स्वर्ग – प्यार की दुनिया

द्वारा: John G. Weldon, पीएच.डी., DMIN; ©2012

परिचय

“मुझे इस बात का पूरा विश्वास है, कि दुनिया के हित में उपयोगी बनने के लिए ज़रुरी है कि हम एक दूसरी दुनिया से प्रेम करें.” – Dr. John Piper, अमेरीका के प्रमुख और प्रभावशाली पास्टरों व लेखकों में से एक है[1]

इस लेख का एक शीर्षक 18वीं सदी के प्रसिद्ध विद्वान, धार्मिक पुनरुत्थानवादी, और प्रचारक Jonathan Edwards की एक संक्षिप्त पुस्तक से लिया गया है. अमेरीका के अधिकांश लोग एडवर्ड को अमेरीका का सबसे मौलिक और महान दार्शनिक-धर्मशास्त्री और महानतम बुद्धिजीवी मानते हैं – जो कि सही भी है.[2]  अपने संक्षिप्त जीवनकाल में, परमेश्वर के अनुग्रह से, उन्होंने अकेले ही अमेरीका के भविष्य को सकारात्मक रुप से प्रभावित किया था. स्वर्ग पर लिखी उनकी पुस्तक पढ़ने योग्य है. यह पुस्तक जीवन और अनन्ता में प्रेम की प्रकृति की परस्पर तुलना करती है, और कहने की ज़रुरत नहीं कि अनन्ता में प्रेम की प्रकृति कहीं श्रेष्ठतर है..[3]

हाल ही में, स्वर्ग पर लगभग 20 पुस्तकें पढ़ने के बाद, और Jonathan Edwards के लेख के सम्मान में – जिसके लेखक और उसके प्रभु व उद्धारकर्ता से मिलने का अवसर, यीशु मसीह के हर सच्चे विश्वासी को जल्द ही मिलेगा – मैंने इन पुस्तकों के कुछ प्रमुख विचारों को सारांशित करने का निर्णय किया. (लेख के कुछ हिस्से, लेखक की स्वर्ग विषय पर आनेवाली पुस्तक का सार व उद्धरण प्रस्तुत करते हैं.)

मृत्यु के बाद के जीवन में विश्वास करना सामान्य बात है

पूरे इतिहास, और सभी संस्कृतियों में स्वर्ग (अथवा मृत्यु के उपरान्त जीवन) की अवधारणा सर्वव्यापी रही है, और यह ज्ञान स्वयं परमेश्वर ने मनुष्य के सहज ज्ञान द्वारा उनके मनों में डाला है.[4]  एक प्रमुख विद्वतापूर्ण लौकिक व्याख्यान स्वर्ग की विवेचना करते हुए कहता है, ‘‘प्राचीन दुनिया में, मृत्योपरांत के जीवन में विश्वास व्यापक था, यह एक सामान्य बात समझी जाती थी, और संशयवाद से इसे कोई खतरा नहीं था. “[5]   पुरुषों के भीतर खुद की परमेश्वर रखा होने ज्ञान के तथ्य के समान यही जो: परमेश्वर जो के बारे में जाना जा सकता है “what (रोमी. 1: 19, एनआईवी, महत्व दिया गया).यह दिव्य घोषणा मानववादी, लौकिकवादी, नास्तिक और संशयवादी के लिए भी सच है. वास्वत में, यह बात परमेश्वर स्वयं ने सिखाई है, इसलिए यह हो ही नहीं सकता कि उन्हें परमेश्वर के आस्तित्व का बोध न हो. परमेश्वर की वास्तविकता को दबाने या झुठलाने के प्रयास, या उसमें विश्वास न करने की जि़द, या कुछ लोगों द्वारा बढ़-चढ़ कर ऐसी घोषणा करना कि “परमेश्वर का कोई आस्तित्व नहीं है”, उनके व्यक्तिगत पक्षपात और अज्ञान से ज़्यादा और कुछ नहीं दिखाता (भजन. 14:01, 53:1).

नास्तिक, संशयवादी और अन्य सभी लोग ये अच्छी तरह से जानते हैं कि परमेश्वर का आस्तित्व है, और यह ज्ञान स्वयं उनके भीतर भी है (इसलिए वे परमेश्वर के आगे “निरुत्तर”हैं, रोमी. 1: 20). . इसलिए, अपने अधर्म के द्वारा परमेश्वर के महान बोध को दबाने से पैदा होनेवाले परिणामों को उन्हें फिर भुगतना भी पड़ता है रोमी. 1 :18-32) इसी प्रकार, परमेश्वर उनके दिल उसमें का भी ” अनंत काल “(सभो. 3: 11), जो अनश्वरता, और मृत्यु के बाद के जीवन को लेकर मनुष्य के भीतर मौजूद सहज ज्ञान की व्याख्या करता है, फिर चाहें वह ज्ञान दूषित ही क्यों न हो. (जैसे कि इस्लाम में स्वर्ग की कामुक अवधारणा, या प्राचीन अथवा आधुनिक बहुदेववादी विश्वास, या हिन्दु और बौद्ध धर्म के द्वारा पूर्व के सर्वेश्वरवाद के विविध रुप, जिनके अनुसार व्यक्ति सदा के लिए नाश हो जाता है. इसमें परम सत्य, या कि तथाकथित (अवैयक्तिक) निर्वाण को प्राप्त करने का अवसर देते, बुद्ध धर्म के बहुत से निचले स्वर्ग शामिल हैं. हालांकि, तकनीकी रुप से यह सर्वेश्वरवाद का रुप नहीं है.) संसार के सभी धर्मों में केवल मसीहत ही ऐसा धर्म है जो मनुष्य को उस यीशु मसीह में विश्वास के द्वारा अनन्त जीवन और एक दोषहीन, व्यक्तिगत अनश्वरता का अनुग्रहकारी उपहार देने की बात करता है, जो कलवरी के क्रूस पर मरा और हमारे पापों की क्षमा देने तीसरे दिन जिलाया गया था (3 यूहन्ना: 16, 36, 5: 24; 06:47; १ यहुन्ना 5 : 13).

सबसे बड़ा विलगाव?

परमेश्वर को छोड़,[6]  केवल स्वर्ग ही पूरे ब्रह्माण्ड में सबसे प्रमुख, विस्मयकारी, अद्भुत और मनोहर वास्तविकता है, लेकिन फिर स्वर्ग की वास्तविकता को सबसे अधिक बिगाड़ा भी गया है और उसकी अनदेखी की गई है, फिर चाहे ऐसा लौकिकवाद ने किया हो या मसीहत ने. स्वर्ग पर लिखनेवाले आधुनिक समय के लेखक, Randy Alcorn सही कहते हैं कि स्वर्ग पर अधिक ध्यान न देना, व उसके प्रति सराहना का अभाव ही हमारी पश्चिमी कलीसिया की एकमात्र, सबसे बड़ी कमज़ोरी है (धर्मशास्त्र और अपोलोजेटिक्स में कलीसिया की सामान्य अरुचि की झलक) (म होशे 4: 6).[7]  लेकिन स्वर्ग में हमारी अरुचि के बुरे परिणाम क्यों होंगें? क्योंकि, हम अपना मन जितना अधिक स्वर्गीय बातों में लगाते जाएँगे, उतना ही हम इसे संसार की बातों में कम लगा पाएँगे   . दूसरे शब्दों में, हम जिस हद तक स्वर्ग की अनदेखी करेंगे, हम लगभग उतनी ही हद तक लोभी, संसार के नैतिक या दार्शनिक मित्र बनते हैं – और इसलिए हम परमेश्वर के शत्रु हैं (याकूब 4 देखें: 4; १ यहुन्ना 2:15; मत्ती 06:24.).

शायद यही कारण है कि परमेश्वर ने हमें आज्ञा दी है कि हम अपना मन “स्वर्गीय वस्तुओं की खोज में लगाएँ”   (कुलु. 3: 1). “खोज में लगे रहो” के लिए ज़ेटाइट शब्द का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ होता है खोज में लगे रहना, तलाश करना, इच्छा करना, पूछते रहना, पाने की कोशिश करते रहना. Alcorn इसे “एक सतत्, सक्रिय, एकचित्त” होकर की जानेवाली खोज या तलाश कहते हैं.[8]

“स्वर्ग के प्रति हम सभी का यही रवैया होना चाहिए. क्यों? क्योंकि, जैसा कि हमारे सुप्रसिद्ध पास्टर और विपुल लेखक, स्वर्गीय Dr. A.W. Tozer ने कहा था, ‘‘यह बात पूरे विश्वास के साथ कही जा सकती है कि वे मसीही, जो अपने उद्धारकर्ता और आनेवाले स्वर्ग के प्रति अपने उत्साह को खो चुके हैं, उन्होंने अपने मसीही जीवन में प्रभावी और जगत में गवाह होना छोड़ दिया है.[9]  कोई मसीही नहीं चाहता कि उसके साथ ऐसा हो, लेकिन Dr. Tozer सही हैं: स्वर्ग में हमारी रुचि और अपने मसीही जीवन में प्रभावी होने के बीच एक सीधा संबंध है. यह बात बिल्कुल साफ है कि स्वर्ग के बारे में जानना और उस पर केंद्रित रहना हमारे जीवन की प्रमुख प्राथमिकताओं में से एक है.

इसका कारण बिल्कुल साफ होना चाहिए. स्वर्ग के प्रति अधूरी और गलत धारणा का अर्थ होता है परमेश्वर के प्रति अधूरी और गलत धारणा; एक उबाऊ स्वर्ग का मतलब, एक उबाऊ परमेश्वर. परमेश्वर के लिए इससे अधिक अपमानजनक और झूठी और कोई बात नहीं हो सकती.

वास्तव में, शायद इसी कारण पौलुस ने इफिसुस की कलीसिया से प्रार्थना करते हुआ कहा था कि, ‘‘तुम्हारे मन की आँखें ज्योतिर्मय हों कि तुम जान लो कि उसके बुलाने से कैसी आशा होती है, और पवित्र लोगों में उसकी मीरास की महिमा का धन कैसा है.’’   स्वर्ग के बारे में जानने के लिए एक और लिखित चेतावनी (Eph. 1: 18, एनआईवी, महत्व दिया गया).

यह एक गलत लौकिक धारणा है कि जो लोग स्वर्ग की बातों में मन लगाते हैं वे संसार के किसी काम नहीं आते, जो कि वास्तव में शैतान का फैलाया झूठ है. शैतान, जिसे उसके अक्षम्य घमंड और अहंकार के कारण स्वर्ग से निकाल दिया गया था, वह स्वर्ग से उतनी ही नफरत करता है जितनी कि परमेश्वर व उसकी संतानों से. इसलिए स्वर्ग को लेकर भ्रम तो उसने फैलाना ही था. लेकिन मसीही कलीसिया का इतिहास यह सिद्ध करता है कि संसार की बातों में अधिक मन लगानेवाले, कभी संसार के किसी काम नहीं आए, वे तो जैसे परमेश्वर के रचे लोगों के हितों को अनदेखा करते हैं, वहीं दूसरी ओर, स्वर्ग की बातों में अधिक मन लगानेवाले लोग ही संसार के बहुत काम आए हैं. Irenaeus of Lyons (Heresies के खिलाफ) दूसरी सदी में ; Augustine (City of God; Confessions; Retractions) चौथी सदी में (हालांकि उन्होंने नीओप्लेटोनिज़म अपना लिया था[10]) रिर्फोमेशन (कैथोलिक धर्म में सुधार के प्रयास में चलाये आंदोलन) के दौरान दांते, लूथर और कैल्विन; John Bunyan (Pilgrim’s Progress) और Jonathan Edwards 17वीं सदी में;और आज के डाॅ. John Piper व Sam Storms ऐसे लोगों के कुछ उदाहरण हैं, और यीशु व उसके चेले भी.[11]  कारण बहुत सरल है; बाइबल का स्वर्ग बाइबल के परमेश्वर की माँग करता है, जिसके प्रति हम जवाबदेह हैं और एक दिन, इस शरीर में किए हर “अच्छे और बुरे” कामों का हमें हिसाब देना होगा (Matt. 16:27; 2 कोर 5:.. 10; रोमी. 14:10, Eph 6:08).

