वास रखनेवाले पापियों में पाप नहीं बल्कि धार्मिकता आरोपित करता है (रोमियों 4:2-8; 5:19).[8]

ठीक यही बात बाइबल भी सिखाती है – कि परमेश्वर प्रभु यीशु में विश्वास करनेवालों के लिए निष्पक्ष न्यायी तथा धर्मी ठहरानेवाला दोनों है.

‘‘इसलिये कि सबने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं, परन्तु उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है, सेंत-मेंत धर्मी ठहराए जाते हैं. उसे परमेश्वर ने उसके लहू के कारण ऐ ऐसा प्रयाश्चित ठहराया, जो विश्वास करने से कार्यकारी होता है, कि जो पाप पहले किए गए और जिन पर परमेश्वर ने अपनी सहनशीलता के कारण ध्यान नहीं दिया. उनके विषय में वह अपनी धार्मिकटा प्रगट करे. वरन् इसी समय उसकी धार्मिकता प्रगट हो कि जिससे वह आप ही धर्मी ठहरे, और जो यीशु पर विश्वास करे उसका भी धर्मी ठहरानेवाला हो.’’ (रोमियों 3:23-26)

IV. बाइबल के प्रमाण

उत्पत्ति 15:06- उसने यहोवा पर विश्वास किया, और यहोवा ने इस बात को उसके लेखे में धर्म गिना. .

भजनसंहिता 32:2 क्या ही धन्य है वह मनुष्य जिसके अधर्म का यहोवा लेखा न ले,…

यशायाह 54:17 – जितने हथियार तेरी हानि के लिये बनाए जाँं, उन में से कोई सफल न होगा, और, जितने लोग मुद्दई हो कर तुझ पर नालिश करें उन सभों से तू जीत जाएगा. यहोवा के दासों का यही भाग होगा, और वे मेरे ही कारण धर्मी ठहरेंगे, यहोवा की यही वाणी है.

यिर्मयाह 23:6 – उसके दिनों में यहूदी लोग बचे रहेंगे, और इस्राएली लोग निडर बसे रहेंगे, और यहोवा उसका नाम यहोवा “हमारी धामिर्कता” रखेगा.

हबक्कूक 2:4 – देख, उसका मन फूला हुआ है, उसका मन सीधा नहीं है, परन्तु धर्मी अपने विश्वास के द्वारा जीवित रहेगा.

रोमियों 3:28 – इसलिये हम इस परिणाम पर पहुंचते हैं, कि मनुष्य व्यवस्था के कामों के बिना विश्वास के द्वारा धर्मी ठहरता है.

रोमियों 4:3-6 – पवित्र शास्त्र क्या कहता है यह कि इब्राहीम ने परमेश्वर पर विश्वास किया, और यह उसके लिये धामिर्कता गिना गया. काम करने वाले की मजदूरी देना दान नहीं, परन्तु हक समझा जाता है. परन्तु जो काम नहीं करता वरन भक्तिहीन के धर्मी ठहराने वाले पर विश्वास करता है, उसका विश्वास उसके लिये धामिर्कता गिना जाता है. जिसे परमेश्वर बिना कर्मों के धर्मी ठहराता है, उसे दाउद भी धन्य कहता है.

रोमियों 5:1 – सो जब हम विश्वास से धर्मी ठहरे, तो अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल रखें.

रोमियों 5:9 – सो जब कि हम, अब उसके लोहू के कारण धर्मी ठहरे, तो उसके द्वारा क्रोध से क्यों न बचेंगे?

रोमियों 9:30-10:4 – सो हम क्या कहें? यह कि अन्यजातियों ने जो धार्मिकता की खोज नहीं करते थे, धार्मिकता प्राप्त की अर्थात उस धर्मीकता को जो विश्वास से है. परन्तु इस्राएली, जो धर्म की व्यवस्था की खोज करते हुए उस व्यवस्था तक नहीं पहुंचे. किस लिये? इसलिये कि वे विश्वास से नहीं, परन्तु मानो कर्मों से उस की खोज करते थे, उन्होंने उस ठोकर के पत्थर पर ठोकर खाई. जैसा लिखा है, देखो मैं सियोन में एक ठेस लगने का पत्थर, और ठोकर खाने की चट्टान रखता हूँ, और जो उस पर विश्वास करेगा, वह लज्जित न होगा. हे भाइयो, मेरे मन की अभिलाषा और उन के लिये परमेश्वर से मेरी प्रार्थना है, कि वे उद्धार पाएँ. क्योंकि मैं उन की गवाही देता हूं, कि उन को परमेश्वर के लिये धुन रहती है, परन्तु बुद्धिमानी के साथ नहीं. क्योकि वे परमेश्वर की धामिर्कता से अनजान होकर, और अपनी धामिर्कता स्थापन करने का यत्न करके, परमेश्वर की धामिर्कता के आधीन न हुए. क्योंकि हर एक विश्वास करने वाले के लिये धामिर्कता के निमित मसीह व्यवस्था का अन्त है.

1 कुरिन्थियों 6:11 – और तुम में से कितने ऐसे ही थे, परन्तु तुम प्रभु यीशु मसीह के नाम से और हमारे परमेश्वर के आत्मा से धोए गए, और पवित्र हुए और धर्मी ठहरे.

गलातियों 2:16 – भी यह जानकर कि मनुष्य व्यवस्था के कामों से नहीं, पर केवल यीशु मसीह पर विश्वास करने के द्वारा धर्मी ठहरता है, हम ने आप भी मसीह यीशु पर विश्वास किया, कि हम व्यवस्था के कामों से नहीं पर मसीह पर विश्वास करने से धर्मी ठहरें, इसलिये कि व्यवस्था के कामों से कोई प्राणी धर्मी न ठहरेगा.

गलातियों 3:8-9 – और पवित्र शास्त्र ने पहिले ही से यह जान कर, कि परमेश्वर अन्यजातियों को विश्वास से धर्मी ठहराएगा, पहिले ही से इब्राहीम को यह सुसमाचार सुना दिया, कि तुझ में सब जातियां आशीष पाएंगी. तो जो विश्वास करने वाले हैं, वे विश्वासी इब्राहीम के साथ आशीष पाते हैं.

गलातियों 3:21, 24 – तो क्या व्यवस्था परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के विरोध में है? कदापि न हो क्योंकि यदि ऐसी व्यवस्था दी जाती जो जीवन दे सकती, तो सचमुच धामिर्कता व्यवस्था से होती. …….. इसलिये व्यवस्था मसीह तक पहुँचाने को हमारा शिक्षक हुई है, कि हम विश्वास से धर्मी ठहरें.

V. धर्मी ठहराये जाने की महत्वपूर्ण व्यहारिकता की बातें:

1. ‘‘धर्मी ठहराया जाना’’ यह माँग करता है कि हम अपनी नही वरन् मसीह की धर्मिता में भरोसा रखें.

प्रेरितों के कार्य 13:39 – और जिन बातों से तुम मूसा की व्यवस्था के द्वारा निर्दोष नहीं ठहर सकते थे, उन्हीं सब से हर एक विश्वास करने वाला उसके द्वारा निर्दोष ठहरता है.

फिलिप्पियों 3:8-10 – वरन मैं अपने प्रभु मसीह यीशु की पहिचान की उत्तमता के कारण सब बातों को हानि समझता हूँ जिस के कारण मैं ने सब वस्तुओं की हानि उठाई, और उन्हें कूड़ा समझता हूँ, जिस से मैं मसीह को प्राप्त करूँ. और उस में पाया जाऊँ, न कि अपनी उस धामिर्कता के साथ, जो व्यवस्था से है, वरन उस धामिर्कता के साथ जो मसीह पर विश्वास करने के कारण है, और परमेश्वर की ओर से विश्वास करने पर मिलती है. और मैं उस को और उसके मृत्युंजय की सामर्थ को, और उसके साथ दुखों में सहभागी हाने के मर्म को जानूँ, और उस की मृत्यु की समानता को प्राप्त करूं.

गलातियों 5:4-5 – तुम जो व्यवस्था के द्वारा धर्मी ठहरना चाहते हो, मसीह से अलग और अनुग्रह से गिर गए हो. क्योंकि आत्मा के कारण, हम विश्वास से, आशा की हुई धामिर्कता की बाट जोहते हैं.

2. धर्मी ठहराया जाना मसीही नैतिकता को सही दिशा देता है।

मसीही सेवा और जीवन का उद्देश्य प्रेम और कृतज्ञता से अभिप्रेत उस उद्धारकर्ता की आशाकारिता हो जाता है जिसकी धार्मिकता के वरदान ने व्यवस्था पालन को अनावश्यक कर दिया न कि मनुष्य की धार्मिकता और सत्कर्मों द्वारा आत्माभिमान.

रोमियों 12:1-2 – इसलिये हे भाइयों, मैं तुम से परमेश्वर की दया स्मरण दिला कर बिनती करता हूं, कि अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओरू यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है. और इस संसार के सदृश न बनोय परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नये हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो.

ख. हम जब अपने छुड़ानेवाले, और हमारे छुटकारे के लिए चुकाए गए दाम के महत्व को समझते हैं (रोमियों 6:10-18), तो धर्मी ठहराये जाने का सिद्धांत नैतिकता को बढ़ावा देता है और स्वच्छंदता को रोकता है.

रोमियों 6:1,2 – सो हम क्या कहें? क्या हम पाप करते रहें, कि अनुग्रह बहुत हो? कदापि नहीं, हम जब पाप के लिये मर गए तो फिर आगे को उस में क्योंकर जीवन बिताएं?