परमेश्वर, ब्रह्माण्ड की सबसे महान निधि

“यहोवा महान और अति स्तुति के योग्य है, और उसकी बड़ाई अगम है.” (भजन 145:3).

स्वर्ग की एकमात्र अद्भुत विशेषता है स्वयं परमेश्वर; स्वर्ग और हज़ारों ब्रह्माण्डों की; एक अनन्त देहिक और आत्मिक ब्रह्माण्डों और आयामों की, सबसे बड़ी निधि.

मेरा एक करीबी दोस्त है. वह एक सुप्रसिद्ध संगीतकार है और आजकल एक बड़ी हॉलीवुड फिल्म के लिए काम कर रहा है. बहुत समय पहले की बात है, नशे में धुत एक ड्राईवर के कारण उसकी बेटी दुर्घटना में भयंकर मौत का शिकार हो गई थी. कई दिनों बाद भी, मेरा दोस्त उस सदमे से उबर नहीं पा रहा था, कि तभी एक दिन, अपनी दया में यीशु मसीह (वास्तव में) स्वयं उसके सामने प्रगट हुए. अपने इस अनुभव को उसने मुझे कुछ इस तरह से बताया था: ‘‘अगर तुमने कभी अपने जीवन में पवित्र आत्मा की महानतम उपस्थिति का अनुभव किया हो, जिसमें इतना ज़ोर था कि उसने आपको रुला दिया था, -लेकिन उसके प्रेम की पीड़ा के कारण नहीं -और उस अनुभव को करोड़ गुणा बढ़ा दें…..इस संसार की सबसे श्रेष्ठतम चीज़ें जिन्हें आप कभी अनुभव कर सकते हैं, उन्हें एक तरफ रख लें, इन सभी का कुल जोड़ भी मसीह की उपस्थिति में बताए एक मिनट की बराबरी नहीं कर सकता.’’ यीशु से हुई आमने-सामने की इस मुलाकात (लेकिन यहाँ पर स्वर्ग नहीं बल्कि इस जीवन में हुए अनुभव की बात हो रही है) को बताने के लिए उसके पास यही सबसे अच्छे शब्द थे. वह यह भी कहता है ‘‘अब मेरी समझ में आया कि यह शरीर, जिसमें हम रहते हैं, क्यों उसके लिए परमेश्वर की उपस्थिति की असल भरपूरी को अनुभव करना संभव नहीं है; क्योंकि ऐसा होने पर हमारी मृत्यु हो जाएगी.’’ (cf. 1 टिम 6:16;. जनरल 32:30;. पूर्व 33:19-23;. ईसा 6:5).

स्वर्ग चाहे जितना अद्भुत हो (प्रेम, आनन्द, शांति, रचनात्मकता, साहस और सभी अच्छी चीज़ों की हमारी मौजूदा समझ के बहुत परे), लेकिन स्वर्ग अपने आप में परमेश्वर की तुलना में कुछ भी नहीं है. अपनी अनन्तता के बावजूद स्वर्ग आखिरकार एक रचा गया स्थान है, और रची गई वस्तु व रचनेवाले की प्रकृति के बीच एक असीम अन्तर होता है. यदि स्वयं परमेश्वर का अनन्त प्रेम, आनन्द, महिमा आदि समान रुप से भी पूरे स्वर्ग में रच-बस जाए, तो भी स्वर्ग की परमेश्वर से तुलना करना संभव नहीं होगा. चूँकि स्वर्ग तब भी एक रचा गया स्थान होगा, वह उस अजन्मे, अविनाशी परमेश्वर से तुलना के योग्य नहीं होगा, और तब भी वह परमेश्वर से बहुत नीचे के स्तर पर होगा. दूसरे शब्दों में, यदि परमेश्वर स्वर्ग में न हो तो सबसे सिद्ध रचना होते हुए भी स्वर्ग पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा.

प्रमुख विद्वान, धर्मशास्त्री और पास्टर तथा आधुनिक युग की सर्वश्रेष्ठ पुस्तकों में से एक The Pleasures of God: Meditations on God’s Delight in Being God के लेखक Dr. John Piper पाइपर के शब्दों पर ध्यान दें .[12] नीचे लिखी बात भौतिक ब्रह्माण्ड के केवल 30 बिलियन प्रकाश वर्ष के विस्तार पर हीं नहीं बल्कि आत्मिक ब्रह्माण्ड पर भी लागू हो सकती है; वास्तव में यह जो कुछ भी आस्तित्व में है, गोचर और अगोचर, सभी पर लागू होती हैः

परमेश्वर के परम आस्तित्व का अर्थ है कि ब्रह्माण्ड अपनी पूरी क्षमता के साथ भी परमेश्वर के आगे तुच्छ है. यह अनिश्चित, और आश्रित सच्चाई उस परम, स्वतंत्र सच्चाई की छाया के समान है. बिजली की गर्जन की गूँज के समान है. महासागर में एक बुलबुले के समान है. हम जो कुछ भी देखते हैं, और जो भी हमें इस जगत या आकाशगंगा में प्रभावित करता है, वे सब परमेश्वर के आगे तुच्छ हैं. ‘‘सारी जातियाँ उसके सामने कुछ नहीं हैं, वे उसकी दृष्टि में लेश और शून्य से भी घट ठहरी हैं.” (यशायाह 40:17) …. परमेश्वर के परमतत्व का अर्थ है कि पूरे ब्रह्माण्ड में वही सबसे महत्वपूर्ण और सबसे अनमोल सच्चाई है, कि वही सबसे महत्वपूर्ण व सबसे अनमोल व्यक्ति है. किसी भी सच्चाई से अधिक -जिसमें ब्रह्माण्ड भी शामिल है – परमेश्वर ही हमारी रुचि, हमारे ध्यान और प्रशंसा के योग्य है…. सबसे महत्वपूर्ण सच्चाई होने के बावजूद, परमेश्वर से इसके संबंध के अलावा, ब्रह्माण्ड के बारे में कुछ भी सही से ज्ञात नहीं है. परमेश्वर ही सभी जीवों और सभी चीज़ों का स्रोत, लक्ष्य और निर्धारक है. “[13]

तो भी, असीम रुप से अद्भुत इसी सत्व को हम सदा के लिए उस प्रेम के संबंध में खोजेंगे जिसका संकेत हमें Jonathan Edwards की मर्मस्पर्शी पुस्तक, Heaven, A World of Love,  में मिलता है.

दुर्भाग्यवश, अधिकांश लोग, यहाँ तक कि अधिकांश मसीही भी सदा के लिए परमेश्वर की स्तुति करने के विचार से उत्साहित नहीं होते हैं, क्योंकि वास्वत में उन्हें इस बात की कतई भी समझ नहीं होती कि परमेश्वर कितनी असीम निधि है, लेकिन सच मानें, यही हमारा सबसे महान आनन्द होगा. कोशिश करें और असीम प्रेम, आनन्द, सुख और रचनात्मकता के एक वैयक्तिक-त्रिएक परमेश्वर की उपस्थिति में होने की कल्पना करें. कुछ पलों के लिए ज़रा ऐसा करके देखें. अब यदि कलवरी का क्रूस हमारे लिए परमेश्वर के प्रेम का परिमाण है, तो ज़रा सोंचे कि पूरी अनन्तता कैसी होनी चाहिए?

रचे गए स्वर्ग के राज्य की अकथनीय महिमा स्वयं उस अजन्में परमेश्वर की महिमा के आगे कुछ नहीं ठहरती. साथ ही, स्तुति और आराधना भी अनन्त प्रकार के होंगे. परमेश्वर का आनन्द लेने और वह जो कुछ भी रचता है उसके लिए उसका धन्यवाद देना, परमेश्वर की स्तुति व आराधना, दोनो है, जिसका अर्थ है कि हम जो कुछ भी स्वर्ग में करते हैं, चाहे इसकी सूची कितनी ही लंबी क्यों न हो, हम साथ-साथ परमेश्वर की आराधना करेंगे और उसे महिमा देंगे. जैसा कि Westminster Shorter Catechism को थोड़ा सा बदलते हुए Dr. John Piper कहते हैं, ‘‘मनुष्य का प्रमुख मनोरथ सदा के लिए परमेश्वर का आनन्द लेने के द्वारा उसकी महिमा करना है.’’ और परमेश्वर सदा के लिए असीम रुप से आनन्ददायक होगा.   [14]

    यदि संसार में ऐसी कोई दो चीज़ें हैं जिनके पीछे पूरी दुनिया पड़ी है, तो वह है सच्चा प्रेम और सदा बना रहनेवाला सुख. दुर्भाग्यवश, ये दोनो हीं चीज़ें हमें इस संसार में नहीं मिलती क्योंकि हम आत्मिक और नैतिक रुप से पतित हैं, और हम गलत चुनाव करते हैं, और विशेष रुप से सबसे महत्वपूर्ण आस्तित्व, स्वयं परमेश्वर की उपेक्षा करते हैं. हालांकि हम यहाँ स्वर्ग में बीतनेवाले भावी जीवन के बारे में बातें कर रहे हैं (यह मानते हुए कि हमने यीशु मसीह को अपना प्रभु और उद्धारकर्ता माना है), यह जीवन भी परमेश्वर ने हमारे आनन्द के लिए बनाया है. वैसे संसार की पतित दशा को देखते हुए, पढ़नेवाले व्यक्ति के दिमाग में यह बात न आई हो, तो भी यह है तो सच ही.   . (नोट देखें[15])

यह विडंबना है कि सामान्यतया लोग स्वयं अपने ही सुख में बाधा डालते हैं और उसका नाश करते हैं, और अपना पूरा ध्यान परमेश्वर की बनाई चीज़ों (वरदान) पर लगाते हैं न कि उस परमेश्वर पर जिसने उन्हें रचा है, जो असीम रुप से महान और अधिक आनन्ददायी है. वास्तव में, परमेश्वर असीम रुप से आनंदमय है. परमेश्वर का तिरस्कार ही संभवतः पूरे ब्रह्माण्ड में सबसे बड़ा अपराध है – उसकी अनदेखी करना, उसे समय न देना, उसे धन्यवाद न कहना, उसका निरादर करना, और सबसे बुरी बात तो है न केवल उसकी वरन् उसके बेटे की भी उपेक्षा करना और उनके विरुद्ध बातें करना; वह भी उसके दिए सारे वरदानों, जैसे कि जीवन, परिवार, बच्चे, आनन्द, एक सुंदर प्राकृतिक जगत, संस्कृति, रचनात्मकता, अपूर्व अनुभव, और उत्साह और न जाने कितने वरदानों का आनन्द उठाने के बावजूद   इन वरदानों की सूची तो अनंत है, और केवल इतना ही नहीं, बस केवल उस पर और उसके बेटे पर विश्वास करने के द्वारा वह हमें स्वर्ग में अनन्त आनन्द की पेशकश भी मुफ्त में करता है (3 यूहन्ना: 16). लेकिन हम इसे भी ठुकरा देते हैं. लालच में अंधे होकर हम सारे वरदान तो बटोर लेते हैं, लेकिन उन्हें देनेवाला दाता को मुँह पर लात मार कर अपने कमरे से बाहर निकाल देते हैं. मुझे लगता है, कि केवल अनन्तता ही एक दिन इस बात का खुलासा करेगी कि कृतघ्न, लालची, और स्वार्थी संतानों इसकी क्या कीमत चुकाएंगे. ‘‘इसलिए, यह जगत में किया जानेवाला सबसे बुरी बात है कि लाखों बार परमेश्वर की अनदेखी की जाती है, उसे कोई महत्व नहीं दिया जाता, उस पर सवाल उठाए जाते हैं, उसकी आलोचना की जाती है, उसे बिल्कुल नगण्य समझा जाता है, और लोग उस पर अपनी चटाई से भी कम ध्यान देते हैं.’’[16]

दुर्भाग्यवश, जैसा कि Dr. Piper ध्यान दिलाते हैं, हम सभी परमेश्वर-उपेक्षक और परमेश्वर को नीचा दिखानेवाले लोग हैं; लेकिन चलिए इस बात के लिए धन्यवाद दें कि पूरी अनन्तता के दौरान, स्वर्ग में कभी ऐसा नहीं होगा; बल्कि ठीक इसके विपरीत बात होगी.

बाइबल के परमेश्वर के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं जिसके उससे अधिक महान होने की कल्पना की जा सके, क्योंकि असीम सिद्धता को और अधिक सिद्ध नहीं बनाया जा सकता है. परमेश्वर की असीम सिद्धता अनश्वर है जो आदि से अनन्त तक फैली हुई है.

परमेश्वर की महिमा पर विचार करें. यदि हमें स्वर्ग में परमेश्वर की महिमा का बखान करना हो, तो वह ऐसा होगा मानो माचिस की किसी तिल्ली के जलने और जल कर बुझने की सूक्ष्मता की सूर्य की सतह पर हर सैकण्ड, कई लाखों सालो से हो रहे लाखों-करोड़ों परमाणु बमों के विस्फोटन से तुलना की गई हो-और यहाँ तक कि वर्णन भी असीम रुप से बहुत ही छोटा हो जाता है, क्योंकि परमेश्वर की महिमा सचमुच इस ब्रह्माण्ड तथा लाखों-करोड़ों ब्रह्माण्डों में मौजूद सभी सूर्या और आकाशगंगाओं से अधिक महान, असीम रुप से तेजस्वी, असीम रुप से अधिक शक्तिशाली और सुंदर है. John Piper के शब्दों में, परमेश्वर की महिमा ‘‘उसकी विविध सिद्धताओं की असीम सुंदरता और महानता है.[17]

इसी कारण हमें आत्मिक अंधकार में डूबी दुनिया में परमेश्वर की महिमा को उजागर करना है, जो इसे देखने या मानने से मना करती है (रोमी. 1 :18-32). यह सभी जगह उपस्थित है, लेकिन भौतिकतावादी और भ्रष्ट प्रकृति ने इस पर ग्रहण लगा रखा है. जैसा कि Dr. Piper ध्यान दिलाते हैं, ऐसी लाखों-करोड़ों बाते हैं जिनके बारे में हम नहीं जानते हैं; लेकिन एक बात जो हम जानते हैं, वह यह है कि सभी चीज़ें केवल उसकी महिमा के लिए आस्तित्व में हैं (और सभी चीज़ें, प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से, जाने-अनजाने, उसकी महिमा करती भी हैं). इसके अलावा, पाइपर कहते हैं, कि मनुष्य को परमेश्वर के स्वरुप में रचा गया है और स्वरुप का काम है – मौलिक प्रति के स्वरुप को दिखाना, उसे प्रदर्शित करना. इस तरह, यह संसार परमेश्वर के स्वरुपों से भरा हुआ है – परमेश्वर की लगभग सात सौ करोड़ प्रतिमाएँ, लेकिन बस कहने के लिए, प्रतिमाओं के ‘‘शानदार खंडहर.’’ [18]   इस जीवन में कुछ भी हमारे विषय में नहीं है; सब कुछ परमेश्वर के विषय में है, जैसा कि उसे होना चाहिए और उसमें परमेश्वर असीम रुप से योग्य, सिद्ध और सारी महिमा के योग्य है. यह विडंबना है कि हम हर कीमत पर स्वयं को ऊँचा उठाने और उसकी अनदेखी करने का चुनाव करते हैं.

सुनिश्चित करने के लिए, दुनिया के सभी प्रतिभावान लोग और गौरवान्वित संत और करोड़ों भव्य स्वर्गदूत, लाखों सालों तक पूरी हताशा के साथ इस खोज में बैठे रह सकते हैं कि वे सूईं की नोक के जितनी जानकारी प्राप्त कर सकें, परमेश्वर को बेहतर बनाने का कोई छोटा सा उपाय जान सकें, लेकिन ऐसा कभी होगा नहीं; पूरी अनन्तता में वे ऐसा नहीं कर पाएँगे. परमेश्वर की महिमा, उसकी सिद्धता का प्रतिबिंब ही वह उद्देश्य है जिसके लिए हम आस्तित्व में हैं, और परमेश्वर को महिमा देने में ही हमें अपना सबसे बड़ा सुख, आनन्द और खुशी पाते हैं, क्योंकि जब हमें सबसे अधिक उसमें आनन्द आता है (और वह सबसे अधिक आनंददायक होता है), तब पारिभाषिक रुप से हम सबसे अधिक उसकी महिमा करते हैं.[19]

परमेश्वर अपनी प्रकृति से असीम प्रेम, असीम सौंदर्य, असीम आनन्द, असीम बुद्धि, असीम रचनात्मकता आदि होता है. उसके साथ होना, क्रिसमस के दिन किसी बच्चे की तरह होने के समान है, लेकिन इस बार, हम बिना रुके उपहार खोलते चले जाएँगे और देखेंगे कि एक से बढ़कर एक उपहार हैं. अंतहीन संसारों का सिलसिला.

विस्मयकारी बढ़त

“उसकी प्रभुता सर्वदा बढ़ती रहेगी, और उसकी शांति का अन्त न होगा “(यशायाह 9: 7).

परमेश्वर के अलावा, स्वर्ग की शायद सबसे अद्भुत सच्चाई है कि परमेश्वर के बारे में हमारा ज्ञान, आनन्द का अनुभव और अंतरंग प्रेम लगातार बढ़ता रहेगा! अनन्तता कभी समाप्त नहीं होती, और तब भी उसकी कई या कि अधिकतर सुख असल में सदा बढ़ते रहेंगे   . स्वर्ग की यह बहुत भौचक्का कर देनेवाली बात है; मुझे नहीं लगता कि किसी भाषा में ऐसे शब्द मौजूद हैं जो स्वर्ग की इस सच्चाई को पर्याप्त रुप से चित्रित करने की शुरुआत भी कर सकते हैं. (हो सकता है स्वर्गिक भाषा में वे शब्द हों). याद रहे, हम सीमित जीव हैं और हमेशा ऐसे ही रहेंगे; तो भी परमेश्वर असीम है और सदा ऐसा ही रहेगा.

“परमेश्वर से सब कुछ हो सकता है” और ‘‘कुछ भी असम्भव नहीं होता,’’ लेकिन तभी तक, जब तक कि ये बातें उसकी प्रकृति के समरुप होती हैं (मार्क 10: 27, ल्यूक 1: 37). उदाहरण के लिए, परमेश्वर कभी झूठ नहीं बोल सकता, कभी अन्यायपूर्ण, प्रेमरहित, या सहज रुप से असंभव बातें नहीं कर सकता, जैसे कि चौकोर आकार को गोलाकार में बदलना. परमेश्वर हमारे लिए नए मन और नए शरीर बना चुका होगा, और सदा के लिए सीमित होते हुए भी, हम परमेश्वर के ज्ञान में बढ़ते चले जाएँगे. एक ऐसे परमेश्वर के बारे में सदा अधिक से अधिक जानते चले जाना जो असीम रुप से सिद्ध, प्रेममय, रोमांचक, रचनात्मक, और अद्भुत है, और कुछ नहीं किंतु हमारे अपने आनन्द और शांति को बढ़ाता है। हमारा बढ़ा हुआ आनन्द और शांति, परमेश्वर के लिए हमारे प्रेम और उसे जानने की इच्छा को और अधिक बढ़ाते हैं, जिसमें हमारे अनन्त छुटकारे के प्रति हमारा प्रेम, हमारी सराहना भी शामिल है..[20]

जो कुछ भी हमारी भलाई और परमेश्वर की महिमा के लिए बढ़ने में समर्थ हैं, वे अवश्य ही बढ़ती रहेंगी: ज्ञान (‘‘संत अनन्तता के ज्ञान में बढ़ते रहेंगे……संतों के विचार अनन्तता तक बढ़ते चले जाएँगे”)[21] प्रेम, आनन्द, महिमा, और मसीह की समानता में हमारा ढलते जाना (“इस बात से सारे संकेत हैं कि यह सदा के लिए बढ़ता रहेगा”)[22]  और हमारी योग्यताएँ; ‘‘जैसे-जैसे हमारी बुद्धि ज्ञान में बढ़ेगी, हमारी जिलायी गई देह बेहतर कुशलताओं का विकास कर सकेंगी”[23]

“परमेश्वर की ओर देखने पर हमें कुछ और सीखने को मिलेगा, क्योंकि उसका असीम चरित्र कभी समाप्त नहीं हो सकता. हम अपनी अनन्त सहस्त्राब्दियाँ परमेश्वर के आस्तित्व को खोजते हुए बिताएँगे और कभी भी उसे पूरा नहीं देख पाएँगे. यह परमेश्वर का वैभव और स्वर्ग का विस्मय.”[24]  Sam Storms के शब्दों में, परमेश्वर के साथ हमारा संबंध, सदा के लिए ‘‘गहरा और विकसित, गंभीर और विस्तृत, प्रकट और अधिक, फैलता और फूलता चला जाएगा.’’[25]

Dr. Storms की व्याख्या करने का यह अंदाज़ बहुत पसंद हैः

“स्वर्ग केवल सच्चाई या आनन्द को अनुभव करने के बारे में नहीं है, बल्कि उसकी अनन्त बढ़त के बारे में है. स्वर्ग की धन्यता प्रगतिशील, बढ़ती हुई और लगातार विस्तार करती है…… स्वर्ग में परमेश्वर की भलाई का केवल एक बार किया जानेवाला क्षणिक प्रदर्शन नहीं होगा, बल्कि उसकी दया का एक अनन्त, निरन्तर बढ़नेवाला दान और प्रकटीकरण होगा, जो बीतते पलों के साथ और अधिक गहराती जाती है…..आनेवाले सभी युगों के दौरान, हम परमेश्वर के बचानेवाले अनुग्रह और मसीह में दया के सतत् रुप से बढ़नेवाले, और पहले से अधिक मोहक, अधिक आकर्षक, और इस तरह अपरिहार्य रुप से अधिक आनन्ददायी प्रदर्शन को प्राप्त करनेवाले बनेंगे. हम अपने उद्धारकर्ता को देखेंगे और उसके छुटकारा दिलानेवाले प्रेम के नए-नए प्रदर्शन से अधिकाधिक सम्मोहित होते चले जाएँगे. स्वर्ग में प्रवेश करने पर जो ज्ञान हमें प्राप्त होगा, वह सदा बढ़ता और गहराता और विस्तृत होता जाएगा.

“हम लगातार परमेश्वर द्वारा पहले से अधिक हैरान होते चले जाएँगे, परमेश्वर से और अधिक आसक्त होते चले जाएँगे, और इसलिए उसकी उपस्थिति और उसके साथ अपने संबंध को और अधिक ठोस करते चले जाएँगे. परमेश्वर का अनुभव कभी समाप्त या बासी नहीं होगा. यह गहराए और विकसित होगा, सघन व विस्तृत होगा – और अपने चरम पर पहुँच जाएगा, और परमेश्वर कौन है की भव्यता से जुड़ी सम्मोहक और नई अंतर्दृष्टि की अनन्तता की शुरुआत होगी…..यदि स्वर्ग में, परमेश्वर को लेकर हमारे विचार और सोंच में बढ़त होती है, तो उन विचारों और सोंचों से उत्पन्न होनेवाले आनन्द और प्रसन्नता में भी अवश्य ही वृद्धि होनी चाहिए. बढ़े हुए ज्ञान के साथ गहराया स्नेह और आकर्षण भी आता है. हर नई अंतर्दृष्टि के साथ अधिक आनन्द भी आता है, जो मेम्ने के सिंहासन के आसपास की स्तुति की आग और उत्सव को बढ़ाता है.’’