कुलुस्सियों 1:10 – ताकि तुम्हारा चाल-चलन प्रभु के योग्य हो, और वह सब प्रकार से प्रसन्न हो, और तुम में हर प्रकार के भले कामों का फल लगे, और परमेश्वर की पहिचान में बढ़ते जाओ.

1 थिस्स. 2:12 – कि तुम्हारा चाल चलन परमेश्वर के योग्य हो, जो तुम्हें अपने राज्य और महिमा में बुलाता है.

रोमियों 6:17,18 – परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो, कि तुम जो पाप के दास थे तौभी मन से उस उपदेश के मानने वाले हो गए, जिस के सांचे में ढाले गए थे. और पाप से छुड़ाए जाकर धर्म के दास हो गए.

3. धर्मी ठहराए जाने का अर्थ है कि मसीही विश्वासियों को यह विश्वास हो जाए कि  उन्हें अनन्त जीवन प्राप्त है.

क. परमेश्वर से मिला वरदान सिद्ध होता है और इसे कभी वापिस नहीं लिया जा सकता है. परमेश्वर के वरदान और बुलाहट में पछताना नहीं पड़ता है (रोमियों 11:29).

सिद्ध धार्मिकता एक वरदान है (याकू. 1:17; रोमि. 3:24). परमेश्वर हमें सिद्ध धर्मिता तभी दे सकता है जब हम उसके द्वारा धार्मिकता में सिद्ध घोषित किए जाए. भविष्य में कौन सी परिस्थितियाँ हो सकती हैं जिनके कारण हम अपनी धर्मी अवस्था से वंचित हो सकते हैं? यदि धार्मिकता का वरदान पापियों और दुश्मनों के लिए है (यदि उसने अपना श्रेष्ठतम वरदान उससे नफरत करने और उसका दुश्मन होने की स्थिति में दिया),  तो क्या अब हमारे लिए जो असली अनमोल सन्तान है, वह कुछ कम करेगा (रोमि. 5:8, 9 )?

ख. अनन्त जीवन केवल धार्मिकता के आधार पर वर्तमान दशा है: यदि हम विश्वास के पल से ही “अनन्त धर्मी” ठहराए गए अर्थात सदा के लिए धर्मी ठहराये गए हैं. यही कारण है कि बाइबल इस बात की शिक्षा देती है कि अब विश्वासियों के पास अनन्त  जीवन.

यूहन्ना 5:24 – मैं तुम से सच सच कहता हूँ, जो मेरा वचन सुनकर मेरे भेजने वाले की प्रतीति करता है, अनन्त जीवन उसका है,और उस पर दंड की आज्ञा नहीं होती परन्तु वह मृत्यु से पार होकर जीवन में प्रवेश कर चुका है.

यूहन्ना 6:47 – मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि जो कोई विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है.

यूहन्ना 06:54 – जो मेरा मांस खाता और मेरा लोहू पीता है, अनन्त जीवन उसका है, और मैं अंतिम दिन फिर उसे जिलाऊंगा.

1 यूहन्ना 5:10-13-जो परमेश्वर के पुत्र पर विश्वास करता है, वह अपने ही में गवाही रखता है. जिस ने परमेश्वर को प्रतीति नहीं की, उस ने उसे झूठा ठहराया. क्योंकि उस ने उस गवाही पर विश्वास नहीं किया, जो परमेश्वर ने अपने पुत्र के विषय में दी है. और वह गवाही यह है, कि परमेश्वर ने हमें अनन्त जीवन दिया है, और यह जीवन उसके पुत्र में है. जिस के पास पुत्र है, उसके पास जीवन है, और जिस के पास परमेश्वर का पुत्र नहीं, उसके पास जीवन भी नहीं है. मैं ने तुम्हें, जो परमेश्वर के पुत्र के नाम पर विश्वास करते हो, इसलिये लिखा है कि तुम जानो, कि अनन्त जीवन तुम्हारा है.

नोट्स

1. ↑ Sinclair Ferguson, Know Your Christian Life: A Theological Introduction  (डाउनर्स ग्रूव, आईएल; इंटर वर्सिटी, 1981), 71.

2. ↑ Ibid., 73.

3. ↑ James Packer, in Everett F. Harrison, et al., eds., Baker’s Dictionary of Theology   (ग्रैंड रैपिड्स, एमआईः बेकर, 1972), 155.

4. ↑ Bruce Milne, ईसाई विश्वास की एक हैंडबुक: सत्य पता  (Downers Grove, IL: InterVarsity, 1982), 155.

5. ↑ James I. Packer, God’s Words: Studies of Key Bible Themes  (Downers Grove, IL: InterVarsity, 1981), 139-140.

6. ↑ J. I. Packer, उसमें Baker’s Dictionary of Theology, 306.

7. ↑ J. I. Packer, God’s Words, 141-142.

8. ↑ J. I. Packer, उसमें Baker’s Dictionary of Theology, 306.