(और इस तरह,) ‘‘हम जब भी अपनी आँखें स्वर्ग की ओर करते हैं, हम केवल महिमा और भव्यता, सौंदर्य और तेज और शुद्धता और सिद्धता और निरी व अनन्त ऐश्वर्य को निहारेंगे. क्यों? क्योंकि हम परमेश्वर की ओर देख रहे होंगे (प्रकाशितवाक्य 22:04) …. स्वर्ग के दैहिक, भावनात्मक, और बौद्धिक सुख धरती के भौतिक सुखों को पीछे छोड़, असीम रुप से आगे बढ़ते चले जाएँगे.’’[26]

प्यार की दुनिया

Heaven, A World of Love,  में ध्यान दिलाते हैं, हम जब भी अपनी आँखें घुमाते हैं, हम परमेश्वर, स्वर्गदूतों और संतो ंके बीच के सबसे सिद्ध प्रेम को भी देखते हैं. इसलिए, स्वर्ग में रहनेवाले आश्चर्य से विभोर कर चाहे कहीं भी क्यों न देखें, पूरी अनन्तता में चाहे वे कुछ भी क्यों न देखें, वे केवल विपुल और उमड़ कर बहते प्रेम और महिमा और सौंदर्य और गरिमा और आनन्द ही देखेंगे. ‘‘स्वर्ग में हर कोई सिद्ध रीति से शुद्ध और पूरी तरह प्यारा होगा.’’ प्रेम सदा सिद्ध रीति से दिया जाएगा, और सिद्ध रीति से लिया जाएगा.

इससे भी अधिक आश्चर्य की बात यह है कि स्वर्ग के हर निवासी को स्वयं त्रिएक की ओर से प्रेम का एक अनन्त प्रवाह मिलेगा. परमेश्वर के अथाह प्रेम में त्रिएक के सदस्यों के बीच एक असीम प्रेम की ‘‘एक अनन्त, आपसी, पवित्र ऊर्जा” शामिल होती है, जो हमेशा भीतर और बाहर प्रवाहित होती रहती है, लेकिन तब यह ऊर्जा केवल त्रिएक के सदस्यों तक सीमित नहीं रहेगी. . सभी छुटकारा पाए लोगों के स्वर्ग में पहुँचने पर, आखिरकार यह प्रेम अपनी संपूर्णता में प्रदर्शित हो सकता है. ‘‘यह स्वर्ग के रहनेवाले सभी जीवों, सभी संतों व सभी स्वर्गदूतों की ओर कई धाराओं में (त्रिएक की ओर से) प्रवाहित होगा.’’ असीम प्रेम को लगातार उन लोगों की ओर व उनमें भेजा जाएगा जो स्वर्ग में रहते हैं, हमारे छुटकारे के लिए परमेश्वर के दिए सबसे बड़े बलिदान को जानते हुए, उनका सिद्ध प्रेम एक भावविभोर करनेवाली प्रसन्नता के साथ वापिस परमेश्वर की ओर ऐसी सहजता से भेजा जाएगा जैसे कि साँस लेना. ऐसे अगाथ प्रेम को देने और पाने की क्षमता में सर्वोच्च रुप से, आनंद के साथ, और अनन्तकाल तक हर्ष मनाना – और साथ में स्वर्गदूतों का भी प्रेम व हर्ष करना.

हर व्यक्ति दूसरे से पूरी सिद्ध रीति से अनन्तकाल तक प्रेम रखेगा. स्वर्ग का हर बाशिंदा न केवल हर समय और अनन्तकाल तक आनंदमय और खुश है – वे लगातार इनमें बढ़ रहे हैं और केवल इतना ही नहीं सब एक दूसरे की खुशी और सुख में प्रसन्न होते हैं। प्रेम की इच्छा कभी अधूरी नहीं रहेगी, और छुटकारा पाया हुआ हर संत को इस बात का पूरा विश्वास होगा कि उनके लिए परमेश्वर का प्रेम रहेगा और लगातार बढ़ता भी रहेगा.

“लेकिन हमारे लिए परमेश्वर और मसीह का प्रेम इन सभी महान संतों के प्रेम से कहीं अधिक होगा, और हम सदा उस प्रेम के बारे में अंतहीन संसारों के बारे में लगातार सीखते रहेंगे और हमारे सम्मुख इसे एक के बाद एक आश्चर्यों में साफ व प्रत्यक्ष रुप से प्रदर्शित होता देखेंगे. स्वर्ग में अनुभव किए जाने सभी प्रेम फिर वह चाहे परमेश्वर की ओर से हो संतों या स्वर्गदूतों की ओर से लेकिन यह कभी भी अवरुद्ध या कम नहीं होगा और न ही ये किसी कारण से अटकाया या रोका जाएगा या किसी रीति से दूषित होगा यह तो केवल संपूर्ण और सिद्ध रीति से व्यक्त होगा जी हाँ अथाह और सदा के लिए बढ़ी हुई रीति से. “[27]

बाइबल के विद्वान Arthur W. Pink ने एक बार “The Hell of Hell” नाम का लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने अपने शीर्षक के अर्थ को समझाया था – कि अभिशप्त लोगों पर, उनके पापों के लिए दी गई कई लाख वर्षा की बिल्कुल न्यायसंगत सज़ा के बाद भी, नरक की शुरुआत तक नहीं हुई होगी. स्वर्ग के लिए ठीक इसकी उलट बात सही बैठती है लेकिन कहीं बेहतर भाव में; नरक सीमित है; परमेश्वर और स्वर्ग असीम हैं. स्वर्ग में, कई करोड़ों सालों तक हमारी कल्पना से परे का सुख, आशीषें और विस्मय भोगने के बाद भी न केवल उनमें बढ़त होगी, बल्कि ऐसे अरबों-खरबों सालों के बाद भी स्वर्ग की शुरुआत तक नहीं होगी-और ऐसा सदा के लिए रहेगा.

असीम रचनात्मकता, ज्ञान, प्रेम और आनन्द का परमेश्वर, वह परमेश्वर जो अपनी संतानों को सभी भली वस्तुएँ देना चाहता है, ज़रा कल्पना करें कि अनंत युगों और अनन्तता की सहस्त्राब्दियों के दौरान उस परमेश्वर के पास क्या होगा? कई अरबो-खरबों सालों को कई अरबों-खरबों से गुणा करने के बाद भी, अनन्तता की तो शुरुआत तक नहीं हुई होगी-और ऐसा सदा के लिए रहेगा.

तो भी, कोई ऐसा सोच सकता है कि अरबो-खरबों सालो के बढ़े हुए ज्ञान, आनन्द और प्रेम के बाद हम परमानंद की अधिकता के कारण फट जाएँगे; लेकिन ऐसा नहीं है, पूरी अनन्तता के दौरान धन्यता सदा बढ़ती रहेगी. हर भली वस्तु जो सदा के लिए बढ़ सकती है, उसे सदा के लिए बढ़ना होगा, क्योंकि इससे परमेश्वर को महिमा मिलती है, और यही सबसे भली बात है. इस प्रकार की सच्चाई की कल्पना करने में पेश होनेवाली समस्याओं के बावजूद (अनश्वरता, परमेश्वर का सदा से होना, असीमितता, या अनन्तता जैसी समझ के बाहर की चीज़ों का दिमाग में आना), इस सच्चाई को Jonathan Edwards, Dr. John Piper, Dr. Sam Storms और उनके जैसे दूसरे लोगों ने स्वीकारा है, और उस पर चर्चा भी की है.

“और मसीह यीशु में उसके साथ उठाया, और स्वर्गीय स्थानों में उसके साथ बैठाया। कि वह अपनी उस कृपा से जो मसीह यीशु में हम पर है, आने वाले समयों  में अपने अनुग्रह का असीम  धन दिखाए “(Eph. 2 :6-7 एनआईवी).

“क्योंकि मैं समझता हूं, कि इस समय के दुरूख और क्लेश उस महिमा के सामने, जो हम पर प्रगट होने वाली है, कुछ भी नहीं हैं “(रोमी. 8: 18 एनआईवी).

“क्योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा  उत्पन्न करता जाता है “(2 कोर 4:. 17 एनआईवी).

“परन्तु जैसा लिखा है, कि जो आंख ने नहीं देखी, और कान ने नहीं सुना, और जो बातें मनुष्य के चित्त में नहीं चढ़ीं  वे ही हैं, जो परमेश्वर ने अपने प्रेम रखने वालों के लिये तैयार की हैं “(1 कोर 2:. 9 एनआईवी)[28]

” … वास्तव में, पूरे जगत में कुछ भी हमें परमेश्वर के प्रेम से कभी अलग कर सकेगा जो हमारे प्रभु, यीशु मसीह में प्रकाशित हुआ है   “(रोमी. 8: 39 NLT).

संजात और वास्तविक चीज़ें

चूँकि यह बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्धांत है, यह खंड पिछले विषय को आगे ले जा रहा है, लेकिन थोड़ा अलग अंदाज़ में.

“परमेश्वर को देखना, बाकी सभी वस्तुओं को पहली बार देखने के समान होगा. परमेश्वर को देखना और जानना ही स्वर्ग में हमारा मूल आनन्द होगा. शेष सभी आनन्द, परमेश्वर और हमारे संबंध के झरने से बहते हुए संजात होंगे. “[29]  यह एक बुनियादी और अत्यंत महत्वपूर्ण विचार है, कि सब  चीज़ों की उत्पत्ति उस परमप्रधान परमेश्वर के साथ, और उससे उत्पन्न हुई है, और ‘‘अमरता केवल उसकी है’’ (1 टिम. 6:16). सब कुछ  उसी से उत्पन्न है. इस जीवन में भोगी गई हर भली वस्तु की रचना परमेश्वर ने की थी, और उसे उसने हमारे आनन्द और खुशी के लिए रचा था विशेष रुप से क्योंकि इससे परमेश्वर  प्रसन्न होता है और उसे  लिए हर्ष और आनन्द लाता है. परमेश्वर का प्रेम ही बाकी सभी कमतर प्रेमों का स्रोत है; उसकी सुंदरता बाकी सभी कमतर सुंदरता का स्रोत है, इत्यादि.

हर वह चीज जो भली, सुखकर, उत्तेजक, मज़ेदार, और रोमांचक है; सभी हँसी-मज़ाक और मज़े-सेक्स, प्रेम, आनन्द, हँसी-खेल, खुशी, रचनात्मकता, अपूर्व अनुभव; हर वह चीज़ जो अद्भुत, मनोहर, सुखद, स्फूर्तिदायक, मज़ेदार इत्यादि हैं-सब की सब आखिरकार परमेश्वर से उत्पन्न हुई हैं. इन चीज़ों को आखिरकार किसने बनाया था? स्वयं परमेश्वर ने. उसने हमारे लिए सबसे पहले इनकी रचना की थी. वह सारी भली वस्तुओं का स्रोत है. लेकिन यहाँ ध्यान देने योग्य एक बात हैः कि बाकी सभी चीज़ों के संजात होने (किसी से उत्पन्न किए जाने) का अर्थ यह भी है कि केवल परमेश्वर ही असीम रुप से अद्वितीय और मूल रुप से असंजात है (अर्थात् केवल वही ऐसा है जो किसी से उत्पन्न नहीं हुआ है). उसमें जीवन की सभी भली और श्रेष्ठतम चीज़ों का स्रोत है.

“सभी प्रकार के गौण आनन्द, प्रकृति से संजात होते हैं. उन्हें परमेश्वर से अलग नहीं किया जा सकता है. फूलों के सुंदर होने के पीछे केवल एक कारण है – कि परमेश्वर सुंदर है. इंद्रधनुषों इसलिए इतने मनमोहक होते हैं, क्योंकि परमेश्वर मनमोहक है. शावक इसलिए प्यारे होते हैं – क्योंकि परमेश्वर बहुत प्यारा है. खेलकूद इसलिए दिलचस्प होते हैं, क्योंकि परमेश्वर दिलचस्प है. अध्ययन करने से इसलिए हमारा हित होता है, क्योंकि परमेश्वर हितकारी है. काम करने से इसलिए संतुष्टि मिलती है, क्योंकि परमेश्वर हमें तुष्ट करता है. “[30]

परमेश्वर के अलावा स्वर्ग में बाकी सभी चीज़ें गौण आनन्द हैं, परम आनन्द तो स्वयं परमेश्वर है. परमेश्वर ” जो  “प्यार (१ यहुन्ना 4: 8, 16) उसी प्रकार यह भी कहा जा सकता है कि वह ‘‘आनन्द है’’ और उसकी उपस्थिति में होना प्रेम, आनन्द, सुख, आश्चर्य, अपूर्व अनुभव, रोमांच इत्यादि का परम अनुभव होगा. क्या सैकड़ों अतिशयोक्तियाँ मिल कर भी स्वर्ग के एक दिन की पर्याप्त रीति से व्याख्या कर पाएँगे? मुझे संदेह है; लेकिन यदि वे ऐसा कर भी पाए, तो भी, वे परमेश्वर की उपस्थिति में बिताए एक दिन की व्याख्या कभी नहीं कर सकेंगे. ‘‘जिसने अपने निज पुत्र को भी न रख छोड़ा, परन्तु उसे हम सबके लिए दे दियाः वह उसके साथ हमें और बातें? (रोमी. 8: 32, एनआईवी, जोर जोड़ा.)

चूँकि हर भली वस्तु संजात है, हम केवल परमेश्वर की उपस्थिति में ही उनको, उनकी संपूर्णता में अनुभव कर सकते हैं. दूसरे शब्दों में, परमेश्वर की प्रत्यक्ष उपस्थिति में होना, प्रेम और आनन्द को उनके संपूर्ण परिमाप में अनुभव करना, सबसे महान सौंदर्य को देखना, सबसे बड़े आश्चर्य को समाहित करना, और परम शांति का अनुभव करना है. इसका अर्थ है कि हम जो कुछ भी इस जीवन में अनुभव करते हैं, संसार के पतित स्वभाव को देखते हुए कह सकते हैं, कि वे सब आनेवाले आनन्द, सुंदरता, और प्रेम के पूर्वानुभव हैं, ताकि हम जो कुछ भी स्वर्ग में दैहिक, भावनात्मक, या आत्मिक और अंर्त-आयामी रुप से अनुभव करेंगे, वह इस जीवन में हुए अनुभवों का वास्तविक पदार्थ होगा जो और कुछ नहीं वरन् छाया या कागज़ की थैलियों में छपे रेखाचित्र हैं. हम ऐसी-ऐसी चीज़ों का अनुभव करेंगे, उनके बारे में सीखेंगे और आनन्द उठाएँगे जिनके बारे में हमने कभी सोचा ही नहीं था, और ऐसी बहुत सी चीज़ें ऐसी होंगी जिन्हें परमेश्वर द्वारा बनाना अभी शेष है. परमेश्वर हमें पूरी तरह से, और अनन्तता में जानता है, और वह जानता है कि हम में से हरेक व्यक्ति को किस चीज़ से खुशी मिलती है, और वही चीज़ वह हमें सदा के लिए देगा.

इसे दूसरे शब्दों में कुछ यूँ कह सकते हैं, यहाँ कि हर भली वस्तु को लेकर उसे नए स्वर्ग और नई धरती पर ले जाएँ, और उसे 100 की (या मनचाही) संख्या से गुणा करके, उसे अनन्त बना दें. लेकिन तब भी यह संजात ही है. अकथनीय रुप से, सदा के लिए गौरवमय और भव्य होने पर भी, परमेश्वर के आनन्द के आगे वह हमेशा फीका और निकृष्ट रहेगा. आपको कौन सी बात अधिक पसंद आएगी, राजा दाऊद की 17 फुट ऊँची भव्य मूर्ति को देखना- या-माइकलऐंजेलो को अपना सबसे करीबी दोस्त व मेंटर बनाना? इतिहास के 100 महानत् लोगों को लेकर उन्हें अपने सबसे करीबी दोस्तों के समूह का हिस्सा बना दीजिए – परमेश्वर की उपस्थिति में बिताया केवल एक सैंकड उन्हें धूल और राख की तरह उड़ा देगा. यही अन्तर होता है सिद्धता से भरे एक असीम व्यक्ति और बाकी सभी सीमित चीज़ों में. जो भी सदा के लिए स्वर्ग में जाने की बात पर मुग्ध, आकर्षित और उत्साहित नहीं है, वो उस परमेश्वर के बारे में लेशमात्र भी नहीं जानता, जिसने उस स्वर्ग को बनाया और वहाँ पर रहता है.

परमेश्वर की इच्छा है कि उसकी संतानें स्वर्ग की हर वस्तु को उसका दिया उपहार मानें और उनका आनन्द उठाए, लेकिन परमेश्वर ही स्वर्ग की हर वस्तु का अनन्त स्रोत है. जिस प्रकार बच्चों की खुशी में माता-पिता को खुशी मिलती है, वैसे ही परमेश्वर को भी हमारे आनन्द में आनन्द आएगा. यह बात बहुत विलक्षण है कि वास्तव में परमेश्वर स्वयं हमारे लिए गीत भी गाएगा!

“तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे बीच में है, …………. वह तेरे कारण आनन्द से मगन होगा, वह ………. ऊंचे स्वर से गाता हुआ तेरे कारण मगन होगा” (Zeph. 3: 17 एनआईवी).

“‘‘……….. यहोवा तुझ से प्रसन्न है……………… जैसे दुल्हा अपनी दुल्हिन के कारण हषिर्त होता है, वैसे ही तेरा परमेश्वर तेरे कारण हषिर्त होगा “(Isa. 62:4-5 एनआईवी).

“‘‘……….. यहोवा तुझ से प्रसन्न है……………… जैसे दुल्हा अपनी दुल्हिन के कारण हषिर्त होता है, वैसे ही तेरा परमेश्वर तेरे कारण हषिर्त होगा “(Isa. 62:4-5 एनआईवी).

परमेश्वर की दानी प्रकृति का उदाहरण देते इस पदों पर विचार करें:

‘‘…… परमेश्वर पर जो हमारे सुख के लिये सब कुछ बहुतायत से देता है’’ (1 टिम. 06:17 एनआईवी).

‘‘तू अपनी मुट्ठी खोल कर, सब प्राणियों को आहार से तृप्त करता है’’ (भजन. 145:16 एनआईवी).

‘‘क्योंकि हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान ऊपर ही से है, और ज्योतियों के पिता की ओर से मिलता है, जिस में न तो कोई परिवर्तन हो सकता है, ओर न अदल बदल के कारण उस पर छाया पड़ती है’’ (याकूब 1: 17 आईएसवी).

“यहोवा सभों के लिये भला है, और उसकी दया उसकी सारी सृष्टि पर है” (भजन. 145:9 एनआईवी).

“क्योंकि परमेश्वर की सृजी हुई हर एक वस्तु अच्छी है, और कोई वस्तु अस्वीकार करने के योग्य नहीं, पर यह कि धन्यवाद के साथ खाई जाए। क्योंकि परमेश्वर के वचन और प्रार्थना से शुद्ध हो जाती है “(1 टिम. 4 :4-5 एनआईवी).

“वही तो तेरी लालसा को उत्तम पदार्थों से तृप्त करता है “(भजन. 103:5 NLT).

“वे तेरे भवन के चिकने भोजन से तृप्त होंगे, और तू अपनी सुख की नदी में से उन्हें पिलाएगा. क्योंकि जीवन का सोता तेरे ही पास हैय तेरे प्रकाश के द्वारा हम प्रकाश पाएंगे “(भजन. 36:8-9 एनआईवी).

“मेरा जीव मानो चर्बी और चिकने भोजन से तृप्त होगा, और मैं जयजयकार करके तेरी स्तुति करूंगा “(भजन. 63:5 एनआईवी).

जरा एक बार फिर से सोंचे कि एक माता या पिता होने के नाते, अपने बच्चों, दोस्तों, या कि अपने जीवनसाथी को भली वस्तु देने पर हमें कितनी खुशी मिलती है? देने से आनन्द मिलता है; ऐसा परमेश्वर द्वारा बनाए देने की प्रकृति के कारण होता है. इसीलिए ‘‘प्रभु यीशु …….. ने आप ही कहा है, कि लेने से देना धन्य है” (प्रेरितों 20:35 एनआईवी). परमेश्वर के स्वरुप में सृजे जाने के कारण हमें देने से मिलनेवाले आनन्द का अंदाज़ा होता है. लेकिन परमेश्वर का देना तो असीम आयामों और सदा के लिए होता है.

परमेश्वर के रचना करने के पीछे एक कारण था, ताकि वह अपनी असीम रुप से सिद्ध और महिमापूर्ण प्रकृति को उसकी संपूर्णता में व्यक्त कर सके, जिसमें उसके उपहार देने में व्यक्त प्रेम भी है, और उसका सबसे महानतम् उपहार था स्वयं उसका बेटा. परमेश्वर के बारे में हम जो जानते हैं, उसके मद्देनज़र, उसे अवश्य ही सबसे अधिक प्रसन्नता प्रेम करने और देने में आता है, जो यह बताता है कि क्यों वह यह काम हमेशा के लिए करना चाहता है. दूसरे शब्दों में, छुटकारा पाए हुए परमेश्वर के उदार, और खुल कर दिए जानेवाले उपहारों को पाने के पात्र होंगे. यह तथ्य कि परमेश्वर अनन्त है, का अर्थ है कि वे जो स्वर्ग में हैं वे हमेशा परमेश्वर के प्रेम और आनन्द का पात्र होंगे, और उन्हें भले और अद्भुत उपहार दिए जाएंगे; उसका देना कभी समाप्त नहीं होगा क्योंकि अनन्तता कभी समाप्त नहीं होगी, और न ही हमारा आश्चर्य और आभार.

क्योंकि परमेश्वर की रचनात्मकता अनन्त है, वह जो देता है, वह भी असीम रुप से रचनात्मक होगा; यही कारण है कि हमें स्वर्ग में ऊबने का डर नहीं होना चाहिए, क्योंकि परमेश्वर के तरह-तरह के उपहार हमेशा नए और रोमांचक होंगे. स्वयं परमेश्वर की असीम सिद्धता को सदा के लिए सीखते रहना भी एक रोमांचक और नई बात होगी.

परमेश्वर की उदारता असीम है, और लाखों-करोडों सालों तक उसके आश्चर्यों को प्राप्त करते रहने के बाद भी, हमने अपने उपहारों को खोलने की बस शुरुआत भर की होगी. हर दिन, सदा के लिए, हर सुबह क्रिसमस की सुबह होगी.

नई यरूशलेम

यह परमेश्वर का उसकी संतानों को दिए उपहारों में से एक होगा, लेकिन यह एक प्रकार से ब्रह्माण्ड का शाही मुकुट है, ‘‘नया स्वर्ग और नई धरती “(Isa. 65:17, 66:22, 2 पतरस 3: 13; इब्रा 12:26-27 रेव 21:01).

अनन्तता के शुरुआत में, प्रकाशितवाक्य 21 में वर्णित नया यरुशलेम – स्वच्छ काँच के समान – खरे साने का एक विशाल नगर धरती पर उतरता है, परमेश्वर की महिमा से जगमागाता. यह अतुलनीय रुप से अद्भुत और सुंदर है. शहर में घन है, जो शायद त्रिएक परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करता है, और उसकी ऊँचाई, चौड़ाई और गहराई, सभी का माप 1400 मील था, जो कि हमारे चंद्रमा के आकार से बह थोड़ा सा कम है. यदि यह उस समय यरुशलेम की राजधानी के स्थान पर आए, और हम उसी अनुपात में नई धरती के माप का अनुमान लगाएँ, तो नई धरती में हम शायद कई लाख गुणा विशाल होने की आशा कर सकते हैं, लगभग हमारे सूर्य के आकार के बराबर.

भले ही, नए यरुशलेम का सतही क्षेत्र 2.25 वर्ग मील है. तुलना के लिए, पूरा लास एंजेलेस का क्षेत्रफल केवल 4000 वर्ग मील है. पूरा टैक्सास का 268,000 वर्ग मील और अलास्का का 663,000 वर्गमील है. नया यरुशलेम भारत से बड़ा है, और इंग्लैंड के आकार से 40 गुणा बड़ा है. यदि इसे संयुक्त राष्ट्र अमेरीका के बीचो बीच रख दिया जाए, तो यह कनाडा से लेकर मैक्सिको और केलिफोर्निया से लेकर उत्तरी टेनेस्सी तक फैला होगा. लेकिन याद रखें, कि यह तो यरुशलेम की केवल भूमि की सतह भर है – 2.2 लाख वर्ग मील. नया यरुशलेम 1400 मील तक आकाश में भी फैला है-अर्थात् लगभग 3.4 बिलियन घन मील. के साथ 7.4 मिलियन फुट की ऊँचाई. यदि हम हर मंजि़ल के लिए एक मील छोड़ें तो इसमें 1400 मंजि़ल होंगे और इस तरह, कम से कम 12 ट्रिलियन  लोग बहुत आराम से इस शहर में रह सकेंगे. यदि हर मंजि़ल 70 फुट ऊँची हो, तो इसमें 100,000 मंजि़ल होंगीं. हो सकता है कि उस शहर में स्वर्गदूत भी हमारे साथ रहें, या फिर शायद वे अपनी अलग जगह में रहें, मुझे नहीं पता; स्वर्गदूतों पर चर्चा करने के लिए हमारे पास समय नहीं है, लेकिन उन जगमगाते जीवों में हरेक हमारा करीबी मित्र होगा.

नया यरुशलेम, स्वयं परमेश्वर की असीम गरिमा और प्रकाश द्वारा अद्भुत रुप से जगमगाता हुआ शहर होगा (ऐसा मेरा विश्वास है). रंग में प्रतिबिंबित और विभाजित प्रकाश होगा.

चूँकि प्रकाश के रंगों की बनावट बदल सकती है, स्वर्ग में, असीम दिव्य प्रकाश से जगमाते, जिन नए रंगों को हम देखते और अनुभव करते हैं, वे संख्या में उन सभी रंगों से असीम अधिक होंगे जिन्हें हम आज देखते हैं. प्रत्यक्ष स्पेक्ट्रम में आज हम जितने रंगों और उनके शेड को देखते हैं, वे उस अदृश्य स्पेक्ट्रम के रंगों के आगे कुछ नहीं हैं. हालांकि हम केवल सबसे सूक्ष्मतम पहलू के बारे में ही जानते हैं, लेकिन अकसर ‘‘वास्तविक रंग’’ का अभिप्राय 256 तरह के लाल, हरे, और नीले (जो कि प्राथमिक रंग हैं) रंग के शेड से होता है जिसमें रंगों के 17 मिलियन अलग-अलग शेड होते हैं. किंतु इसी जीवन में रंगों के लाखों शेड होने की संभावना है; स्वर्ग में तो फिर यह संख्या असंख्य होगी. चूँकि ‘‘परमेश्वर ज्योति है’’ (१ यहुन्ना (15), जिसका मैं (वेल्डन) यह मतलब समझता हूँ कि (cf. भजन 104:2;. (1 टिम 6:16;. (१ यहुन्ना (17), अवश्य ही परमेश्वर के प्रकाश के स्पेट्रम में असंख्य रंग हैं और हम उनमें से हरेक का आनन्द उठाएँगे. परमेश्वर ‘‘ज्योति है’’ और ‘‘अगम्य ज्योति में रहता है’’ (१ यहुन्ना (15;. (1 टिम 6:16;.. CF दान 2 : 27), इसलिए नया यरुशलेम और पूरा ब्रह्माण्ड अनन्त रंगों का स्थान होगा, लेकिन नया यरुशलेम कुछ विशेष होगा और कहीं अधिक जगमगाहट से भरा होगा, जिसमें सदा नए रंग उभरेंगे.

हम इस भव्य, अतुलनीय शहर में सबसे अधिक सम्पन्नता, सुंदर नदियों और झरनों, पेड़ों, पर्वतों, झीलों, घाटियों, पौधों, और जानवरों, भवनों की सुंदर बनावट और एक ऐसी संस्कृति के होने की आशा रख सकते हैं जो धरती या पूरे ब्रह्माण्ड के इतिहास में पहले कभी नहीं हुई थी. हर स्तर पूरी तरह से अलग तरह का होगा. उसकी हर बात चौकानेवाली होगी, और सबसे अधिक आनन्द की बात होगी स्वयं परमेश्वर और उसका पुत्र हमारे साथ रहेंगे.

ज़रा सोचिए, यदि आप सचमुच इस विशाल शहर, नये यरुशलेम में रहेंगे तो आपको सिर्फ स्वयं के रहने के लिए पूरे अमेरीका भर जितनी जगह मिलेगी. लेकिन हम इसके घनाकार को देखें, और हर स्तर में केवल चार मील ही हो (ताकि अमेरीका की सबसे ऊँचीं पर्वत श्रंखला, जिसमें माउंट व्हीटनी भी शामिल है शेष रह सके), अमेरीका से भी बड़ी 350 अतिरिक्त मंजि़लें तब भी रहने के लिए शेष रहेंगी. हर सैकंड, यह शहर इतनी अद्भुत महिमा, प्रेम, आनन्द और सौंदर्य को उँडेलेगा कि उसकी कल्पना तक करना असंभव है.

हमारे मन और शरीर इस रीति से बनाए गए होंगे कि ये नये यरुशलेम का पूरी तरह से अनुभव कर सके, जिसमें प्रेम, आनन्द, महिमा, खुशी, हँसी, साहस, रोमांच और जो कुछ भी परमेश्वर ने हमारे भीतर रखा है, उसके स्वरुप में होने से जुड़ी हर बात की स्वाभाविक इच्छा को पूरी कर सके, लेकिन अब उन सारी बातों को हमेशा के लिए सिद्ध किया जा चुका होगा.

रंगों का दर्शन तो हमारी संवेदनाओं का केवल एक अंश मात्र होगा; स्वर्ग में हमारी संवेदनशीलता बहुत अधिक बढ़ जाएगी और शायद हमारे पास और भी बहुत सी नई संवेदनाएँ होंगी, और शायद ये संवेदनशीलता आपस में मिल कर नई संवदेनशीलता को जन्म दे, और हम बढि़या संगीत को चख या देख सकें, रंगों को ध्वनि में देख सकें; संगीत का सूँध या चख सकें, या कि रंगों को लिख सकें या फूलों को सुन सकें – शायद किसी निर्जीव वस्तु के किसी विशेष प्रकार के ‘‘व्यक्तित्व’’ को भी महसूस कर सकें या अपनी सभी पाँचों इन्द्रियों (या जितनी भी वे हैं) को एक ही वस्तु पर केंद्रित कर सकें. (कुछ लोगों को आज भी इस प्रकार के अनुभव होते हैं जिसे सिनेस्थिसिया या कि संवेदनाओं की गड़बड़ी कहते हैं). इस तरह,

‘‘….ऐसा कहना यथोचित लगता है कि हमारा जिलाया गया संवेदी तंत्र ऐसे स्तर पर कार्य करे जिसके बारे में हम कुछ नहीं जानते. नई धरती पर, हम लगातार ऐसी चीज़ें खोजते रहेंगे जिनके आस्तित्व के बारे में हमें पता ही नहीं था, और हमें इस बात का कोई अहसास नहीं था कि हमारे जीवन में कितना कुछ है ही नहीं……………वह परमेश्वर, जो हमेशा हमारी उम्मीद से बढ़ कर सिद्ध होता है, वह हमे खोजने के लिए स्वयं को, व अपनी सृष्टि को और अधिक देता रहेगा.’’[31]

कुछ ही ऐसे आनन्द हैं जो कि खोजने के आनन्द से बढ़ कर होंगे. इस हद तक कि कोई ऐसा नहीं होगा जो उसने हमें न दिया होगा, हम जिसकी भी इच्छा रखेंगे या कल्पना करेंगे वह आज या कल हमारे लिए सच कर दी जाएगी, बस इसलिए कि स्वयं परमेश्वर असीम रुप से भला और दाता है.

वास्तव में, इस बात को देखते हुए कि हम स्वर्गदूतों का न्याय करेंगे (1 कोर. 6:03), जो सामथ्र्य और शक्ति में हमसे कहीं महान और उत्कृष्ट हैं), और शायद उन पर राज्य भी करें, यह संभव है कि हम नए जीव-जगत में अलौकिक जीव बन जाएँ, जो कि बहुत कुछ ऐसे होगा जैसे किसी बदसूरत बतख का सुंदर मोर में बदलना, या कि तुच्छ और बदसूरत रेंगनेवाले कीड़े का एक खूबसूरत ब्लू मौर्फ तितली में बदलना – या कि बदसूरत, असहाय और रोंओवाले चूज़े का सात रंगोंवाली, सुंदर सी गाल्डिन चिडि़या बन जाना.

नए यरुशलेम में हमारा जीवन ब्रह्माण्ड के, नई धरती के राजधानी शहर, और यदि आप चाहें, तो ब्रह्माण्ड के प्रधान ‘‘देश’’ में हमारे घर का निर्माण करेगा, एक असाधारण रुप से सुंदर शहर में. जितना अधिक हम इस शानदार आवास के आनन्द और उसकी शांति या कि उसकी ‘‘घर जैसी बात’’ को महसूस करेंगे, उतना ही अधिक ‘‘घर जैसी बात और कहीं नहीं’’ की भावना उसमें बढ़ती जाएगी. इस घर में हम अपने प्रियजनों के साथ रहेंगे, और बहुत सा हँसी-मज़ाक करेंगे, परिवार के साथ समय बिताएंगे, आराम, स्वादिष्ट भोजन, रोचक बातचीत, व्यक्तिगत समय और चिंतन का आनंद लेंगे, उपहारों के लेन-देन की जगह, वह भी ‘‘अभूतपूर्व स्वतंत्रता और जीवट’’ के साथ.[32]

अन्वेषण और साहसिक कार्य

जिस प्रकार परमेश्वर ने हमें स्वभाव से उत्सुक और खुश रहने में आननिदत होनेवाला व्यकित बनाया है, उसी प्रकार उसने हमें साहसिक कार्यों को पसंद करनेवाला और खोजी भी बनाया है. पहाड़ी रास्तों पर लंबी यात्रा करने, बढि़या लहरों पर सर्फिंग करने, पानी के भीतर की कंदराओं और रंग-बिरंगी मछलियों के बीच स्कूबा डाइविंग करने, खूबसरत ढलानों पर स्कीर्इंग करने, पैरासेलिंग करने या आकाश में ऊँचार्इ से कूद लगाने, और न जाने कितने और साहस भर कारनामें करने में अपूर्व अनुभव होता है. लेकिन अब इसमें कोर्इ खतरा नहीं रहेगा, बिल्कुल भी नहीं, अब केवल आनन्द ही आनन्द होगा, बस रोमांच और मज़ा होगा.

हम में से अधिकांश लोगों को किसी आकर्षक और असाधारण रुप से सुंदर जगह में जाना अच्छा लगता है. इनके कुछ उदाहरण हैं: लगातार ”संसार का सबसे सुंदर द्वीप चुना गया माउर्इ, हवार्इ; लूसर्न, स्वीटज़रलैण्ड; वेनिस, इटली; नाइग्रा प्रपात; ग्रैंड बहामा द्वीप; सेरेंगेटी, अ फ्रीका; अमेज़ोन नदी या चीन की यांग्त्ज़े नदी; यूरोप में भूमध्य सागर का तट; टस्कनी, इटली, या हिंद महासागर में मालद्वीप. अविश्वसनीय रुप से बहुत ही सुंदर जगहें – लेकिन अनन्तता की तुलना में वे किसी कूड़ेदान की तरह हैं. एक नए ब्रह्माण्ड के पूरी तरह अनोखे और अविश्वसनीय रुप से सुंदर स्थान, जो कि असीम हैं और सदा असीम सौंदर्य, असीम ज्ञान, असीम प्रेम और असीम रचनात्मकता प्रतिबिंबित करते रहते हैं, तो फिर वे कैसे होंगे?

” ब्रह्माण्ड हमारे घर के पीछे का आँगन, एक खेल का मैदान और विश्वविधालय होगा, जो सदा हमें प्रभु के खज़ाने की खोज करते रहने का संकेत करेगा.”

”परमेश्वर सृष्टिकर्ता है. वह कभी सृष्टिकर्ता होना बंद नहीं करेगा. हमें उसकी महिमा की घोषणा करती नर्इ और अद्भुत रचनाओं की अपेक्षा करनी चाहिए. परमेश्वर की रचनात्मकता समाप्त नहीं हुर्इ है; और न ही वह कभी समाप्त होगी.”

”…….यदि परमेश्वर किसी ऐसे तत्व की रचना करें, जिस की छाया विज्ञानकथा, या काल्पनिक, और मिथक में हो, तो क्या इस बात पर हमें हैरानी होनी चाहिए?…….परमेश्वर ने हमारे भीतर नर्इ दुनिया की इच्छा पैदा की है…….यह ध्यान में रखते हुए कि उसकी महान महिमा और स्तुति, तारों और गृहों जैसी निर्जीव वस्तुओं से नहीं आती, बल्कि मनुष्य और स्वर्गदूत जैसे बुद्धिमान जीवों से आती है, ऐसा सोचना बहुत आसान है कि वह दूसरे बुद्धिमान जीवों की भी करें…………… मैं एक ऐसी अनन्तता की आशा करता हूँ जिसमें मुझे यह देखने और खोजने की प्रसन्नता होगी कि वह स्वयं को हम पर प्रकाशित करने के लिए और क्या बनाता है.”[33]

भूलें नहीं; परमेश्वर का व्यक्तिगत नाम ”मैं हूँ जो हूँ” (उदा. 3: 14) क्योंकि वह अपनी संपूर्णता में, हर जगह, हम समय आसितत्व में बना रहता है. परमेश्वर अनन्त वर्तमान में रहता है, वह काल और समय की सीमा, या भूतकाल और भविष्यकाल की सीमा से बंधा नहीं होता. वह अनन्तकाल और अनादिकाल दोनों में है. यदि वह चाहे तो, अपनी इच्छा के अनुसार अपनी महिमा और उद्देश्यों के लिए, वह धरती के किसी भी हिस्से का पूरा अतीत या भविष्य की झलक दिखा सकता है. संभावित रुप से वह ऐसा हज़ारों जगत के लिए कर सकता है. हज़ारों-लाखों सालों के लिए परमेश्वर ने हमारे निम्मित जो रखा है, उसकी यहाँ-वहाँ झलक पाने की कल्पना करें. इस बात की जानकारी से मिलनेवाला आनन्द की कुछ अच्छा होनेवाला है आंशिक रुप से स्वयं इस बात की जानकारी और प्रत्याशा है. यदि परमेश्वर ”हमारी बिनती और समझ से कहीं अधिक काम कर सकता है (Eph. 3: 20 आईएसवी), तो फिर सीमाएँ कहाँ हैं?

साथ ही, क्योंकि परमेश्वर जो भी करता है वह उसकी अनन्त और असीम महिमा के लिए होगा, और वह जो कुछ भी करता व देता है, वह उसकी सामथ्र्य में सबसे बेहतर होता है. लेकिन, स्वर्ग का हर अदभुत जीवट कार्य, खोज, प्रगति, और कार्य – हम जो कुछ भी सदा के लिए करेंगे – परमेश्वर की वास्तविक उपस्थिति के आश्चर्य की तुलना में फीका ही रहेगा. 500 टि्रलियन (500000000000000) सालों के ज्ञानार्जन के बाद, आप जो भी विषय सोच सकते हैं, उस विषय पर व्यक्तिगत रुप से परमेश्वर से, पूरे ब्रह्माण्ड में अपने सबसे करीबी मित्र से बातचीत करने की कल्पना करें; वह जिसने सदा से आपसे प्रेम रखा है और सदा रखेगा. परमेश्वर का सिर्फ आपके लिए सूर्य के आकार के एक जगत की रचना करने की कल्पना करें, जो पूरी तरह से आपकी रुचियों, पसंद, और व्यक्तित्व के अनुसार है. इसकी रचना का एकमात्र उद्देश्य और कुछ नहीं बस सदा के लिए इसका आनन्द उठाना, मज़े करना, और इसमें प्रसन्न रहना है.

इससे भी अद्भुत बात है कि पूरी अनन्तता में सब कुछ परमेश्वर ने ही डिज़ार्इन किया होगा ताकि उसे  देखने और बेहतर रीति से जानने में हमे मदद मिले, उसे बेहतर रीतियों से समझें, हम जो भी करते या देखते हैं उसके द्वारा हम उसे अधिक से अधिक महिमा दे, जो कुल मिला कर हमारे लिए सतत रुप से बढ़ती प्रसन्नता और आनन्द ले कर आएगा. हर जीवट कार्य और खोज हमें परमेश्वर के बारे में कुछ और बातें बताएगा, उसके बारे में कुछ विशेष बातें प्रकाशित करेगा; उसकी असीम रुप से सिद्ध प्रकृति और महिमा के कुछ नए लुभावने पक्ष; उसके जटिल व्यक्तित्व से जुड़ी कुछ अविश्वसनीय अंतर्दृष्टि; उसके असीम प्रेम के कुछ नए आश्चर्य; उसके असीम सौंदर्य के कुछ विस्मयकारी प्रदर्शन. इस तरह, हम पूरे समय जो कुछ भी देखेंगे और करेंगे, वे हमें केवल और अधिक प्रोत् साहित और रोमांचित करेगा कि हम परमेश्वर के आस्तित्व की खोज करें और जो अनादि, असीम आश्चर्य और अथाह निधि के लिए उससे अधिक से अधिक प्रेम करें, जो वह सदा बना रहता है.

और तब भी, वह बेहतर होता जाता है. सदा के लिए खोजने और प्रेम करने और आराधना करने और आश्चर्य करने के लिए हमारे पास केवल एक अनादि व्यकित नहीं है; वास्तव में हमारे पास तीन अनादि व्यकितत्व हैं : परमेश्वर पिता, परमेश्वर पुत्र, और परमेश्वर पवित्र आत्मा : असीम विविधता. इसलिए करने के कामों का कुण्ड कभी नहीं सूखेगा, बल्कि वह तो हर दिन भरपूर किया जाएगा और पूरी अनन्तता में हर तरफ सदा नए और हैरान कर देनेवाली रीतियों से विस्तार पाएगा. हम सदा के लिए परमेश्वर पर पूरी तरह से मुग्ध होंगे, जैसे कि स्वर्गदूत कर्इ खरबों सालों से रहे हैं. और तब भी, चाहे वे कितने ही विशाल और भव्य हों, अपनी कल्पनीय अलौकिक योग्यताओं के साथ, (प्रकाशितवाक्य में उनके न्याय पर विचार करें), और शायद 10000 आर्इक्यू के साथ (आर्इंस्टार्इन का आर्इक्यू 160 था) , आखिर वे परमेश्वर के बारे में कितना जानते हैं? वे अब तक उसे कितना खोज पाए हैं?

अवश्य ही, नर्इ धरती और इस धरती के बीच समानताएँ होंगी, लेकिन इनके बीच के अन्तर बहुत विशाल होंगे. एक असीम स्वर्ग के संबंध में उन्हें शायद ही व्यक्त किया जा सकता है. परमेश्वर की महिमा से सिक्त एक असीम ब्रह्माण्ड को खोज पाना इसे तुलनात्मक रुप से फीका बना देता. सदा के लिए पापरहित हो कर सिद्ध होने, किसी भी प्रकार के दोष से रहित होने की कल्पना करें. लेकिन तब , उस अकथनीय सुख के बारे में सोचे जो सदा के लिए एक असीम रुप से सिद्ध परमेश्वर और उसकी उपस्थिति में आराधना से मिलता है, जो कि असीम प्रेम, असीम आनन्द, असीम सौंदर्य, असीम महिमा, असीम प्रसन्नता, असीम आश्चर्य है . परमेश्वर के पास असीम ज्ञान, बुद्धि, रचनात्मकता, भलार्इ और आश्चर्य है. हम परमेश्वर पर पूरी तरह मुग्ध और मोहित होंगे जैसा कि प्रेरित पौलुस ने थिस्सलुनीकियों को कहा था, कि परमेश्वर का प्रकटीकरण ”…. उस दिन होगा, जब वह अपने पवित्र लोगों में महिमा पाने, और सब विश्वास करने वालों में आश्चर्य का कारण होने को आएगा, क्योंकि तुम ने हमारी गवाही की प्रतीति की. (2 Thess 1:. 10).

“यीशु के समान “

यह रही स्वर्ग के बारे में सबसे महान बात. हम न केवल मुर्दों में से जिलाए जाएंगे, बल्कि हम ”यीशु के ” हो जाएंगे. इसके वास्तविक अर्थ का हमें इस समय थोड़ा सा अनुमान है : ” हे प्रियों, अभी हम परमेश्वर की सन्तान हैं, और अब तक यह प्रगट नहीं हुआ, कि हम क्या कुछ होंगे! इतना जानते हैं, कि जब वह प्रगट होगा तो हम भी उसके समान होंगे, क्योंकि उस को वैसा ही देखेंगे जैसा वह है. (१ यहुन्ना 3: 2 एनआईवी). हमारे जिलायी गर्इ देह कैसी होगी यह हमारी कल्पना के बाहर की बात है – हम जो हैं, उससे हमारा संबंध रहेगा लेकिन हर प्रयोजन और उददेश्य से अलौकिक जीव होंगे.

फिलहाल, ”परमेश्वर नहीं चाहता हम यह जानें कि उसने हमारे लिए क्या योजना बनार्इ है. ऐसे परमेश्वर से मैं यह सुन कर हैरान नहीं होता, ”अगर मैं तुम्हें बता देता, तो मुझे तुम्हें दुनिया से उठाना पड़ता.”[34]

उदाहरण के लिए, हम शायद विचारों की गति से यात्रा कर पाएँ, प्रकाश से भी असीम रुप से तेज़. या हम किसी चील की तरह हवा में उड़ते हुए सुन्दर दृश्यों का आनन्द लेंगे. हमारे पास दर्जनों नर्इ तरह की और एक दूसरे से मिली संवेदनाएँ होंगी, और क्योंकि हमारी देह विशेष रुप से परमेश्वर की आराधना और उसका अनुभव करने के लिए बनी होगी (जिसमें हर सबसे अधिक प्रसन्नता मिलेगी) और नए आकाश नई पृथ्वी, नए स्वर्ग और नर्इ धरती का अनुभव करने के लिए, हम सदा कुछ नया खोजते रहेंगे और अपनी खोज पर सदा हैरान और खुश होते रहेंगे, चाहे वह खोज परमेश्वर से जुड़ी हो या उसके असीम स्वर्ग से. जैसा कि हमने पहले देखा था, हम जितना स्वर्ग के बारे में जानेंगे उतना ही हम परमेश्वर के बारे में जानेंगे, क्योंकि स्वर्ग की हर चीज़ कुछ हद तक उसके बारे में प्रतिबिंबित करेगा, जैसा कि धरती के लिए भी सच है – लेकिन स्वर्ग में हमें इसकी पूरी समझ होगी और हम इसका पूरा आनन्द उठाएँगे. हम पाप नहीं कर सकेंगे जिसके कारण हम ऐसी स्वतंत्रता मिलेगी जिसकी हम फिलहाल कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. यह हमारे आनन्द को भी बढ़ाएगा. पाप से मुकित बढ़े हुए आनन्द के बराबर होगा, क्योंकि पाप कभी न कभी हमारे आनन्द को फीका करता है. ”परमेश्वर इस बात का वचन देता है कि स्वर्ग में हम हँसेंगे, खुश होंगे, और इसके अनन्त सुखों का भोग करेंगे.[35]

ऊपर दिया चित्रण एक टुकड़े का भी सही तरह से प्रतिनिधित्व नहीं करता है , अनन्त स्वर्ग जो है, उसकी सच्चार्इ के कण की तो बात ही छोड़ दीजिए क्योंकि ”….जो आंख ने नहीं देखी, और कान ने नहीं सुना, और जो बातें मनुष्य के चित्त में नहीं चढ़ीं वे ही हैं, जो परमेश्वर ने अपने प्रेम रखने वालों के लिये तैयार की हैं, (1 कोर 2:. 9 एनआईवी). जिन्हें अधिक जानकारी चाहिए (और मैं आशा करता हूँ कि आपको चाहिए), मैं कुछ अतिरिक्त अध्ययन सामग्री की सलाह देना चाहूँगा.[36]

लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है कि आप यह सुनिश्चित करें कि आप स्वर्ग जा रहे हैं, कि अपने पापों की क्षमा के लिए आपने यीशु मसीह पर सच्चे मन से विश्वास किया है और अनन्त जीवन के लिए आपने उस पर भरोसा करते हैं.

“परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि अपना एकलौता पुत्र दे दिया कि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो परन्तु अनन्त जीवन पाए.” (यूहन्ना 3:16) (3 यूहन्ना: 16).

नोट्स

1. ↑ Citation is given on the back cover of Jonathan Edwards, Heaven, A World of Love, Pocket Puritan Series, 2008, available at Amazon.com; http://www.amazon.com/Heaven-World-Pocket-Puritan-Series/dp/0851519784. देखना www.DesiringGod.org. “Piper has become one of the most popular and respected preachers and authors around ….  दुनिया  magazine recently listed his The Pleasures of God  as one of the century’s top 100 books.” (Tim Ellsworth, “John Piper: God’s Glory His Passion,”The Southern Seminary Magazine, December 1999; reproduced at:http://www.desiringgod.org/about/john-piper/gods-glory-his-passion/) (This book had a significant influence on my life and, after Scripture, I would place it is one of the top three books I have read—and I have purchased well over 10,000 books and perused or read all.) According to Wikipedia, Piper is “one of the most influential Calvinistic Baptist Christian preachers and authors of the 21st century; ” http://en.wikipedia.org/wiki/John_Piper_% 28theologian% 29 # cite_note-कदम नीचे -0. Although the source cited by Wikipedia does not confirm this, it is nevertheless true. The author may have mixed up his edition of The Christian Post the March 29, 2010 edition points out that Piper “is considered one of the most influential preachers among Protestant pastors” (Lillian Kwon, “John Piper to Take Leave to Reexamine Soul”; ईसाई पोस्ट29 मार्च, 2010;http://www.christianpost.com/news/john-piper-to-take-leave-to-reexamine-soul-44512/).

2. ↑ See The Jonathan Edwards Center at Yale University; http://edwards.yale.edu/. Edwards is best known for his sermon “Sinners in the Hands of an Angry God” (July 8, 1741), a quite powerful oration freely available online and well worth reading if for no other reason than that it is the best-known sermon in American history—although afterwards, for a few hours, one may not be quite the same. See: Christian Classics Ethereal Library;http://www.ccel.org/ccel/edwards/sermons.sinners.html.

3. ↑ See a variety of online editions such as the Bible Bulletin Board, Jonathan Edwards, Heaven, A World of Love http://www.biblebb.com/files/edwards/charity16.htm.

4. ↑ For examples, see Don Richards in Eternity in Their Hearts (subtitle on the cover: “Startling Evidence of Belief in the One True God in Hundreds of Cultures throughout the World”), Third Edition, 2005; and Barry Morrow, A Heaven Observed: Glimpses of Transcendence in Everyday Life, 2001.

5. ↑ Choline McDannel, Bernard Lang, Heaven: A History, Yale University Press, second edition 2001, 1.

6. ↑ In terms of accurately interpreting God’s word (“handling accurately the word of truth”), we are told to pay special attention to this in presenting ourselves as being approved to God because teachers of Scriptures will incur a stricter judgment (याकूब 3: 1). Various translations render the original Greek word in 2 टिमोथी 2:15, spoudason  (σπούδασον), by “do your best to;” “work hard;” “be diligent to;” “study;” “carefully study;” “earnestly seek;” give diligence to;” and “strive diligently.” Of course, if we are to meditate on Heaven, how much more should we meditate on the One who occupies Heaven? While the two go hand-in-glove, they can obviously be studied and meditated upon separately. भजन 27:4 tells us that we are to “behold the beauty of the Lord;” भजन 63:6 tells us we are to “meditate on God” during the night; and इब्रानियों 12:2-3 commands us to “fix our eyes on Jesus… consider him.” भजन 1 :1-2 says we are to “delight in” and “meditate” on God’s word “day and night.” As for the works of God, which include everything from Genesis to Revelation and everything in between in all creation, “Great are the works of the Lord; they are studied by all who delight in them” (भजन. 111:2).

7. ↑ Note that in Hosea 4 the “lack of knowledge” refers specifically to the lack of the knowledge of God, i.e., theology, which is the biblical study of God. Similarly, apologetics and Christian evidences are the defense of the truthfulness of biblical teaching and the Christian worldview which by definition includes Heaven, a subject attacked (belittled and distorted) as frequently as almost anything else Christian, something that virtually has to be satanic inspired. Being tossed out of Heaven for his utterly inexcusable ungratefulness and arrogance or overbearing pride, the devil probably hates Heaven almost as much as he hates God, something clearly reflected in both the world and ironically in much of the Church’s view of Heaven. On the other hand, the fact that e.g., Randy Alcorn’s books alone have sold over 7 million copies is reason for hope.

8. ↑ Randy Alcorn, स्वर्ग, 21.

9. ↑ A.W. Tozer, The Quotable Tozer II, cited in Randy Alcorn,  Eternal Perspectives: A Collection of Quotations on Heaven, the New Earth, and Life after Death, 2012, 316. (This book cites some of the best Christian scholars and writers over the last 2,000 years: Augustine, Aquinas, Calvin, Luther, Bunyan, Moody, Newton, Spurgeon, Edwards, Wesley, Tolkien, Lewis, etc.

10. ↑ He later significantly altered his views on Heaven more positively as per his रीट्रैक्शंस.

11. ↑ See the critique of what Alcorn terms “Christoplatonism” in Appendices A & B of स्वर्ग in which he looks of the negative influence of Augustine; Thomas Aquinas (see name index) and other scholastics of the Middle Ages generally beginning in the 12th century including Abelard and Lombard. Although the scholastics and monastic movements may to some extent be considered an exception to the “heavenly emphasis equals earthly good” rule, it remains true that much of what was accomplished even in this era and throughout Church history was due to the church’s belief in Heaven, even if sometimes distorted.

12. ↑ नोट 1 देखें.

13. ↑ John Piper, “I AM WHO I AM,” Commentary on निर्गमन 3 :13-15, September 8, 2012, Desiring God.org; http://www.desiringgod.org/resource-library/sermons/i-am-who-i-am–2.

14. ↑ See his expansion of this theme in Desiring God The Pleasures of God: God’s Delight in Being Godभी www.desiringgod.org.

15. ↑ See Dr. Sam Storms, Pleasures Evermore, 2000; Dr. John Piper, The Pleasures of God: God’s Delight in Being God; Jonathan Edwards, A Dissertation Concerning the End for Which God Created the World,http://www.prayermeetings.org/files/Jonathan_Edwards/JE_A_Dissertation_Concerning_The_End_For_Which_God_Create.pdf.

“Happiness is the very reason God created the universe. Indeed, it is for happiness that we exist” (Sam Storms, Pleasures Evermore2000, 28). That’s one reason the words “joy,” “rejoice,” “delight,” “happiness” and similar terms are used over 1,000 times in the Bible. God desires that we be happy in Him in this life regardless of circumstances, as the apostle Paul learned (Phil. 4: 12; e.g., even though the book of Philippians was written from a horribly cruel and dark dungeon where Paul was brutally and very painfully chained, he still uses the terms “rejoice,” “joy” and similar words repeatedly, more so than in any of his other writings). Jesus Himself told His disciples, “These things I have spoken to you, that my joy may be in you, and that your joy may be full” (15:11 यूहन्ना).

16. ↑ John Piper, “I AM WHO I AM,” Commentary on निर्गमन 3 :13-15, September 8, 2012, Desiring God.org; http://www.desiringgod.org/resource-library/sermons/i-am-who-i-am–2.

17. ↑ John Piper, “To Him Be Glory Forevermore,” December 17, 2006 commentary on रोमियों 16:25-27;http://www.desiringgod.org/resource-library/sermons/to-him-be-glory-forevermore.

18. ↑ John Piper, “Why Did God Create the World?”, September 22, 2012, Scripture यशायाह 43:7; Topic: the Pleasures of God; http://www.desiringgod.org/resource-library/sermons/why-did-god-create-the-world.

19. ↑ : पर See note 15 and: John Piper, “The Happiness of God: Foundation for Christian Hedonism” and “The Pleasure of God in All That He Does” http://www.desiringgod.org/resource-library/essential-resources.

20. ↑ Especially since we never deserved it and we understand untold millions are suffering eternal torment in Hell, something we deserved and were spared solely because of God’s grace. Nor will the redeemed in Heaven be at all unhappy about the fate or eternal sufferings of those in Hell. We will then fully understand how evil sin truly is and how perfectly just, fair and loving Hell also truly is (so much so that we will accept it and honor it unreservedly—as even those in Hell will). Further, the people in Hell, even those once closest to us, will not all be perceived as those individuals we once knew; they will be as different to us as strangers because they will be seen for who they truly are. In fact, we will probably see those in Hell just as the angels see their fallen brethren in Hell, the very demons they are now fiercely battling behind the scenes (cf. दान 10:. 20; रेव 14:10); further, our being spared such a fate will bring us unspeakable joy forever at the mercy of God toward us.

21. ↑ Alcorn, स्वर्ग  (एडवर्ड्स का हवाला देते हुए),

22. ↑ Ibid., 320.

23. ↑ Ibid., स्वर्ग, 411.

24. ↑ Ibid., स्वर्ग, 179.

25. ↑ Sam Storms, “Heaven: the Eternal Increase of Joy” May 1, 2007;http://www.billygraham.org/articlepage.asp?ArticleID=810.

26. ↑ Ibid.

27. ↑ Excerpts are taken from Jonathan Edwards, Heaven, a World of Love, पवित्र शास्त्र बुलेटिन बोर्ड:http://www.biblebb.com/files/edwards/charity16.htmAmazon.com से उपलब्ध एक हार्ड कॉपी जो:http://www.amazon.com/Heaven-World-Pocket-Puritan-Series/dp/0851519784.

28. ↑ Yes, the verse goes on to say that they have been revealed in the Gospel and God’s promises, but the fact remains, as finite beings, we still have no idea, no conception, of what God has in store for us throughout eternity, given who we are “in Christ.” Given the length of eternity and the infinite triune nature of God, we never will; at best we will have hints.

29. ↑ Alcorn, स्वर्ग, 179.

30. ↑ Ibid., 177, emphasis original.

31. ↑ Randy Alcorn, TouchPoints:Heaven, cited in Alcorn, Eternal Perspectives, 51.

32. ↑ Alcorn, स्वर्ग, 456-7.

33. ↑ Ibid., 177, 448-49.

34. ↑ मार्ट डी हैन, Been Thinking About, cited in Alcorn, Eternal Perspectives, 57.

35. ↑ Alcorn, स्वर्ग, 411.

36. ↑ Sam Storms, “Heaven: The Eternal Increase of Joy” May 1, 2007;http://www.billygraham.org/articlepage.asp?ArticleID=810  Randy Alcorn, स्वर्ग   Eternal PerspectivesJonathan Edwards, Heaven, A World of Love  available hardcopy at Amazon.com and through several websites online (note 3).